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भले कोई कुछ कहे, विरोधियों को घेरने और पार्टी पक्ष में माहौल बनाने में फर्स्‍ट हैं हरदा

सत्ता गंवाने के साढ़े तीन साल बाद भी विपक्षी खेमे में हरीश रावत के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी बातों का जवाब सीधा मुख्यमंत्री की तरफ से आता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 10:20 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 08:09 AM (IST)
भले कोई कुछ कहे, विरोधियों को घेरने और पार्टी पक्ष में माहौल बनाने में फर्स्‍ट हैं हरदा
भले कोई कुछ कहे, विरोधियों को घेरने और पार्टी पक्ष में माहौल बनाने में फर्स्‍ट हैं हरदा

हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : लॉकडाउन के दौरान सत्ता को घेरने के लिए प्रदेश कांग्रेस के दिग्गजों ने खूब बयानबाजी की। तेल के दाम में बढ़ोतरी से लेकर क्वारंटाइन सेंटर की बदहाली व लचर स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर जिले से लेकर राजधानी देहरादून तक प्रदर्शन हुए, मगर सरकार ने कुछ खास तवज्जो नहीं दी। वहीं, दिल्ली से पहुंचे पूर्व सीएम हरीश रावत ने क्वारंटाइन पीरियड पूरा कर पिछले एक महीने में चंद कार्यक्रम कर सोशल मीडिया पर अपने अंदाज में सियासी शब्दबाण छोड़े तो सरकार को जवाब देना पड़ा।

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हकीकत यह है कि सत्ता गंवाने के साढ़े तीन साल बाद भी विपक्षी खेमे में हरीश रावत के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी बातों का जवाब सीधा मुख्यमंत्री की तरफ से आता है। उसके बावजूद कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रप हरदा की अहमियत समझने को तैयार नहीं। विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बावजूद हाईकमान ने हरीश रावत को राष्ट्रीय महासचिव बनाने के साथ असम प्रभारी की जिम्मेदारी भी सौंपी। उसके बावजूद प्रदेश की राजनीति में उनकी सक्रियता कम नहीं हुई। उत्तराखंड से बाहर रहने के दौरान भी वह फेसबुक पोस्ट व ट्वीट के जरिये सरकार को घेरते रहे। दून की सड़क पर जब उन्होंने बैलगाड़ी की सवारी करने के बाद राजभवन तक पदयात्रा निकाली तो प्रदेश की सियासत भी गर्मा गई। हरदा के सियासी कार्यक्रमों की फेहरिस्त अभी और बाकी थी कि खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संक्रमण को देखते हुए सड़कों पर आंदोलन नहीं करने की गुजारिश कर डाली। जिस पर हरदा मान भी गए। सीएम ने इसके लिए आभार भी जताया। उसके बावजूद प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता हरदा और उनके अंदाज को पचा नहीं पा रहे। ऐसे में 2022 की राह बड़ी मुश्किलों वाली रहेगी।

वेबिनार से उठाए पहाड़ के मुद्दे

उत्तराखंड में सोशल मीडिया पर हरीश रावत सबसे ज्यादा प्रशंसकों वाले नेता है। लॉकडाउन के दौरान जहां भाजपा वर्चुअल रैलियों के जरिये कार्यकर्ताओं में जोश भर रही है। वहीं, हरदा वेबिनार व फेसबुक लाइव के जरिये पहाड़ के मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। इसे 2022 की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है।

सुर और राग एक जैसा कब होगा

हाल में दून में कांग्रेस की प्रदेशस्तरीय बैठक हुई। जिसमें पूर्व सीएम हरीश रावत, पीसीसी अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश समेत अन्य दिग्गज जुटे और संगठन की मजबूती पर मंथन किया। मगर दून से लौटते ही गुटबाजी शुरू हो गई। नेता प्रतिपक्ष ने पहले कहा कि बगैर कार्यक्रम के हरीश रावत को नींद नहंी आएगी। अब कह दिया कि बागियों की वापसी को लेकर किसी भी निर्णय का अधिकार पूर्व सीएम को नहीं। आगे कहा कि यह फैसला हाईकमान लेगा। जबकि हरीश रावत खुद बतौर राष्ट्रीय महासचिव केंद्रीय नेतृत्व का हिस्सा है।

हरदा गलत नहीं, मगर पार्टी की राय जरूरी : अनुग्रह

इस पूरे मामले पर कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह कहते हैं कि बागियों ने बतौर मुख्यमंत्री हरीश रावत को धोखा दिया था। बतौर राष्ट्रीय महासचिव उनका बयान गलत नहीं है। मगर किसी की पार्टी में वापसी का फैसला लेने से प्रदेश कांग्रेस से राय लेना जरूरी है। इससे पूर्व भी कुछ नेता दोबारा संगठन में लौटे थे। तब भी आपसी चर्चा हुई थी।

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