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10 साल बाद भी न्याय मांग रही संजना, उत्तराखंड में पहली बार DNA जांच से पकड़ा गया था आराेपी, फिर भी नहीं मिल पायी सजा

Lalkuan Sanjana murder case 10 जुलाई 2012 को बिंदुखत्ता के राजीवनगर की संजना लापता हो गई। उसी शाम पिता ने लालकुआं थाने में बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराई। अगले ही दिन सुबह संजना की लाश घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर मिली।

By Rajesh VermaEdited By: Published: Mon, 26 Sep 2022 09:31 PM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2022 09:31 PM (IST)
10 साल बाद भी न्याय मांग रही संजना, उत्तराखंड में पहली बार DNA जांच से पकड़ा गया था आराेपी, फिर भी नहीं मिल पायी सजा
Lalkuan Sanjana murder case : कई दिनों तक जबरदस्त आंदोलन चला।

हल्द्वानी : Lalkuan Sanjana murder case : अंकिता हत्याकांड (Ankita murder case) को लेकर पूरे उत्तराखंड में उबाल है। उसकी हत्या हुए आठ दिन बीत चुके हैं, मगर लोगों के मन में भरा गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुअा है। रोज ही पहाड़ से लेकर मैदान तक प्रदर्शन हो रहे हैं और आरोपितों को फांसी की सजा देने की मांग उठ रही है। इससे पुलिस व सरकार भी दबाव में है।

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दुष्कर्म के बाद हुई थी हत्या

कुमाऊं में नैनीताल जिले के लालकुआं में भी ऐसे ही एक हत्याकांड ने लोगों में उबाल ला दिया था। जब आठ वर्षीय संजना (Lalkuan Sanjana murder case) लापता हुई और अगले ही दिन सुबह घर से कुछ दूरी पर उसकी लाश मिली थी। दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी। इससे पूरे जिले में लोग सड़कों पर उतर आए थे, जिससे पुलिस पर दबाव बढ़ गया थी। पुलिस की जांच बढ़ी तो रिश्ते का फूफा ही आरोपी निकला। निचली कोर्ट से उसे फांसी की सजा हुई, मगर हाई कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया। इससे परिवार को न्याय मिलने की अास भी टूट गई। इस वारदात से पर्दा उठाने में पुलिस के पसीने छूट गए थे। पहली बार उत्तराखंड में पुलिस ने किसी अपराधी को पकड़ने के लिए डीएनए टेस्ट कराया था।

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1100 लोगों से हुई पूछताछ, 100 लोगों के लिए डीएनए सैंपल

घटना 10 जुलाई 2012 की है, जब बिंदुखत्ता के राजीवनगर की संजना लापता हो गई। उसी शाम पिता ने लालकुआं थाने में बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराई। अगले ही दिन सुबह संजना की लाश घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर मिली। इसके बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ अपहरण व दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया। मगर हत्यारे तक पुलिस को पहुंचने में पसीने निकल गए। इससे लोगों में गुस्सा भड़क गया। वारदात के खुलासे और आरोपी को फांसी देने की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए। कई दिनों तक जबरदस्त आंदोलन चला। इससे पुलिस दबाव में आ गई और 1100 लोगों से पूछताछ की और शक के आधार पर 100 से अधिक लोगों के सैपल लेकर डीएनए जांच को दिल्ली स्थित फॉरेंसिक लैब भेजा।

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फूफा ही था संजना का आरोपी

डीएनए रिपोर्ट के आधार पर ही 7 फरवरी 2013 को पुलिस ने संजना के फूफा दीपक आर्य को गिरफ्तार किया। उत्तराखंड में यह पहली बार था जब डीएनए जांच के जरिए पुलिस आरोपी के गिरेबान तक पहुंची थी। इस खुलासे ने रिश्तों की बुनियाद हिलाकर रख दी थी। लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि आठ साल की मासूम बच्ची के साथ उसके ही फूफा ने वहशीपन की हदें पार कर दी थीं।

निचली कोर्ट ने दी फांसी, हाई कोर्ट से बरी

खैर आरोपी के पकड़ में आने के बाद पुलिस ने दीपक के खिलाफ निचली कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी। काफी लंबी चली सुनवाई के बाद डीएनए जांच रिपोर्ट के अाधार पर ही 28 फरवरी 2014 को जिला जज ने दीपक को मौत की सजा सुना दी। मगर इस सजा के खिलाफ मार्च 2014 में दीपक हाई कोर्ट पहुंच गया। हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान दीपक के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह पूरा केस डीएनए रिपोर्ट पर आधारित है। पुलिस के पास दीपक के खिलाफ और कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं है, जिससे उसे फांसी की सजा सुनाई जाए। करीब डेढ़ साल तक चली सुनवाई के बाद 8 अक्टूबर 2015 में दीपक को पुलिस ने दोषमुक्त कर दिया।

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दीपक ने पुलिस काे किया था गुमराह

दीपक शुरू से पुलिस को गुमराह करता रहा था। बच्ची के लापता होने के बाद उसी ने सबसे पहले शव देखा। वह मूल रूप से चंपावत का रहने वाला था मगर 2006 में शादी के बाद से अपनी ससुराल बिन्दुखत्ता के तिवारीनगर में ही रह रहा था। पुलिस जब संदिग्ध लोगों से डीएनए जांच के लिए खून के नमूने ले रही थी तो दीपक ने यहां भी पुलिस को गुमराह किया। उसने अपने पिता का नाम धनराम व अपनी उम्र 30 वर्ष बताई, जबकि उसके पिता का नाम प्रताप राम व उम्र 26 वर्ष थी। इसी पुलिस को उस पर शक हो गया। इसक बाद पुलिस ने दूसरी बार उसे फिर से खून का नमूना देने के लिए बुलाया तो वह गायब हो गयाद्ध बाद में पुलिस की सख्ती के बाद ही उसने सही तरीके से अपने खून का नमूना डीएनए जांच के लिए दिया।


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