मकर संक्रांति पर जियारानी की वीरता और साहस के सुनाए जाएंगे जागर
मकर संक्रांति पर जियारानी का पूजन करने के लिए गढ़वाल और कुमाऊं के विभिन्न इलाकों से कत्यूरी वंशज सोमवार को रानीबाग पहुंचेंगे।
हल्द्वानी, जेएनएन : मकर संक्रांति पर जियारानी का पूजन करने के लिए गढ़वाल और कुमाऊं के विभिन्न इलाकों से कत्यूरी वंशज सोमवार को रानीबाग पहुंचेंगे। रात में जियारानी के जागर लगाए जाएंगे और 15 जनवरी को संक्रांति के दिन सुबह गौला नदी में स्नान के बाद पूजन होगा।
रानीबाग में मकर संक्रांति पर मेला आयोजन की तैयारियां जोरों पर हैं। कत्यूरी वंशजों के आने के साथ ही यहां दुकानें सजनी शुरू हो जाएंगी। मान्यता है कि 47वें कत्यूरी राजा प्रीतमदेव की महारानी मौलादेवी जिन्हें जियारानी भी कहा जाता है, कुछ समय राजा के साथ चौखुटिया में रहने के बाद नाराज होकर रानीबाग में एकांतवास के लिए आ गई। माना जाता है कि यहां जियारानी 12 साल तक रही। रोहिल्ले सिपाही उन्हें खोजते हुए यहां तक पहुंचे। सैनिकों से बचने के लिए रानी पहाड़ी पर स्थित गुफा में छिप गई। रानी की सेना हार गई और रानी को गिरफ्तार कर लिया गया। जब इसकी सूचना प्रीतमदेव को मिली तो उसने अपनी सेना भेजकर रानी को छुड़ाया और अपने साथ ले गया। उनका पुत्र दुलाशाही बहुत छोटा था, इसलिए मौलादेवी ने दुलाशाही के संरक्षक के रूप में राज्य का शासन किया।
कहा जाता है कि जिस गुफा में जियारानी छिपी थी वह गुफा रानीबाग में आज भी मौजूद है। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर कत्यूरी वंशज रानीबाग आकर जियारानी की याद में जागर लगाते हैं और गौला नदी में स्नान कर उनका पूजन करते हैं।
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