आपदा ने छत छीन ली तो व्यवस्था ने संगिनी, जानिए पिथौरागढ़ में कैसे उजड़ा परिवार
भगवान की अजब ही लीला है पिथौरागढ़ के जिस परिवार ने जुलाई में आपदा में घर गंवाया था उसी घर की महिला को इलाज के अभाव में दम तोड़ना पड़ा। लोगों का कहना है कि यदि समय से एंबुलेंस आ जाती तो जान बच जाती।
जागरण संवाददाता, मदकोट (पिथौरागढ़) : सीमांत में चिकित्सा सुविधा के नाम पर सरकारी दावों की पोल गुरुवार को एक महिला की मौत ने खोल दी। दूरस्थ गांव में समय पर उपचार न मिल पाने से एक महिला ने दम तोड़ दिया। तहसील मुख्यालय से तीस किमी की दूरी पर स्थित जोशा गांव निवासी खगेंद्र फस्र्वाण की 30 वर्षीय पत्नी नीमा की बुधवार सायं से अचानक तबीयत खराब होने लगी। स्वजनों ने 108 एंबुलेस सेवा को फोन किया। जिस पर बताया गया कि मुनस्यारी से 108 सेवा द्वारा कालबैक की जाएगी। आधा घंटे बीतने के बाद भी काल नहीं आई। महिला की गंभीर होती हालत देख ग्रामीणों ने सीएचसी मुनस्यारी ले जाने के लिए निजी वाहन की व्यवस्था की। मुनस्यारी से 12 किमी पूर्व ही दरकोट के पहुंचने पर नीमा की मौत हो गई। स्वजनों का कहना है कि यदि समय से नीमा सीएचसी पहुंच जाती तो उसे बचाया जा सकता था। ग्रामीणों में भी इसको लेकर आक्रोश है। नीमा के सात और दो साल के बच्चे हैं।
छह माह पूर्व छत छिनी तो अब पत्नी
जुलाई में आई आपदा में खगेंद्र फस्र्वाण का मकान ध्वस्त हो गया था। तभी से परिवार टेंट में रह रहा है। छह माह से छत विहीन होने पर किसी तरह गुजर कर रहे खगेंद्र अब जीवन संगिनी की मौत से टूट गए हैं। ग्रामीण बताते हैं कि कड़ाके की ठंड में टेंट में दिन बिताकर खुद को स्वस्थ रख पाना बेहद मुश्किल है। अब दो छोटे बच्चों का पालन-पोषण खगेंद्र के बड़ी चुनौती है। सरकार को तत्काल पीडि़त परिवार की मदद करनी चाहिए।