कुमाऊं के सबसे बड़े कॉलेज में एनएसयूआई-एबीवीपी के वर्चस्व को चुनौती, निर्दलियों ने दी टक्कर
एमबीपीजी में एनएसयूआई और एबीवीपी जैसे राष्ट्रीय छात्र संगठनों के सामने अब वर्चस्व बचाने की चुनौती खड़ी हो गयी है। 2019 में निर्दलीय प्रत्याशी से छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर करारी हार मिलने के बाद दोनों संगठन जोर-शोर से नए मुद्दों के साथ चुनावी तैयारी में लग गए हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : छात्र संख्या के लिहाज से कुमाऊं के सबसे बड़े हल्द्वानी स्थित कॉलेज एमबीपीजी में एनएसयूआई और एबीवीपी जैसे राष्ट्रीय छात्र संगठनों के सामने अब वर्चस्व बचाने की चुनौती खड़ी हो गयी है। 2019 में निर्दलीय प्रत्याशी से छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर करारी हार मिलने के बाद दोनों संगठन जोर-शोर से नए मुद्दों के साथ चुनावी तैयारी में लग गए हैं। एमबीपीजी में छात्र संघ अध्यक्ष पद पर काबिज होने वाले संगठन का कुमाऊं भर में अपना अलग दबदबा रहा है। इसी के चलते यहां हर साल चुनावी सभा, रैलियों के दौरान छात्रों के गुटों के बीच जमकर मारपीट भी होती है। लेकिन पिछले साल निर्दलीय से हार मिलने के बाद दोनों संगठनों का काम और बढ़ गया है।
अब तक बने तीन निर्दलीय अध्यक्ष
एमबीपीजी के 13 साल के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए तो तीन बार अब तक छात्र संघ अध्यक्ष पद पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। 2014 में निर्दलीय संजय रावत, 2016 में नीरज महरा और 2019 में राहुल धामी ने जीत पाई थी।
2015 से नहीं जीता एनएसयूआई
एमबीपीजी में छात्र संघ चुनाव में पिछले कई साल से एबीवीपी का ही दबदबा रहा है। जबकि एनएसयूआई को 2015 में आखिरी बार छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर जीत मिली थी।
दोनों संगठन पांच-पांच बार जीते चुनाव
एबीवीपी ने पहली बार अधिकृत तौर पर छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर 2007 में अपना प्रत्याशी उतारा था। लेकिन इस बार एनएसयूआई ने जीत दर्ज की। 2009 में एबीवीपी से संजय सनवाल ने एनएसयूआई का तिलिस्म तोड़ा था। जबकि एनएसयूआई पहले से ही सक्रिय रही थी। 2007 से 2019 तक पांच बार एनएसयूआई व पांच बार एबीवीपी ने अध्यक्ष पद पर चुनाव जीता है।