25 की उम्र में गंवाया पैर, 57 की उम्र में बने प्रेरणास्रोत
अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस पर हर साल उत्कृष्ट कार्य करने वाले दिव्यांगों को सरकार सम्मानित करेगी।
भानु जोशी, हल्द्वानी : अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर हर साल उत्कृष्ट कार्य करने वाले दिव्यांगों को सम्मानित किया जाता है। तमाम कठिनाइयों के बाद भी जिंदगी जीने का हौसला असल में दिव्यांगों से बेहतर और किसी से नहीं सीखा जा सकता है। यही हौसला और जज्बा 57 साल के गिरिजा शंकर वर्मा में भी है। महज 25 साल की युवावस्था में एक दुर्घटना में एक पांव खो देने के बाद भी उन्होंने जिंदगी जीने का हौसला नहीं छोड़ा। दूसरों पर आश्रित रहने के बजाय उन्होंने खुद मेहनत का रास्ता चुना। मेहनत रंग लाई और आज वे राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आइटीआइ) हल्द्वानी में कार्यदेशक (फोरमैन) हैं। उनकी इसी मेहनत और लगन को देखते हुए राज्य सरकार ने इस साल अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर सम्मानित होने वाले दिव्यांगों में उन्हें भी शामिल किया है।
1983 में पहली बार लगी नौकरी
गिरिजा शंकर वर्मा का बचपन से ही खेलों की तरफ ज्यादा झुकाव था। 1983 में पहली बार उन्होंने पाइन्स आइटीआइ नैनीताल में इंस्ट्रक्टर के पद पर नौकरी की। सब कुछ ठीक चल रहा था तभी 1987 में एक दुर्घटना में उन्हें गंभीर चोट लगी।
कैंसर के चलते काटना पड़ा पैर
दुर्घटना के बाद घाव जल्द भर गए, लेकिन दाएं पैर में कैंसर हो गया। इसके चलते वे सफदरजंग अस्पताल दिल्ली में भर्ती रहे। डाक्टरों ने कैंसर फैलने से रोकने के लिए पैर काटने का निर्णय लिया। इसके बाद वे कई दिनों तक घर पर रहे। 1996 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा देकर वह फिर से जिंदगी की पटरी पर आ गए। उनकी तैनाती आइटीआइ में बतौर इंस्ट्रक्टर हुई। इसके बाद उन्होंने रानीखेत, अल्मोड़ा के कई आइटीआइ में सेवा दी। वर्तमान में वे हल्द्वानी युवक आईटीआई में कार्यरत हैं। इस अवधि में हजारों युवाओं ने उनसे तकनीकी गुर सीखकर अपने सपनों को पूरा किया।