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न्याय के लिए परिवार छोड़ाकर अपनी मेहनत से इंदिरा दानू बनीं जज, जानिए इनकी कहानी

कम ही महिला होती है जो अन्याय से लड़ते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। ऐसा ही कुछ किया निर्भया प्रकोष्ठ की अधिवक्ता इंदिरा दानू ने।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 12:44 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 11:11 AM (IST)
न्याय के लिए परिवार छोड़ाकर अपनी मेहनत से इंदिरा दानू बनीं जज, जानिए इनकी कहानी
न्याय के लिए परिवार छोड़ाकर अपनी मेहनत से इंदिरा दानू बनीं जज, जानिए इनकी कहानी

बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विवेदी : कम ही महिला होती है जो अन्याय से लड़ते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। ऐसा ही कुछ किया निर्भया प्रकोष्ठ की अधिवक्ता इंदिरा दानू ने। जो अन्याय के खिलाफ अपने परिवार से तह लड़ गई। यही नही वह अपनी मेहनत और लगन से आज जज भी बन गई हैं। आज वह देश की महिलाओं के लिए किसी मिसाल से कम नही हैं।

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कपकोट ब्लाक के दूरस्थ आपदाग्रस्त गांव कुंवारी की इंदिरा दानू में गजब का हौसला है। वह आज महिला सशक्तिकरण के नारे को सार्थक करते हुए दिखाई देती है। न्याय के लिए उन्होंने अपने परिवार तक को छोड़ दिया। बीते 2018 में खाती गांव में एक नेपाली नाबालिग के साथ एक मजदूर ने बलात्कार किया। यह घटना उस जगह पर हुई जहां पर इन मजदूरों को खुद इंदिरा के पिता किशन ङ्क्षसह दानू काम करवा रहे थे। यह सारे मजदूर उन्हीं के थे। किशन ङ्क्षसह दानू ने मामला दबाने की कोशिश की। मामला दब भी गया था। लेकिन जैसे ही यह मामला इंदिरा दानू को पता चला उन्होंने अपने पिता के खिलाफ जाकर नाबालिग के अधिकार के लिए लडऩा शुरु कर दिया। वह निर्भया प्रकोष्ठ में वरिष्ठ अधिवक्ता के पद पर काम कर रही थी। इसके लिए उन्हें अपने परिवार से बगावत करना पड़ा। इस कारण परिवार भी छूट गया। अंत में उनकी लड़ाई काम आई और हमेशा की तरह न्याय की जीत हुई। उन्होंने नाबालिग को न्याय दिलाया और अपराधी सलाखों के पीछे गए। 

जिले की पहली महिला जज बनीं 

पीसीएस जे की परीक्षा की पास अन्याय के खिलाफ उनकी जंग ने उनका हौंसला कभी नही टूटने दिया। चाहे वह परिवार से ही अलग क्यों ना हो गई हों। उन्होंने अपनी मेहनत नही छोड़ी। उत्तर प्रदेश पीसीएस जे में कुल 610 पदों में से इंदिरा ने 147वीं रेंक हासिल की है। वह जज बनने वाली जिले की पहली महिला हैं। शिक्षा के लिए 15 किमी का सफर इंदिरा के पिता किशन ङ्क्षसह दानू प्रधान कुंवारी व माता शांति दानू जो पूर्व में जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं। छोटी पुत्री इंदिरा ने मां उमा बाल शिक्षा स्वास्थ्य मंदिर कपकोट से प्राथमिक शिक्षा तथा इंटर कालेज कपकोट से हाईस्कूल व इंटर की शिक्षा ग्रहण की। इंदिरा को शिक्षा ग्रहण करने के लिए लगभग 15 किमी पैदल सफर तय करना पड़ता था। इंटर के बाद इंदिरा ने पीजी कॉलेज बागेश्वर से बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 2005 में उन्हें बागेश्वर महाविद्यालय में छात्र संघ उपाध्यक्ष भी चुना गया। इंदिरा ने बागेश्वर महाविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष का भी चुनाव लड़ा। एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा से एलएलबी व एलएलएम परीक्षा गोल्ड मेडल के साथ उत्तीर्ण करने वाली इंदिरा ने उत्तराखंड पीसीएसजे में भी दो बार साक्षात्कार तक का सफर तय किया। न्यायाधीश बनने के लिए कड़ी मेहनत करने वाली इंदिरा अभी विधि विषय में शोध कर रही हैं।

अन्‍याय के खिलाफ लड़ना होगा 

इंदिरा दानू, अधिवक्ता, निर्भया प्रकोष्ठ ने बताया कि अगर जीवन में संकल्प लिया हो तो इसके लिए कड़ी मेहनत और लगन चाहिए। सफलता का यह मूल मंत्र है। अन्याय के खिलाफ लडऩे के लिए हमेशा आगे आना होगा। न्यायाधीश की भूमिका में भी वह यह काम करेंगी। 

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