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प्राकृतिक स्थल पर संरक्षित होगी हिमालयी वनस्पति, जानिए क्‍या है योजना nainital news

वन अनुसंधान केंद्र अब उन प्रजातियों को चिह्नित करने में जुटा है जिन्हें प्राकृतिक स्थल से बाहर निकालने पर दिक्कत हो सकती है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 02 Jan 2020 12:50 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jan 2020 12:50 PM (IST)
प्राकृतिक स्थल पर संरक्षित होगी हिमालयी वनस्पति, जानिए क्‍या है योजना nainital news
प्राकृतिक स्थल पर संरक्षित होगी हिमालयी वनस्पति, जानिए क्‍या है योजना nainital news

हल्द्वानी, जेएनएन : वन अनुसंधान केंद्र अब उन प्रजातियों को चिह्नित करने में जुटा है, जिन्हें प्राकृतिक स्थल से बाहर निकालने पर दिक्कत हो सकती है। उच्च हिमालयी क्षेत्र की कई प्रजातियों को पहले मैदानी भाग में संरक्षित किया जा चुका है, पर इन वनस्पतियों की दुर्लभता के कारण मूल जगह पर ही घेराबंदी कर इन्हें बचाया और बढ़ाया जाएगा। 2700 से 4000 मीटर ऊंचाई पर फिलहाल इनकी मौजूदगी है। औषधीय महत्व होने के कारण इनका दोहन भी बड़ी मात्रा में होता है। ऐसे में केंद्र के लिए इस चुनौती से निपटना भी जरूरी होगा।

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दुर्लभ वनस्पतियों को किया जाएगा संरक्षित

वन अनुसंधान केंद्र का काम दुर्लभ वनस्पतियों को पहचानने के साथ उन्हें संरक्षित करना है। उनके महत्व को प्रमाणिक रूप से सिद्ध करने के लिए रिसर्च भी किया जाता है। बदरीनाथ के आसपास पहले मिलने वाली बदरी तुलसी को केंद्र लालकुआं में संरक्षित कर चुका है। औषधीय व दुर्लभ होने के अलावा धार्मिक महत्व की प्रजातियों को भी सहेजा जा रहा है। अब पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी में हिमालयी रेंज में मिलने वाली उन प्रजातियों का डाटा तैयार किया जा रहा है, जिन्हें प्राकृतिक वासस्थल पर ही संरक्षित करना है।

सालम पंजा, जटामासी व काकोली शामिल

वन अनुसंधान केंद्र के अधिकारियों के मुताबिक, इन तीन जिलों में मिलने वाली सालम पंजा, जटामांसी, अष्टवर्ग की दो प्रजाति काकाली व छीर काकोली के अलावा नाग दमयंती और वनसतुवा इस दुर्लभ प्रजाति में शामिल है। पेट संबधित, श्वांस रोग व प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में इन्हें कारगर माना जाता है।

जीपीएस में दर्ज होगी लोकेशन

स्थल चिह्नित करने के बाद उस क्षेत्र को जीपीएस सिस्टम में फीड में किया जाएगा। सुरक्षा और निगरानी पर फोकस रहेगा, ताकि प्रजातियों में होने वाले हर छोटे से बदलाव का प्रमाण भी मिल सके। मैदानी क्षेत्र में लैंटाना नामक घास स्थानीय वनस्पतियों के लिए घातक मानी जाती है। जिन प्रजातियों से इन हिमालयी वनस्पतियों को खतरा होता होगा, उन्हें भी चिह्नित किया जाएगा।

सर्वे पूरा होने पर स्‍पष्‍ट हो जाएगी स्थिति

संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक अनुसंधान ने बताया कि सर्वे पूरा होने पर पता चल जाएगा कि किन वनस्पतियों को प्राकृतिक स्थल पर ही संरक्षित करना बेहतर रहेगा। दुर्लभ और औषधीय महत्व की यह प्रजातियां उच्च हिमालयी इलाके में मिलती हैं।

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