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बहन से झगड़ने पर पिता ने डांटा तो भाई ने लगाई फांसी, मौत

बहन के साथ झगड़ा कर रहे 11वीं के छात्र को उसके पिता ने डांट दिया। इसके बाद उसने पिता के घर से जाने के बाद कमरे में ही फांसी लगाकर जीवनलीला खत्म कर डाली।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 01:55 PM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 09:15 PM (IST)
बहन से झगड़ने पर पिता ने डांटा तो भाई ने लगाई फांसी, मौत
बहन से झगड़ने पर पिता ने डांटा तो भाई ने लगाई फांसी, मौत

नैनीताल, जेएनएन : बहन के साथ झगड़ा कर रहे 11वीं के छात्र को उसके पिता ने डांट दिया। इसके बाद उसने पिता के घर से जाने के बाद कमरे में ही फांसी लगाकर जीवनलीला खत्म कर डाली। पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पंचनामा भरने की कारवाई शुरू कर दी है। तल्लीताल थाना क्षेत्रान्तर्गत कुमाऊं विवि के लंघम हॉस्टल के पीछे आउट हाउस में जॉनी कुमार का परिवार रहता है। सुबह जॉनी के बड़े बेटे अमन का बहन से झगड़ा हुआ तो पिता ने इसे डांट दिया। इसके बाद माता-पिता घर घर कूड़ा कलेक्शन के काम में चले गए। करीब सवा नौ बजे अमन ने दूसरे कमरे में जाकर रस्सी से फांसी लगा ली। घरवालों व पड़ोसियों ने उसे तत्काल उतारकर बीडी पांडेय अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया। सूचना पर कोतवाली के एसआइ देवनाथ गोस्वामी व अन्य मौके पर पहुंचे और शव कब्जे में ले लिया। अमन जीआइसी में 11 वीं का छात्र है। उसके आत्मघाती कदम से परिवार के साथ हरकोई सकते में है।

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बच्चे क्यों उठा रहे आत्मघाती कदम : आधुनिकता में युवा अपनी सुध बुध खो रहा है। कभी बढ़ती पढ़ाई और नंबरों की रेस में दिन रात पढऩे का दबाव। या फिर माता पिता का कई बातों/चीजों पर सीधा प्रतिबंध भी युवाओं को उनके खुलेपन से दूर करती है। स्कूल/कालेजों में दूसरों द्वारा सताया या परेशान किया जाना जो प्रत्यक्ष मानसिक क्षति का कारण बनती है। अज्ञानता में कुछ गलत कर बैठना और फिर पछतावे की निरंतर जलने वाली आग में जलने को विवश हो जाता है। इसके कारण अन्य कारण-जिसे हम प्यार, लगाव या किसी को पाने की चाह कह सकते हैं, यही सब मिलकर कहीं न कहीं आत्मघात का कारण बन सकती है।

क्या करें उपाय : माता पिता का बच्चों से नर्म व्यवहार उम्र के साथ दोस्ताना व्यवहार भी जरूरी है ताकि बच्चे अपनी बात अपने माता पिता से खुल कर कह सकें और उचित निराकरण प्राप्त हो सके। युवाओं को समय के साथ सही और गलत रास्ते का फर्क समझाना जिससे वो अपने विवेक से सही फैसला ले सके। इसके अलावा नंबरों की होड़ से हट कर स्वतंत्र शिक्षा प्रणाली को अपनाना। जहां पढ़ाई का दबाव कम हो, रटने से ज्यादा सीखने पर जोर दिया जाए।

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