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मदसरा शिक्षकों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए आईआईएम दे रहा है प्रशिक्षण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने साकार करने के मकसद से भारतीय प्रबंधन संस्‍थान (आइआइएम) काशीपुर विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 08:22 AM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 08:22 AM (IST)
मदसरा शिक्षकों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए आईआईएम दे रहा है प्रशिक्षण
मदसरा शिक्षकों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए आईआईएम दे रहा है प्रशिक्षण

काशीपुर, अभय पाण्डेय : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने साकार करने के मकसद से भारतीय प्रबंधन संस्‍थान (आइआइएम) काशीपुर विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है। मदरसा शिक्षकों के लिए एक कार्यकारी विकास प्रोग्राम (ईडीपी) चलाया जा रहा है। उत्तर भारत के करीब 50 मदरसा शिक्षकाें के लिए शुरू हुआ विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम तीन चरणों में चलाया जाएगा। पहले चरण में 50 शिक्षकों को चयनित किया गया है। इसका मकसद मदरसा शिक्षकों को भी आधुनिकता शिक्षा से जोड़कर शिक्षण पद्धति, मूल्यांकन कौशल और नेतृत्व कौशल प्रदान करना है। प्रशिक्षित शिक्षकों के माध्‍यम से ही छात्रों के दृष्टिकोण व सोच में भी बदलाव लाया जा सकेगा। पहला प्रशिक्षण सत्र तो पूरा हो गया है लेकिन दूसरा सत्र अगले महीने आॅनलाइन किया जा सकता है। हालांकि आॅनलाइन पर न के बराबर मदरसा शिक्षकों की निर्भरता इस पूरे मुहिम के लिए मुश्किल पैदा कर रही है।

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आआइएम काशीपुर ने चलाया पहला ट्रेनिंग प्रोग्राम

आइआइएम काशीपुर ने मदरसा शिक्षकों के लिए पहला ट्रेनिंग प्रोग्राम लॉकडाउन से पहले 2 मार्च सं 14 मार्च तक चलाया गया। जिसमें पहले चरण में 17 शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें शिक्षा प्रबन्धन तथा आधुनिक शिक्षा के बारे में अवगत कराया गया। संस्थान के निदेशक प्रो. कुलभूषन बलूनी ने बताया कि "शिक्षा का आदान प्रदान द्विपक्षीय है। आइआइएम काशीपुर सनातन सहयोग मदरसों के साथ रहेगा ताकि सभी संस्थान मिल कर देश निर्माण में सहयोग कर सकें।" इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा व बिहार के मदरसा शिक्षक शामिल हैं। दूसरा प्रोग्राम जुूलाई में होना था लेकिन कोविड के चलते ट्रैनिंग को टालना पड़ा है।

प्रशिक्षण की क्यों पड़ी जरूरत

आइआइएम के डीन प्रो. बहारुल इस्लाम बताते हैं कि बदलते वक्त के साथ शैक्षणिक संस्थानों में नए प्रयोगों व समाज को आगे ले जाने वाले संसाधनाें को अपनाने की जरूरत होती है। मदरसों को तालीम के लिए बनाया गया था। वक्त के साथ जब मदरसों में छात्रों की संख्या बढ़ी तो सबको ये महसूस हुआ कि इस्लामी तालीम हासिल करके रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता है। इसलिए 80 के दशक में कुछ मदरसों में दूसरे स्कूलों की तरह हिंदी, अंग्रेजी और दूसरी भाषाएं भी पढ़ाई जाने लगीं। लेकिन ये व्यवस्था कुछ ही मदरसों तक कायम हो सकी जबकि अधिकांश मदरसे अभी तक इस्लाम की तालिम तक ही सीमित हैं, जबकि आज की दुनिया में अाधुनिक शिक्षा की जरूरत है । वहीं विभिन्न धर्म के लोगों से जानकारियां साझा करने के मकसद से इनकों गुरुद्वाराें भी भ्रमण भी कराया गया।

मदरसा शिक्षकोंं के पास नहीं था अपना ईमेल एकाउंट

प्रशिक्षण के दौरान मौजूद 50 शिक्षकों में अधिकांश के पास अपना ईमेल एकाउंट तक नहीं था। मदरसा प्रोग्राम इंचार्ज साना फातिमा ने बताया कि शिक्षकों को प्रशिक्षण में आधुनिक तकनीक से जोड़ने का प्रयास किया गया है। उन्होंने हैरत जताई कि डिजिटल युग में अधिकांश लोगों के पास अपने सोशल एकाउंटस या ईमेल एकाउट तक नहीं थे। आज की शिक्षा में इंटरनेट की उपयोगिता समझाते हुए उन्हें समय के साथ चलने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। आईआईएम काशीपुर के डीन एकैडमिक्स प्रो. बहारूल इस्लाम ने बताया कि हमारे लिए गर्व की बात है कि हम देश के प्रधानमंत्री के सपने को मूर्त रूप देने में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं। आइआइएम काशीपुर 50 मदरसा शिक्षकों को प्रशिक्षित कर रहा है। प्रशिक्षण के दूसरे फेज की घोषणा जल्द कि जा सकती है।

मदरसों की शिक्षा व्यवस्था बेहतर करने में जुटी सरकार

प्रो. साजिद जमाल, शिक्षा संकाय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने जागरण को बताया कि अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय अगले पांच साल में पांच करोड़ अल्पसंख्यक छात्रों को प्री-मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देगी। इस स्कॉलरशिप में 50 फीसदी हिस्सा लड़कियों का होगा। सरकार के फैसले के मुतबिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की लड़कियों के लिए बेगम हजरत महल बालिका स्कॉलरशिप दी जाएगी। देश भर के मदरसों का आधुनिकीकरण किया जाएगा। अब इन मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और कंप्यूटर जैसे सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाएंगे।


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