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वन विभाग ठुलीगाढ़ में तैयार करेगा च्यूरा की नर्सरी, सुधरेगी पहाड़ की आर्थिकी

च्यूरा को कल्प वृक्ष के नाम से जाना जाता है। इसके फूलों से मधुमक्खियां पौष्टिक शहद तैयार करती हैं तो इसके तने से वनस्पति घी और साबुन तैयार किया जाता है। वहीं इसके तैयार वनस्पति घी 200 रुपया प्रति किलो तक बेचा जाता है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 04:16 PM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 04:16 PM (IST)
वन विभाग ठुलीगाढ़ में तैयार करेगा च्यूरा की नर्सरी, सुधरेगी पहाड़ की आर्थिकी
च्यूरा को इंडियन बटर ट्री के नाम से भी जाना जाता है।

जागरण संवाददाता, चम्पावत : करीब चार माह पूर्व जनपद दौरे पर पहुंची सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की मंशा के अनुरूप जनपद में वन विभाग ने च्यूरा पौध पर काम करना शुरू कर दिया है। च्यूरा पौध की नर्सरी तैयार करने के लिए वन विभाग ने बूम रेंज के ठुलीगाढ़ में करीब दो हेक्टेयर भूमि में 50 हजार की पौध तैयार करने को प्रस्ताव जिला प्रशासन को भेजा है। नर्सरी के लिए वन विभाग ने क्षेत्र में मौजूद झाडिय़ों का भी कटान शुरू कर दिया है।

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जलवायु को समझने और भविष्य में लोगों को च्यूरा वृक्ष से रोजगार देने के लिए विभिन्न जनपदों में उगने वाले च्यूरा वृक्ष को जनपद में अधिक मात्रा में लगाया जाएगा। च्यूरा को कल्प वृक्ष के नाम से जाना जाता है। इसके फूलों से मधुमक्खियां पौष्टिक शहद तैयार करती हैं तो इसके तने से वनस्पति घी और साबुन तैयार किया जाता है। च्यूरा से तैयार किए गए एक साबुन की कीमत बाजार में 80 से 150 रुपये है। वहीं इसके तैयार वनस्पति घी 200 रुपया प्रति किलो तक बेचा जाता है। इतने गुणकारी पौध की नर्सरी तैयार करने के लिए वन विभाग ने कवायद शुरू कर दी है।

डीएफओ मयंक शेखर झा ने बताया कि सीएम रावत की मंशा के अनुरूप बूम रेंज के ठुलीगाढ़ क्षेत्र में खाली पड़ी करीब दो हेक्टेयर में च्यूरा की नर्सरी तैयार की जाएगी। इसके लिए जिला प्रशासन को करीब नौ लाख का प्रस्ताव भेजा गया है। यह दो वित्तीय वर्ष में तैयार होगी। प्रति वर्ष 25-25 हजार पौध तैयार होगी। जून माह में नर्सरी तैयार करने के लिए बीज मंगा लिए गए हैं। झाडिय़ों की भी सफाई शुरू कर दी गई है। पानी की आपूर्ति व अन्य व्यवस्थाओं के लिए जिला प्रशासन को प्रस्ताव भेजा गया है। 

बटर ट्री के नाम से भी जाना जाता है च्यूरा 

च्यूरा को इंडियन बटर ट्री के नाम से भी जाना जाता है। चम्पावत जिले के अलावा पिथौरागढ़ अल्मोड़ा, बागेश्वर में यह बड़ी मात्रा में उगता है। चम्पावत के काली, सरयू, पूर्वी रामगंगा और गोरी गंगा नदी घाटियों में यह बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इसका फल बेहद मीठा होता है। फल के बीज से घी बनाया जाता है। अब तक कुछ गांवों में लोग इससे सीमित मात्रा में घी बनाकर उपयोग में लाते थे। च्यूरा की पत्ती चारे के रूप में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी भी इमारत के रूप में प्रयोग की जाती है। यह करीब 12 से 15 फिट का पेड़ होता है। 

तीन हजार फिट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है च्यूरा 

च्यूरा का वनस्पति नाम डिप्लोनेमा बुटीरैशिया है। यह तीन हजार फिट की ऊंचाई में पाया जाता है। इसके पेड़ 12 से 21 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इसकी पत्तियां पशुओं के चारे के रूप में उपयोग होती हैं। च्यूरे की खली मोमबत्ती, वेसलीन और कीटनाशक बनाने के काम आती है।

मुख्यमंत्री ने दिए थे च्यूरा पट्टी विकसित करने के निर्देश 

नवंबर माह में जनपद दौरे पर आए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नरियालगांव में समीक्षा के दौरान वन विभाग को च्यूरा पट्टी विकसित करने के निर्देश दिए थे। वन विभाग अब यहां बड़े पैमाने पर च्यूरा लगाने की तैयारी कर रहा है। उम्मीद है वन विभाग द्वारा तैयार यह प्रस्ताव जल्द मुख्यमंत्री घोषणा में शामिल किया जा सकता है।

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