Move to Jagran APP

कारगिल युद्ध में बम से जख्मी हुए तो तीन माह बार फिर पाक के उग्रवाद के खिलाफ थाम लिया मोर्चा

कारगिल युद्ध का जिक्र होते ही यहां रामनगर के मदनपुर बोरा छोई निवासी रिटायर्ड कैप्टन बहादुर सिंह भंडारी की भुजाएं फड़कने लगती हैं।

By Edited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 05:19 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 04:21 PM (IST)
कारगिल युद्ध में बम से जख्मी हुए तो तीन माह बार फिर पाक के उग्रवाद के खिलाफ थाम लिया मोर्चा
कारगिल युद्ध में बम से जख्मी हुए तो तीन माह बार फिर पाक के उग्रवाद के खिलाफ थाम लिया मोर्चा

रामनगर, विनोद पपनै : कारगिल युद्ध का जिक्र होते ही यहां रामनगर के मदनपुर बोरा छोई निवासी रिटायर्ड कैप्टन बहादुर सिंह भंडारी की भुजाएं फड़कने लगती हैं। जब भी सीमा पर दुश्मन से जंग की बात हो तो भंडारी फिर से युद्धभूमि मे जाने की बात करने लगते हैं।

loksabha election banner

कारगिल युद्ध का याद करते हुए वह कहते हैं कि 14 जुलाई 1999 का वह दिन हमारे लिए महत्वपूर्ण था। हमारी स्पेशल फोर्स टुकड़ी को द्रास सेक्टर में तैनात किया गया था। इस दौरान हमारी टुकड़ी ने दुश्मन द्वारा की जा रही फायरिंग व आर्टिलरी फायरिंग के बीच मारपोला बेस, मारपोला टॉप, परौक एरिया, ट्राई जंक्शन और जुल्लूवन एरिया को दुश्मन से अपने कब्जे में ले लिया था। इस मिशन में हमारी स्पेशल फोर्स को अपने नौ जवानों की आहुति देनी पड़ी। उनके बलिदान ने जीत का रास्ता तय किया, हम दुश्मन के बीचोंबीच उसके इलाके में काफी अंदर तक घुस गए।

हमारी दूसरी बटालियनों ने इसका फायदा उठाते हुए जतोलोलिंग और टाइगर हिल्स जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर जीत दर्ज करते हुए तिरंगा फहराया। उस दिन हम सभी के चेहरों पर जोश और जुबान पर भारत माता की जयकार और आखों में खुशी के आंसू थे। 14 जुलाई की रात एक विशेष अभियान के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों से आमने-सामने की जंग में दुश्मन की ओर से फेंके गए बम की सीधी चोट से वह बुरी तरह जख्मी हो गए। वहां से उन्हें हेलीकॉप्टर से सीधे श्रीनगर तथा उसके बाद कमाड हॉस्पिटल ऊधमपुर भेजा गया। तीन महीने बाद वह स्वस्थ्य होकर पुंछ सेक्टर में पाकिस्तान के उग्रवाद के खिलाफ अभियानों में शामिल हो गए।

वह कहते हैं आज जब भी सीमापार से कोई अप्रिय सूचना आती है तो उनकी भुजाएं फड़कने लगती हैं। बता दें कि रिटायर्ड कैप्टन बहादुर सिंह भंडारी ने 1981 में आर्मी ज्वाइन की थी। तब से अपने नाम की तरह उनकी बहादुरी के किस्से किसी से छिपे नहीं हैं। 2002-03 में कश्मीर में दुश्मन के खिलाफ वीरता दिखाने के लिए उन्हे राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1984-85 में वह ऑपरेशन ब्लू स्टार में शामिल रहे। वह श्रीलंका में भारतीय शाति सेना का भी हिस्सा रहे। रामनगर निवासी इस फौजी ने अपनी जाबाजी की अनेक मिसालें देश के सामने पेश की हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.