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लुटती रही नजूल, सोते रहे रखवाले

रुद्रपुर शहर के विकास को लेकर तत्कालीन प्रदेश सरकार ने जो रूप रेखा तैयार की थी उसपर जिम्मेदारों ने अमल ही नहीं किया।

By Edited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 12:32 AM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 08:21 AM (IST)
लुटती रही नजूल, सोते रहे रखवाले
लुटती रही नजूल, सोते रहे रखवाले
नैनीताल (जेएनएन) : रुद्रपुर शहर के विकास को लेकर तत्कालीन प्रदेश सरकार ने जो रूप रेखा तैयार की थी, उसपर यदि प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों ने सख्ती से अमल किया होता, और सियासतदारों ने शासन की तय प्रक्रिया में रोड़ा न अटकाया होता तो शहर वालों को आज नजूल की कोढ़ जैसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। इस शहर के विकास का जो प्रदेश सरकार ने जो खाका तैयार किया था वह तो पूरा होता ही, लोगों को अपनी करोड़ों की संपति के मालिकाना हक के लिए तरसना भी नहीं पड़ता। अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के बाद देश का भी बंटवारा हो गया, पाकिस्तान से बंटवारे के बाद आए बड़ी तादाद में लोगों को बसाने की देश के सामने बड़ी समस्या थी। प्रधानमंत्री के रूप में पं जवाहरलाल नेहरू ने पंजाब व बंगाल के मुख्यमंत्रियों से इनको बसाने के लिए भूमि देने को कहा, पर दोनो ही प्रांतों के मुख्यमंत्रियों ने हाथ खड़े कर दिए। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गो¨वद बल्लभ ने दरिया दिली दिखा तराई में इनको बसाने की सहमति दे दी। यहां आने वालों को सरकार ने भूमि के पट्टे देकर बसाना शुरू किया। 1970 तक तराई का काफी इलाका आबाद हो खेतीबाड़ी से •ाुड़ चुका था। ऐसे में सरकार ने तराई में एक विकसित शहर बसाने की योजना तैयार की। विधिवत लेआउट तैयार कर रुद्रपुर शहर के नाम पर 1889 एकड़ सरकारी भूमि यानि नजूल भूमि आवंटित कर दी गई। व्यवस्था की गई कि इस भूमि पर विकास कार्य के प्रस्ताव स्थानीय व्यस्थापक के रूप में नगर पालिका तैयार कर प्रदेश सरकार को भेजेगी। वहीं से भूमि का विधिवत आवंटन होगा, जिसकी निगरानी कुमाऊं आयुक्त के अधीन गठित जिला प्रशासन की टीम द्वारा की जानी था। शुरूआती दौर में शासन की भूमि आवंटन प्रक्रिया पूरी तरह अमल में लाई भी गई। बाजार क्षेत्र समेत कई क्षेत्रों में लोगों को इसी प्रक्रिया के तहत आवंटन भी हुए, पर इसी दौरान जो भूमि सरकारी है वह हमारी है सोंच के तहत सियासत दारों की गिद्ध ²ष्टि इस भूमि पर पड़ गई। उनकी शह पर ही आवंटन की प्रक्रिया ताक पर रख लोगों ने भूमि पर कब्जा करना शुरू कर दिया। भूमि पर कब्जा रोकने को जिम्मेदार पालिका व वर्तमान में नगर निगम प्रशासन के साथ जिला प्रशासन भी मूक दर्शक बना रहा। हालात यह है कि आज सरकार की इसी नजूल भूमि पर शहर की 80 फीसद आबादी के रूप में 50 हजार से अधिक परिवार बस चुके हैं। इन परिवारों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा अपने आशियाने व प्रतिष्ठान खड़े कर लिए हैं, पर उनका यह विकास सरकार की नजर में विशुद्ध रूप से कब्जा है। जिस पर कभी भी गाज गिर सकती है। लोगों का मानना है कि काश लोगों ने इस नजूल भूमि पर काबिज होने से पूर्व शासन की तय प्रक्रिया को अपना अपने को काबिज किया होता तो शहर का सुनियोजित विकास तो हुआ ही होता, उन्हें किए गए विकास का मालिकाना हक भी हासिल होता। नजूल भूमि पर मलिन बस्तियां काबिज हो गईं, पर जिम्मेदार अधिकारी सोते रहे। यदि वह सजग होते तो गरीबों के सामने अपने घर उजड़ने का संकट नहीं आता। प्रदेश सरकार नजूल भूमि पर बस चुकी मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों की एक्ट बना कर रक्षा करेगी। प्रदेश सरकार की जो नजूल नीति खारिज की गई है प्रदेश सरकार उसके खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने जा रही है। - राजकुमार ठुकराल, विधायक रुद्रपुर नजूल भूमि पर रुद्रपुर ही नहीं पूरे प्रदेश व देश में तमाम बड़ी आबादी बसी है। इन बस्तियों पर सरकार की तमाम योजनाओं का पैसा व्यय हो चुका है, ऐसे में अब इन्हें उजाड़ना न्यायोचित नहीं है। कांग्रेस सरकार अपने कार्यकाल में जो नजूल नीति लायी थी सरकार उसे भी लागू नही करा पाई। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह इन बस्तियों को बचाने के लिए मजबूती से सार्थक पहल करें। तिलकराज बेहड़, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री नजूल भूमि पर कब्जे के लिए नगर पालिका के साथ जिला प्रशासन भी पूरी तरह जिम्मेवार है। सरकार अब भूमि पर काबिज हो चुके लोगों के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई करने के बजाय महाराष्ट्र आदि राज्यों की तर्ज पर ऐसा कानून लागू करे, जिससे यहां बस चुके 25 हजार से अधिक परिवारों के सिर से छत उजड़ने का खतरा समाप्त हो सके। -सुभाष चतुर्वेदी, पूर्व पालिकाध्यक्ष, रुद्रपुर शहर की अधिकांश भूमि नजूल की है, इस पर गरीब तबके के लोगों ने अपने आशियाने बना लिए हैं। अब इन लोगों को उजाड़ना गलत है। इस भूमि पर जब अतिक्रमण हो रहा था तभी जिम्मेदार अधिकारियों को इसे रोकना चाहिए था। अब सरकार इन बस्तियों को बचाने की मजबूती से पहल करे। मीना शर्मा, पूर्व पालिकाध्यक्ष, रुद्रपुर जब से उत्तराखंड का गठन हुआ है, एक भी सरकारी कालोनी नहीं बनी है। सिडकुल आने के कारण जनता का भार शहर पर तेजी से बढ़ा। यही कारण रहा कि नजूल पर आबादी बसी। सरकार ने फैसला देकर हिटलशाही का परिचय दिया है। सरकार चाहती है कि इन बस्तियों को उजाड़ों ही नहीं, इन क्षेत्रों से सियासत करने वालों को भी दरकिनार कर दो। उनकी आवाज को दबा दो। इसके खिलाफ हम कोर्ट में जाएंगे। ललित मिगलानी, निवर्तमान पार्षद, वार्ड 19

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