अधूरी रह गई इरफान खान की ख्वाहिश, नैनीताल में दोस्त के साथ शुरू करना चाहते थे ये प्रोजेक्ट
नैनीताल निवासी दिग्गज अभिनेता इदरीश मलिक ने रूंधे गले से इरफान की यादों को साझा किया। चलिए आपको इदरीश मलिक के साथ इरफान की जिंदगी और सिनेमा को लेकर उनके जुनून के बारे में बताते हैं
नैनीताल, स्कंद शुक्ल : 'कला दुख और वेदना की संतान है'... दुनिया के महान चित्रकार पाब्लो पिकासो की यह सूक्ति महान अभिनेता इरफान (Irfan khan) पर खूब जंचती है। थियेटर उसके रोम-रोम में बसता था, उसने अभिनय की भाषा अपने इर्दगिर्द मौजूद लोगों के दुख-दर्द और थियेटर से सीखी थी। वह कॉमर्शियल फिल्मों का कभी पक्षधर नहीं रहा। लेकिन जिंदगी की जद्दोहद ने उसे इसमें घसीट लिया था। फिर भी वह मुुंबई के चालू सिनेमा के जाल में नहीं फंसा। उसने हिंदी सिनेमा को काफी हद तक बदला। इतनी कम उम्र में जो उपलब्धि इरफान ने हासिल की, सिनेमा-थियेटर को जितना उसने बदला, काेई दूसरा यहां पूरी जिंदगी खपाकर भी उसकी शोहरत को न छू सकेगा। यह कहना है इरफान खान (Irfan khan) के अजीज दोस्त और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के दिनों में रूम मेट रहे नैनीताल निवासी दिग्गज अभिनेता इदरीश मलिक का। उन्होंने दैनिक जागरण के साथ रूंधे गले से इरफान की यादों को साझा किया। चलिए फिर आपको इदरीश मलिक साहब के साथ इरफान की जिंदगी और सिनेमा को लेकर उनके जुनून के बारे में बताते हैं।
एनएसडी में इरफान इदरीश के रूममेट थे
इदरीश मलिक ने बताया कि एनएसडी में एडमिशन किसी भी राज्य से एक ही स्टूडेंट को मिलता है। 1984 में वह भाग्यशाली मैं था। उसी सत्र में इरफान भी एनएसडी आया था और हम दोनों रूममेट बने। इरफान (Irfan khan) की आपनी वाइफ सुतापा से भी उसी दौरान मुलाकात हुई थी। उस समय हमने तकरीबन 20-22 प्ले में एक साथ काम किया। इरफान (Irfan khan) के अभिनय की प्रतिभा का हर कोई कायल होता था। लोग उसमें उसी दौरान से ही एक बड़े अभिनेता की संभावना देखते थे। लेकिन एनएसडी में सिनेमा की कोई बात नहीं करता था। वहां हमको थियेटर जीना सिखाया जाता था। गलती से भी कोई बॉलीवुड का नाम नहीं लेता था।
इरफान के रूह में बसता था थियेटर
इरफान (Irfan khan) थियेटर में ही कुछ नया प्रयोग करना चाहता था। थियेटर उसके रूह में बसता था। लेकिन नाटक कर जिंदगी गुजारना मुश्किल होता है। वक्त गुजरा। एनसडी से पासआउट होने के बाद हमने मुंबई का रुख किया। मुंबई में हमने श्याम बेनेगल के साथ डिस्कवरी ऑफ इंडिया की। इसके अलवा इरफान ने श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी जैसे पैर्लल सिनेमा के दिग्गजों के साथ कुछ फिल्में कीं। मीरा नायर के साथ सलाम बांबे करने के बाद उसे अच्छी खासी पहचान मिल गई। लेकिन फिर भी उसका संघर्ष जारी रहा। फिल्मों को चुनने में उसने कभी जल्दबाजी नहीं दिखाई। उसमें सिनेमा की असाधारण समझ थी।
उसकी शोहरत को कोई छू भी नहीं सकता
इदरीश मलिक ने बताया कि इरफान (Irfan khan) अभिनय के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करता था। वह उसकी स्वाभावित अभिव्यक्ति होती थी। वह अपने चरित्र को जीता था। उन्होेंने बताया कि एनएसडी के दौरान हमें थियेटर पढ़ाने के लिए दुनियभार से नामचीन कलाकार आते थे। अभिनय पर उनके लेक्चर को इरफान आत्मसात करता था। उसके थियेटर और फिल्मों में वही अभिव्यक्त नजर आती है। इस छाेटी सी उम्र में जो शोहरत इरफान ने हासिल की है, कोई दूसरा कोशिश भी कर ले उसके कद को छू तक नहीं सकता है। उसकी आंखाें की भाषा की कायल पूरी दुनिया हुई। उसे अभी अपना सर्वश्रेष्ठ देना था। अक्सर बातचीत में कुछ नया और अलग करने की बात कहता था। अफसोस वो हमे छोड़कर चला गया।
कहा था, स्वस्थ्य हो जाऊं, फिर पहाड़ में लंबा वक्त गुजारूंगा
इदरीश मलिक ने बताया कि इरफान (Irfan khan) कई बार परिवार के साथ नैनीताल मेरे घर आ चुका है। पहाड़ में रहना, घूमना और यहां की प्रकृति से उसे लगाव था। बातचीत में अक्सर कहता था, मन करता है यहीं बस जाऊं। मुंमई में उसका पहला घर मैंने ही खरीदने में मदद की थी। दो साल पहले ही उसने रामगढ़ में एक कॉटेज लिया था। पहाड़ों में उसका मन खूब रमता था। हमारी योजना यहां गुरुकुल परंपरा के अनुरूप एक नाट्य विद्यालय शुरू करने की थी। इरफान ने कहा था कि इस बार कैंसर से उबर जाऊं तो नैनीताल में परिवार के साथ आकर लंबा वक्त गुजारूंगा। नैनीताल के ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव में भी इस बार हिस्सा लेने का वादा किया था। अफसोस उसने एक वादा किया था, जाे अब कभी पूरा न होगा। कला-संस्कृति की दुनिया में उसने जो जगह बनाई, उसे कभी भरा नहीं जा सकेगा। भला यह जाने की कोई उम्र होती है।
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