काॅर्बेट नेशनल पार्क में हाथी ठीक मगर बाहर निकलने पर बिगड़ जा रहा है रहा मूड
चार महीने पहले हुई गणना के दौरान कार्बेट में गजराज की संख्या 1017 से 1223 पहुंच गई। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि सीमित जगह पर हाथियों का बढऩा वनसंपदा या अन्य वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं डालेगा।
हल्द्वानी, जेएनएन : चार महीने पहले हुई गणना के दौरान कार्बेट में गजराज की संख्या 1017 से 1223 पहुंच गई। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि सीमित जगह पर हाथियों का बढऩा वनसंपदा या अन्य वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं डालेगा। हालांकि, हाथी विशेषज्ञ और वन विभाग के अफसर फिलहाल इस बात को नकार रहे हैं। उनका कहना है कि बाघ और तेंदुए की तरह हाथी जंगल में अपना दायरा तय नहीं करता। कार्बेट का हाथी पार्क से सटी रामनगर और तराई पश्चिमी डिवीजन तक में मूवमेंट करता है। और एक तरह के खाने पर निर्भर नहीं रहता। लेकिन कार्बेट से बाहर या एक से दूसरे जंगल में जाने के दौरान हाथियों की परेशानी का सामना करना पड़ रहा। जिसकी वजह कारीडोर का अतिक्रमण और ट्रैफिक है। रामनगर में दो कारीडोर ट्रैफिक और हल्द्वानी का गौला कारीडोर अतिक्रमण की जद में है।
2016 में हाथी गणना के दौरान कार्बेट में इनकी संख्या 1017 थी। जून 2020 में गिनती पूरी होने पर 207 हाथियों की बढ़ोतरी होकर यह कुनबा 1223 तक पहुंच गया। कार्बेट नेशनल 1300 वर्ग किमी में फैला हुआ है। हाथी विशेषज्ञ एजी अंसारी बताते हैं कि जंगल के प्रमुख वन्यजीवों में बाघ-गुलदार के अलावा बाकी शाकाहारी होते हैं। ऐसे में यह धारणा बनती है कि हाथियों की बढ़ती संख्या से हिरण, बारहसिंघा जैसे शाकाहारी वन्यजीवों के लिए संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। मगर भोजन श्रृंखला की वजह से ऐसा नहीं होता।
अंसारी के मुताबिक बाघ-गुलदार का आहार माने जाने वाले यह हिरण-बारहसिंघा भोजन के चक्कर में ग्रासलैंड की तरफ ज्यादा मूवमेंट करते हैं। घास को हाथी भी खा लेता है। मगर छह इंच से लंबी होने पर। तब उसके लिए सूंड से घास तोडऩा आसान रहता है। इसलिए छोटी ग्रासलैंड वाले इलाकों में वह दखल नहीं देता। वहीं, हाथी का सबसे प्रिय भोजन रोहिणी को माना जाता है। मगर सीजन में वह जंगल से सटी ग्रामीण आबादी में जाकर धान व विशेषकर गन्ना को काफी पसंद करता है। गन्ने के सीजन में कार्बेट के हाथी बिजनौर तक में नजर आते हैं। वहीं, हल्द्वानी के हाथी पहले गोरखपुर तक रिपोर्ट किए गए हैं।
हाथी जंगल का इंजीनियर भी
हाथी की बड़ी खूबी यह भी है कि वो जंगल को हल्का भी करता है। इसलिए उसे जंगल का इंजीनियर भी कहा जाता है। टहनियों के अलावा वह पुराने पेड़ों तक को नीचे गिरा देेता है। उसके मल में खाद के गुण युक्त होते हैं। नीचे गिरे पेड़ दोबारा नए पौधे के तौर पर तैयार होकर वनस्पति चक्र को और नवीन कर देते हैं। लिहाजा, पारिस्थितिक तंत्र में हाथी का अहम रोल रहता है।
कार्बेट के पास तीन कारीडोर
कार्बेट से सटे तीन कारीडोर ऐसे है जो हाथी के एक से दूसरे जंगल में जाने का रास्ता है। मलानी-कोटा, चिल्किया कोटा और साउथ पातलीदून। इनमें से दो कारीडोर पर वाहनों का दबाव होने पर हाथियों को मूवमेंट के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिससे उनके एग्रेसिव होने का डर रहता है। रामनगर में कई बार हाथी गाडिय़ों के पीछे भागने के साथ उन्हें पलटा भी चुका है। यह कारीडोर यातायात दबाव का नतीजा है। वहीं, हल्द्वानी के पास पडऩे वाले फतेहपुर-गदगदिया कारीडोर की स्थिति ठीक है। लेकिन बरेली रोड का गौला कारीडोर अतिक्रमण की जद में है।
दो पुल हाथी के लिए फायदेमंद
रामनगर रोड पर स्थित धनगड़ी व पनौद पुल को स्वीकृति मिल चुकी है। भविष्य में इनका काम पूरा होने पर हाथियों को भी फायदा होगा। इन्हें जमीन से तीन मीटर ऊंचा बनाया जाएगा। अभी ट्रैफिक के बीच से निकलने वाले हाथी तब आसानी से पुल के नीचे से दूसरे जंगल में पहुंच जाएंगे।
हाथी पहाड़ भी चढ़ा
जून में हाथी गणना के बाद एक नई बात सामने आई थी। अभी तक माना जाता था कि हाथी 600-800 मीटर ऊंचाई वाले इलाकों में मूवमेंट करता है। मगर तक हाथी 1400 मीटर की ऊंचाई पर नजर आया। वन विभाग को पहले से इसका आभास था। जिस वजह से गणना में शामिल 15 डिवीजनों में पर्वतीय डिवीजन को भी शामिल किया गया।
सागौन के तने खाने लगा
बीते कुछ सालों में हाथी के व्यवहार में एक बदलाव आया है। पहले वो सागौन से दूरी बनाता था। मगर अब वह तने वाले हिस्से को खुरचने के बाद अंदर के हिस्से को खा रहा है। उसमें पानी की मात्रा भी होती है। इसके अलावा जामुन, केले आदि फलों को भी हाथी खाता है। अगर सूंड की पहुंच फल तक न हो तो वह पेड़ को हिलाकर भी फल नीचे गिरा लेता है।