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एक बार फिर जीवन की बाजी दांव पर लगााएंगे दुलर्भ वन्य जीव, जानिए कैसे

उच्च हिमालयी दुलर्भ वन्य जीवों को साल में दो बार अपना जीवन दांव पर लगाना पड़ता है। प्रकृति के नियमों के हिसाब से साल में दो बार अलग-अलग स्थानों पर प्रवास करना पड़ता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 11:38 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 08:41 PM (IST)
एक बार फिर जीवन की बाजी दांव पर लगााएंगे दुलर्भ वन्य जीव, जानिए कैसे
एक बार फिर जीवन की बाजी दांव पर लगााएंगे दुलर्भ वन्य जीव, जानिए कैसे

पिथौरागढ़, जेएनएन : उच्च हिमालयी वन्य जीवों और पक्षियों के लिए एक बार फिर परीक्षा का समय आ चुका है। प्रवास के लिए नए स्थल पर पहुंचने से पूर्व कई बार सामने खड़ी मौत से बचाव के साथ सुरक्षित पहुंचना बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को पार करने के बाद भी वन्य जीवों की अठखेली और पक्षियों का कलरव मध्य हिमालय में सुनाई देगी।

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उच्च हिमालयी दुलर्भ वन्य जीवों को साल में दो बार अपना जीवन दांव पर लगाना पड़ता है। प्रकृति के नियमों के हिसाब से साल में दो बार अलग-अलग स्थानों पर प्रवास करना पड़ता है। ग्रीष्मकालीन प्रवास को इनका प्राकृतिक निवास है, शीतकालीन प्रवास के लिए इन्हें दूसरे के घरों पर आकर रहना पड़ता है। इस दौरान उच्च हिमालय हिमाच्छादित हो जाता है। तीन हजार मीटर से ऊपर निवास करने वाले वन्य जीव और पक्षी नीचे आते हैं। जिसमें से कई वन्य पशु और पक्षी ऐसे होते हैं जो बर्फ के अनुसार नीचे उतरते हैं और हिमरेखा के करीब अपना आवास बनाते हैं।

वन्य जीव और पक्षी तो अपने नियम चक्र के अनुसार नीचे उतरते हैं मार्ग में चलने वाले वन्य जीव हों या आसमान में उडऩे वाले पक्षी सभी पर बंदूके तनी रहती हैं। हल्की सी चूक में पशु और पक्षियों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। जिसमें सबसे अधिक प्रभावित राजकीय पशु कस्तूरा और पक्षी मोनाल होते हैं।

बेरहमी से शिकारी करते हैं पक्षियों का शिकार

कस्तूरा और मोनाल पड़ाव दर पड़ाव नीचे उतरते हैं। जहां तक बर्फ गिरी होती है उसके आसपास पड़ाव बनाते हैं। इससे भिज्ञ शिकारी इन स्थानों पर पहले ही तैयारी कर चुके होते हैं। कहीं पर बंदूक तनी होती है तो कई बुग्यालों के चारों पर आग लगाने को घास के घेरे बने होते हैं। तो कुछ स्थानों पर तार और रस्सी के फंदे लगे रहते हैं। सबसे निर्मम शिकार बुग्यालों में आग लगा कर किया जाता है। कस्तूरा कार्तिक माह में प्रजनन करते हैं। जब नीचे उतरते हैं तो उनके साथ छोटे मेमने होते हैं। बुग्यालों में चारों तरफ आग लगा दिए जाने से सबसे अधिक नाजुक मेमने इसके शिकार होते हैं।

थार, भरल , बरड़ और भालू भी आ जाते हैं लपेट में

उच्च हिमालय से शीतकाल में नीचे की तरफ आने वाले थार, भरल,बरड़, और भालू भी शिकारियों के बिछाए जाल में फंसते हैं। भालू का शिकार उसकी पित्ती के लिए होता है तो थार, भरल, बरड़ आदि का शिकार मांस के लिए होता है। जिसमें थार के मांस को   विशेष माना जाता है। थार भी संरक्षित श्रेणी में शामिल है।

रक्षक प्रकृति के आगे रहते हैं लाचार

एक तरफ इन वन्य जीवों और पक्षियों को संरक्षित श्रेणी में रखा गया है दूसरी तरफ इनकी सुरक्षा के लिए  इंतजाम केवल औपचारिक हैं। सुरक्षा के लिए वन कर्मियों की कमी , संसाधनों की कमी और भौगोलिकता आड़े आ जाती है। अवैध शिकारी तो शिकार के लिए सभी व्यवस्थाएं कर लेते हैं परंतु वन विभाग शिकार की घटनाएं घटने के बाद हरकत में आता है । वह भी मात्र खानापूर्ति होती है।

वन कर्मियों के दल क्षेत्र में करेंगे गश्त

पूरन सिंह देऊपा , वन क्षेत्राधिकारी, मुनस्यारी ने बताया कि वन विभाग अवैध शिकार रोकने को तैयार है। कर्मचारियों को इसके लिए तैनात किया गया है। वन कर्मियों के दल क्षेत्र में गश्त लगाएंगे। इसके लिए स्थानीय लोगों का सहयोग भी मांगा जा रहा है। अवैध शिकारियों को पकड़े जाने पर उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।

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