रिश्ते की नई शुरुआत : भारत-नेपाल बाउंड्री वर्किंग ग्रुप की बैठक नवंबर में, आसान होगा सीमांकन
सेना प्रमुख के दौरे से नेपाली रिश्ते की नई शुरुआत के बीच एक और अच्छी खबर है। लंबे समय बाद दोनों देशों के बीच सीमांकन और पुराने पिलरों के चिह्निकरण का ठप पड़ा काम इसी माह के आखिरी सप्ताह में शुरू होगा।
हल्द्वानी, अभिषेक राज : सेना प्रमुख के दौरे से नेपाली रिश्ते की नई शुरुआत के बीच एक और अच्छी खबर है। लंबे समय बाद दोनों देशों के बीच सीमांकन और पुराने पिलरों के चिह्निकरण का ठप पड़ा काम इसी माह के आखिरी सप्ताह में शुरू होगा। इसके लिए ज्वाइंट बाउंड्री ग्रुप (बीडब्ल्यू) की बैठक होगी। नेपाल ने इसके सकारात्मक संकेत दिए हैं। एसएसबी सहित अन्य विभागीय सूत्रों के अनुसार संभवत: बैठक वर्चुअल होगी। इसके बाद आगामी अगस्त में फिर सचिव स्तरीय बैठक भी होगी। इससे गलतफहमी से रिश्तों मेें आई दरार को काफी हद तक भरकर आगे बढ़ा जा सकता है। खास बात यह है कि इसमें कालापानी और सुस्ता जैसे संवेदनशील मसले पर बात नहीं होगी।
2014 में हुआ कमेटी का गठन
भारत-नेपाल संबंधों के जानकार यशोदा श्रीवास्तव बताते हैं कि भारत-नेपाल ज्वाइंट बाउंड्री वर्किंग कमेटी का गठन वर्ष 2014 में हुआ। इसका उद्देश्य नो मैंस लैंड की स्थिति को स्पष्ट करना और सीमांकन के लिए पूर्व में बने स्तंभों की मरम्मत करना रहा। कमेटी की अब तक छह बैठकें हो चुकी हैं। 2017 में दोनों देशों ने अगले पांच वर्ष में स्तंभ निर्माण और सीमांकन का काम पूरा करने की योजना तैयार की थी, लेकिन समय-समय पर नेपाल के चीन के प्रभाव में आने से काम प्रभावित होने लगा। अभी तक करीब 20 प्रतिशत भी काम पूरा नहीं हो सका है।
देहरादून में हुई अंतिम बैठक
कमेटी की अंतिम बैठक 28 अगस्त 2019 में देहरादून में हुई । इसके बाद आठ मई 2020 को भारत ने लिपुलेख तक सड़क निर्माण पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया तो नेपाल ने इसे अतिक्रमण बताते हुए विरोध शुरू कर दिया। इसके बाद नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी कर भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपना बता दिया। बाद में नेपाली प्रधानमंत्री के तल्ख होते तेवर से दोनों देशों के बीच दूरी बढ़ती गई। चीन के प्रभाव में आकर नेपाल ने सीमा पर ताबड़तोड़ बार्डर आउटपोस्ट खोल दी।
सचिव स्तरीय वार्ता भी
कालापानी और सुस्ता मामले को विदेश सचिव के स्तर पर होेने वाली वार्ता में उठाया जाएगा। दोनों मसलों को बीडब्ल्यू मेें शामिल नहीं किया जाएगा। इससे काफी हद तक विवाद या फिर तनाव बढ़ने की आशंका नहीं रहेगी।
इसपर होगी बात
- जर्जर सीमा स्तंभों का निर्माण
- नो मेंस लैंड (दसगजा) को अतिक्रमण मुक्त करना
- नदी कटाव वाले क्षेत्रों में सीमा का चिह्नांकन