फूलों की खेती कर लाखों कमाने वालों को लॉकडाउन का झटका, अब शासन से मदद की दरकार
लॉकडाउन के कारण उत्तराखंड के कई किसानों की फूलों की फसल खेतों में ही नष्ट हो गई। डिमांड न होने के कारण उनकी लाखों की लागत डूब गई।
चम्पावत/नैनीताल (जेएनएन) : चंपावत जिले के आयुर्वेद चिकित्सक और लिली के फूलों की खेती कर लाखों कमाने वाले राजीव कुमार को भी प्रभावित किया है। फूलों की डिमांड न होने के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस चुनौती से पार पाने के लिए राजीव ने योजना बनाई है। नए फसल के लिए लिली के बल्ब की स्टिक को तोड़ दिया है। राजीव का कहना है कि ऐसा करने से नए फूल और अच्छे से आएंगे। उम्मीद है तब तक कोरोना का प्रभाव कम हो चुका होगा और डिमांड फिर से शुरू हो जाएगी। राजीव प्लान बी भी लेकर चल रहे हैं। उनकी योजना फ्रेंच बीन्स, ब्रॉकली और शिमला मिर्च के उत्पादन की भी है। पौष्टक होने के साथ ही स्वाद से भरपूर इन सब्जियों की डिमांड भी खूब है। वहीं कुमाऊं मंडल के कई फूल उत्पादक काश्तकार लॉकडाउन के कारण संकटों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें अब सरकार से मदद की दरकार है।
कोरोना संक्रमण ने कारोबार प्रभावित किया
राजीव ने बताया कि यूं तो सामान्य दिनों में एक वर्ष में लिली के फूलाें की दो फसल हो जाती है। वो तकरीबन तीन हजार स्क्वायर मीटर में पॉली हाउस में खेती करते हैं। इससे साल में करीब आठ-नौ लाख का शुद्ध लाभ हो जाता है। लेकिन कोरोना काल ने उनके कारोबार को प्रभावित किया है। लॉकडाउन के कारण सबकुछ ठप होने के कारण इस बार शायद डिमांड कैंसिल हो जाएग। यदि एेसा होता है तो सरकार से आर्थिक मदद की दरकार रहेगी। सरकार को संकट की इस घड़ी में फूल उत्पादकों की मदद करनी चाहिए। फूलों की डिमांड कम होने पर फ्रेंच बीन्स, शिमला मिर्च और ब्रॉकली के उत्पादन भी विचार किया जा सकता है।
सहजता से उपलब्ध हो ऋण
राजीव ने बताया कि पहले लिली के फूलों पर किसान क्रेडिट कार्ड से ऋण नहीं मिलता था। काफी प्रयास करने के बाद यह व्यवस्था शुरू हुई। लेकिन फूलों की खेती के नाम पर बैंक आसानी से ऋण नहीं देते हैं। इससे उत्पदकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सरकार यह व्यवस्था सुनिशचित करे कि फूल उत्पादकों को आसानी से ऋण उपलब्ध हो सके। छोटे उत्पदकों को इसकी सख्त जरूरत होती है। ऋण के लिए बैंकों के आनाकानी करने पर सख्त कार्रवाई होने चाहिए।
परंपरागत खेती की बजाए विदेशी फूलों की खेती
चम्पावत जिले के देवीधुरा वालिक निवासी राजीव कुमार ने रोजगार के लिए औरों की तरह महानगरों का रुख करने की जगह कुछ अपना करने की सोची। उनका कमकसद था कि घर पर कुछ अपना कारोबार किया जाए। ऐसे में खेती का विकल्प उनके सामने था, लेकिन परंपरागत खेती? सोचकर ही डर लगता है। उन्हाेंने इंटरनेट पर सर्च किया और हालैंड के फूल लिलियम की खेती करने की ठानी। इस फूल का बीज जितना कीमती है उसके पुष्प उससे ज्यादा महंगे दामों पर देश-विदेश में बिकते हैं। राजीव ने पॉली हाउस लगाकर पुष्प की एक फसल बेचकर अच्छी-खासी आमदनी की। इनको देखकर क्षेत्र के अन्य लोग भी फूलों की खेती करने के लिए प्रेरित हुए।
यह चार बातें उत्तराखंड की तस्वीर बदल देंगी
उत्तराखंड की जलवायु हमारे लिए उपहार है। यहां होने वाले फल आडू, सेब, खुमानी, जड़ी बूटियाें और मंडुए के आटे की डिमांड खूब है। लेकिन सही स्ट्रेटजी न होने के कारण सब बेकार है। पैकेजिंग, ब्रांडिंग, ट्रांसपोर्टेशन और मार्केट चार ऐसी चीजे हैं, जिन पर यदि काम किया जाए तो प्रदेश के लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिल सकता है। यहां उत्पादों की कमी नहीं है, बस उनकी ठीक से मार्केटिंग नहीं है। लोग खुले में कोई भी प्रोडेक्ट लेना पसंद नहीं करते हैं। यदि ठीक से पैकेजिंग कर उसे मार्केट में उपलब्ध कराया जाए तो छोटे काश्तकारों की किस्मत पलट जाएगी। काश्ताकर के उत्पाद एक जगह खरीदे जाएं यह व्यवस्था सुनिश्चित होने चाहिए।
