देवस्थानम बोर्ड को लेकर दायर याचिका मामले में सुब्रह्मण्यम स्वामी व सरकार से जवाब तलब
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन को लेकर दायर जनहित याचिका में रूलक संस्था को पक्षकार बनाने को लेकर दायर प्रार्थनापत्र पर गुरुवार को सुनवाई की।
नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड हाई कोर्ट ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन को लेकर दायर जनहित याचिका में रूलक संस्था को पक्षकार बनाने को लेकर दायर प्रार्थनापत्र पर गुरुवार को सुनवाई की। कोर्ट ने मामले में याचिकाकर्ता सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और राज्य सरकार से जवाब तलब कर लिया। अगली सुनवाई 11 जून को होगी।
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में देहरादून की रूलक संस्था के प्रर्थनापत्र पर सुनवाई हुई, जिसमें सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका में पक्षकार बनाने की बात कही गई। संस्था का कहना है कि सरकार की ओर से पारित चारधाम देवस्थानम एक्ट सही और जनहित में है। बोर्ड की ओर से ही मंदिरों की देखभाल की जानी चाहिए। इसमें किसी भी हिन्दू धार्मिक भावनाओं का हनन नहीं हो रहा। संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन नहीं हो रहा। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने प्रार्थनापत्र पर आपत्ति दाखिल करने के लिए 11 जून तक का समय दिया है।
भाजपा के राज्य सभा सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार की ओर से चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लाया गया देवस्थानम बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है। देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से चारधाम समेत 52 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है।
24 फरवरी स्वामी ने दायर की थी याचिका
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इसी साल 24 फरवरी को सरकार की ओर से बनाए गए देवस्थानम ऐक्ट के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि सिद्धांत के खिलाफ यदि पार्टी काम करती है तो उसे रास्ते पर लाना कार्यकर्ताओं की प्रमुखता होनी चाहिए। पत्रकारों से बातचीत में स्वामी ने कहा था कि 2014 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें कोर्ट ने आदेश दिए थे कि सरकार मंदिरों को अपने हाथ में नहीं ले सकती है, लेकिन उसकी वित्तीय व्यवस्थाओं में सुधार किया जा सकता है। हालांकि व्यवस्थाएं दुरुस्त कर उसे मंदिर समिति को ही वापस करना होगा। उन्हाेंने कहा कि सरकार का काम मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि चलाना नहीं है। मंदिरों की धनराशि का दुरुपयोग न हो, इसके लिए मंदिरों को सरकार नहीं, बल्कि पुजारी और अन्य पदाधिकारी ही चलाएं।
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