पर्यावरण वैज्ञानिका ने कहा, जलवायु परिवर्तन पर चर्चा का दौर गया, यह जलवायु संकट का है दौर
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल में तीन दिन तक मंथन के बाद देश व विदेश के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वॉर्मिंग को हिमालय के लिए घातक बताया।
अल्मोड़ा, जेएनएन : जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल में तीन दिन तक मंथन के बाद देश व विदेश के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वॉर्मिंग को हिमालय के लिए घातक बताया। पिछले तीन दशक से जलवायु परिवर्तन पर गहन शोध एवं अध्ययन में जुटे ऑब्जर्व रिसर्च फाउंडेशन के फैलो प्रो. जे बंदोपाध्याय ने कहा कि मौजूदा हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। अब जलवायु परिवर्तन नहीं बल्कि इसे जलवायु संकट कहेंगे। प्रो. बंदोपाध्ययाय ने चेताया कि मैदान में यदि दो डिग्री तापमान बढ़ा तो हिमालय में दोगुना यानी चार डिग्री बढ़ जाएगा। तब स्थिति बेकाबू हो जाएगी।
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का समापन
जलवायु परिवर्तन से बदलती दुनिया में हिमालय की महत्ता पर वैज्ञानिकों ने तीन दिनी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के जरिये अपने निष्कर्ष दिए। वर्तमान स्थिति के मद्देनजर न संभलने पर भविष्य की भयावह तस्वीर भी दिखाई। प्रो. बंदोपाध्याय ने कहा, पेरिस संधि से उम्मीद थी कि ग्रीन हाउस गैस की सांद्रता 403 पीपीएम से 390 या इससे कम हो जाएगी। मगर यह 408 पीपीएम जा पहुंची है। बकौल प्रो. बंदोपाध्याय, चीन ने इसकी जिम्मेदारी तो ली लेकिन अमेरिका ने पल्ला ही झाड़ लिया। इसका खामियाजा हिमालय को भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने आगाह किया कि मैदान में तापमान यदि 2 डिग्री बढ़ा तो हिमालयी क्षेत्र में बढ़कर यह चार डिग्री हो जाएगा। नतीजा गर्मी के साथ हिमालय का गलनांक भी बढ़ेगा। अब भी न संभले तो आने वाले डेढ़ दो सौ साल बाद शायद कुछ नहीं बचेगा।
सौर ऊर्जा है समस्या का हल
आगाह व चेतावनी के बीच प्रो. बंदोपाध्याय ने ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन से बचने की राह भी दिखाई। बोले कि सौर ऊर्जा इसका ठोस विकल्प है। जर्मनी में इस पर प्रयोग शुरू भी हो चुका है। साथ ही कार्बन डाई ऑक्साइड के दुष्प्रभाव कम करने को उन्होंने पेड़ पौधों की सुरक्षा व जरूरत वाले स्थानों पर चौड़ीपत्ती वाले पौधे लगाने की पुरजोर वकालत की।
हिमालय में नहीं चलेगा मैदानी विकास का मॉडल : डॉ. नकुल
आठ हिमालयी देशों के 300 वैज्ञानिकों के साथ हिमालय पर ताजा शोध करने वाले समन्वयक इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट काठमांडू (नेपाल) डॉ. नकुल क्षेत्री ने दो टूक चेताया कि मैदानी विकास का मॉडल हिमालय में चल ही नहीं सकता। इससे फायदे कम नुकसान ही होगा। अपने शोध का हवाला दिया कि मैदान में अगर 1.5 डिग्री तापमान बढऩे पर यह नाजुक हिमालय पर ज्यादा असर डाल रहा। ऐसे में पहाड़ के अनुरूप आचारण कर हमें वैश्विक तापवृद्धि से लडऩे को वैश्विक समाज तैयार करना होगा जो हिमालय को सुरक्षा कवच दे सके।
बेहद महत्वपूर्ण रहा सेमिनार
निदेशक जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी डॉ. आरएस रावल ने बताया कि सम्मेलन पर्वतों की महत्ता, हिमालय एवं हिमालयी जीव जंतुओं के संरक्षण व सुरक्षित भविष्य, जैव विविधता आदि तमाम पहलुओं के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण रहा। कृषि प्रणाली के साथ हिमालय से निकलने वाली पारिस्थितिकी सेवाओं पर मंथन व जीवनयापन की संभावनाओं को बढ़ाने की दिशा में यह मील का पत्थर साबित होगा।
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