दस साल तक दिल्ली में की नौकरी
चंपावत के देवीधुरा वालिक निवासी सुदामा सिंह के पुत्र राजीव कुमार ने स्नातक साइंस वर्ग से पूरी की। वह मूलरूप से गाजीपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। पिता एयर फोर्स में होने के चलते सालों पूर्व वह जनपद में आकर बस गए। उच्च शिक्षा पूरा करने के बाद दिल्ली नौकरी करने में चले गए। करीब दस साल नौकरी करने बाद वह 2015 में गांव वापस आ गए। उसके बाद कृषि में ही कुछ अच्छा व नया करने का निर्णय लिया। जिसके बाद उन्होंने पारंपरिक खेती करने के बजाय कॉमर्शियल खेती करने की तैयारी की। इंटरनेट पर सर्च करने के बाद पदमपुरी में जमीन लीज पर लेकर लिली फूल की खेती से शुरुआत की।
दिल्ली, जयपुर, चंडीगढ़ व लखनऊ तक महकते हैं पहाड़ की फूल
नैनीताल जिले के चापी के फूल कारोबारी दुर्गादत्त उप्रेती ने बताया कि हर साल सीजन में पहाड़ से मैदानी इलाकों जैसे दिल्ली, जयपुर, चंडीगढ़, मुंबई, लखनऊ आदि तक ट्रेनों के सहारे फूल भेजे जाते थे। वहीं पिछले वर्ष करीब 10 करोड़ का जिले भर में व्यापार किया गया था। लेकिन इस बार सारा कारोबार ठप हो गया। फूलों की खेती खेतों में ही सूख रही है। वहीं व्यापार चौपट होने से किसानों के सामने रोजी-रोटी का सवाल खड़ा हो गया है।
फूलों की खेती करने वालों को मिले आर्थिक मदद
फूल उत्पदक मनोज नेगी ने बताया कि देशभर में लॉक डाउन के चलते फूलों की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदेशभर में मंदिर बंद हैं, विवाह व अन्य सामाजिक समारोहों पर रोक लगी है। ऐसे में जिन किसानों ने अपनी फूलों की पैदावार की थी वह बर्बादी की कगार पर हैं। हालात ये है कि किसानों को फूल फेंकने पड़ रहे हैं। ऐसे में सरकार उनकी भी सुध ले और आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाए।
शादी-विवाह के मौसम में थी मुनाफे की उम्मीद
भवाली के फूल कारोबारी मनोज नेगी बताया की ऐसे कई किसान हैं जो फूलों की खेती करते हैं। विवाह-शादियों के सीजन के दौरान इनके द्वारा उगाए फूलों की विशेष मांग रहती है। इससे किसानों को अच्छा खासा मुनाफा होता है। इस बार भी फूलों की खेती करने वाले किसानों को उम्मीद थी कि अच्छी कमाई होगी, लेकिन देशभर में फैले कोरोना संक्रमण ने सबकुछ बर्बाद कर रख दिया है।
फूलों के पौधे अब उखाड़े जा रहे
किसान चंद्रशेखर सिंह के मुताबिक गुलाब के फूल 70 से 80 रुपये, ग्लाइड के फूल 150 से 200 रुपये प्रति बंडल तथा व्हाइट फूल 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता था। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण फूलों की मांग जीरो हो गई। हालात यह हैं कि कोई पांच रुपये किलो भी फूल लेने को तैयार नहीं है। सिंह ने बताया कि ऐसे में वो अपनी फूलों की फसल को उखाड़ फेंकने के लिए मजबूर हो रहे हैं। अब बड़े हो चुके पौधों को उखाड़ा जा रहा है और उनकी जगह फिर से छोटे पौधों को लगाया जा रहा है।
बेहतर उत्पादन कर राजीव ने कमाया मुनाफा
एनके आर्य, जिला उद्यान अधिकारी चम्पावत ने बताया कि राजीव का प्रयास काफी अच्छा रहा है। कोरोना संकट के कारण सबकुछ ठप पड़ने से डिमांड नहीं है। बल्ब के फूलों को तोड़ा गया है, इससे भविष्य में उत्पादन और अच्छा होगा। फूल उत्पदाकों की समस्याओं को लेकर प्लान बनाकर शासन को भेज दिया गया है। विभाग के स्तर पर जितना संभव हो सकेगा मदद की जाएगी।
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