panchayat election दूसरे व तीसरे चरण के मतदान में दिख सकता है पलायन का असर
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दूसरे और तीसरे चरण में पलायन का असर दिख सकता है। लोहाघाट और बाराकोट ब्लाक के कई गांव बुनियादी सुविधाओं के अभाव में खाली हो चुके हैं।
चम्पावत, जेएनएन : त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दूसरे और तीसरे चरण में पलायन का असर दिख सकता है। लोहाघाट और बाराकोट ब्लाक के कई गांव बुनियादी सुविधाओं के अभाव में खाली हो चुके हैं। कई गांवों में मतदाताओं की संख्या वोटर लिस्ट के अनुपात में काफी कम है। पंचायत चुनाव की हाल ही में प्रकाशित मतदाता सूचियों में कई ऐसे मतदाताओं के नाम शामिल हैं जो पांच साल के अंतराल में गांवों से पलायन कर चुके हैं या रोजगार की तलाश में घर से बाहर निकल चुके हैं।
चम्पावत जिले की 313 ग्राम पंचायतों के 84 गांव अथवा मजरे पलायन से खाली हो चुके हैं। कई गांवों में पलायन का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। सितंबर माह में जारी पलायन आयोग की रिपोर्ट भी इस बात की ताकीद करती है। रिपोर्ट के अनुसार चम्पावत जिले में 26 वर्ष से लेकर 35 आयु वर्ग के 45. 49 प्रतिशत युवा गांवों से पलायन कर चुके हैं। पलायन आयोग ने माना है कि युवाओं के पलायन के पीछे का प्रमुख कारण स्थानीय स्तर पर रोजगार न मिलना है। इसके अलावा बिजली, सड़क, अस्पताल और पेयजल की समस्या तथा जंगली जानवरों के आतंक से परेशान होकर भी कई संपन्न परिवार गांव छोड़कर शहर में बस गए हैं। चम्पावत ब्लाक में संपन्न हो चुके पहले चरण के मतदान में भी पलायन का असर देखने में आया था। वोटर लिस्ट में नाम होने के बाद भी घर छोड़ चुके लोग वोट नहीं कर पाए थे।
दूसरे चरण में लोहाघाट और बाराकोट तथा तीसरे चरण में पाटी में होने वाले पंचायत चुनाव में भी पलायन के चलते मतदान प्रतिशत में कमी आने की पूरी संभावना है। लोहाघाट ब्लाक में पंचायत चुनाव की वोटर लिस्ट में शामिल कुल 35443 मतदाताओं में से 2324, बाराकोट ब्लाक में कुल 25333 मतदाताओं में 3157 और पाटी ब्लाक में कुल 43193 मतदाताओं में 4122 मतदाता गांव से बाहर होने के कारण वोटिंग नहीं कर पाएंगे। इन आंकड़ों में वह मतदाता शामिल हैं, जो या तो स्थाई रूप से गांव छोड़ चुके हैं या फिर रोजगार के लिए बाहर गए हुए हैं। सूत्रों को अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों ने वोटर लिस्ट में पलायन कर चुके लोगों के नाम इसलिए लिखवा दिए ताकि उन्हें बुलाकर अपने हक में मतदान करवा सकें। लेकिन पहले चरण में सम्पन्न चुनाव से यह बात साफ हो गई है कि अधिकांश मतदाता बुलावे के बाद भी वोटिंग के लिए नहीं पहुंच पाए, जिसका असर ग्राम पंचायतों के मतदान प्रतिशत पर पड़ा।