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उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मामले को हाई कोर्ट में चुनौती मिलने के बाद प्रदेश सरकार अलर्ट

24 जुलाई 2006 को तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में शासनादेश जारी किया गया। 2001 के शासनादेश को संशोधित करते हुए राज्याधीन सेवाओं निगमों सार्वजनिक उद्यमों व स्वायत्तशासी संस्थाओं में उत्तराखंड की महिलाओं को दिए जा रहे क्षैतिज आरक्षण को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 07 Aug 2022 10:06 AM (IST)Updated: Sun, 07 Aug 2022 10:06 AM (IST)
उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मामले को हाई कोर्ट में चुनौती मिलने के बाद प्रदेश सरकार अलर्ट
एनडी तिवारी सरकार के कार्यकाल में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को मिला था 30 प्रतिशत आरक्षण

किशोर जोशी, नैनीताल : उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की नियुक्तियों में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मामले को हाई कोर्ट में चुनौती मिलने के बाद प्रदेश सरकार अलर्ट हाे गई है। सरकार पर राज्य आंदोलनकारी संगठनों, कांग्रेस व अन्य दलों के अलावा सत्ताधारी दल का भी मजबूत पैरवी का दबाव है।

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सरकार अपनाएगी हर संवैधानिक अधिकार

महिला अभ्यर्थियों के क्षैतिज आरक्षणका राज्य आंदोलनकारियों के आरक्षण जैसा हश्र ना हो, इसको लेकर सरकार जवाब दाखिल करने में सारे संवैधानिक हथियार आजमा लेना चाहती है। ताकि आरक्षण बरकरार रहे। हाई कोर्ट में सरकार के उच्चपदस्त अधिवक्ताओं ने साफ किया है कि सरकार महिला आरक्षण के पक्ष में है, और जल्द जवाब दाखिल करेगी।

कार्मिक सचिव राकेश शर्मा जारी किया था शासनादेश

अलग राज्य बनने के बाद 16 जुलाई 2001 में तत्कालीन कार्मिक सचिव राकेश शर्मा की ओर से राज्याधीन सेवाओं, शिक्षण संस्थाओं, सार्वजनिक उद्यमों, निगमों तथा स्वायत्तशासी संस्थाओं में आरक्षण को लेकर शासनादेश जारी किया गया था। जिसमें एससी को 19 प्रतिशत, एसटी को चार, ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया।

एनडी तिवारी सरकार ने 20 से 30 प्रतिशत किया

होरिजेंटल या क्षैतिज आरक्षण में महिलाओं को 20 प्रतिशत, पूर्व सैनिकों को दो प्रतिशत, दिव्यांगों को तीन प्रतिशत, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रितों को दो प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। 24 जुलाई 2006 को तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल की ओर से शासनादेश जारी किया गया।

शासनादेश में यह बात भी साफ

2001 के शासनादेश को संशोधित करते हुए राज्याधीन सेवाओं, निगमों, सार्वजनिक उद्यमों व स्वायत्तशासी संस्थाओं में उत्तराखंड की महिलाओं को दिए जा रहे क्षैतिज आरक्षण को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया। उस शासनादेश में यह भी साफ किया गया था कि यह क्षैतिज आरक्षण उन मामलों में लागू नहीं होगा, जहां चयन प्रक्रिया लागू हो गई है।

महिला आरक्षण के पक्ष में सरकार करेगी मजबूत पैरवी

राज्य लोक सेवा आयोग के पदों के लिए परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों को को 30 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने के लिए प्रदेश सरकार हाई कोर्ट में मजबूत पैरवी करेगी। प्रदेश सरकार की ओर से संकेतमिलने के बाद इस मामले में जवाब तैयार किया जा रहा है।

खुद महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर व मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत जवाब तैयार करने में जुटे हैं। मामले में बहस के दौरान किसी तरह चूक ना हो, इसके लिए उच्चतम न्यायालय के इससे संबंधित महत्वपूर्ण आदेश का अध्ययन किया जा रहा है।

आंध्र प्रदेश का आदेश बनेगा सरकार का आधार

महिला आरक्षण को बरकरार रखने के लिए सरकार हर कानूनी मोर्चे पर मजबूत तैयारी कर रही है। सुप्रीम कोर्ट का आंध्र प्रदेश सरकार बनाम पीबी विजय कुमार से संबंधित 12 मई 1995 का आदेश बेहद अहम माना जा रहा है।

जिसमें साफ कहा है कि अवसर की कमी के कारण महिलाओं के बीच पिछड़ापन पैदा कर दिया है। आरक्षण पिछड़ेपन पर काबू पाने केलिए संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त तरीकों में से एक है। संविधान के अनुच्छेद-15(3) में इस तरह के आरक्षण की अनुमति है।

उदाहरण के लिए योग्यता सूची में योग्यता क्रम में पुरुष व महिलाएं 20 उम्मीदवार हैं, जिनके समान अंक हैं, केवल दस पद हैं, जिन्हें इन 20 उम्मीदवारों के बीच वितरीत करना है, ऐसे में इन दस पदों में से तीन पद महिलाओं को दिए जाएंगे जबकि शेष 17 उम्मीदवारों में से आवंटित करने होंगे।

यह भी बताया है कि नियम 22-ए (2) महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत की न्यूनतम वरीयता निर्धारित करता है। जहां पर्याप्त संख्या में महिलाएं उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें वरीयता दी जा सकती है, जो 30 प्रतिशत से कम हो सकती हैं।


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