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वक्‍त के साथ बदलते रहे देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्‍ह, पढि़ए पूरी खबर

अतीत के आईने को देखें तो देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न कई बार बदले। आप भी जानिए पहले क्या और अब क्या है प्रमुख दलों का चुनाव निशान।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 01:22 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 01:22 PM (IST)
वक्‍त के साथ बदलते रहे देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्‍ह, पढि़ए पूरी खबर
वक्‍त के साथ बदलते रहे देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्‍ह, पढि़ए पूरी खबर

हल्द्वानी, जेएनएन : राजनीति में चुनाव चिह्न का बड़ा महत्व है। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के लिए चुनाव चिह्न वोटरों पर प्रभाव जमाने का अहम व सशक्त माध्यम माना जाता है। इसी प्रभाव के बल पर कई बार हार-जीत तय होती है। हालांकि किसी वजह से कई बार चुनाव चिह्न बदलते भी रहे हैं। अतीत के आईने को देखें तो देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न कई बार बदले। आप भी जानिए पहले क्या और अब क्या है प्रमुख दलों का चुनाव निशान।

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तीन बार परिवर्तन के बाद कांग्रेस को अब हाथ का साथ

आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस का चुनाव चिह्न 'दो बैलों की जोड़ी' था। 1970-71 में कांग्रेस का विभाजन हुआ। पार्टी से अलग हुए मोरारजी देसाई, चंद्रभानू गुप्ता ने संगठन कांग्रेस बनाई। विभाजन होते ही चुनाव चिह्न 'दो बैलों की जोड़ी' पर विवाद होने पर चुनाव आयोग ने उसे सीज कर दिया। बाद में इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को 'गाय और बछड़ा' व संगठन कांग्रेस को 'चरखा' चुनाव चिह्न मिला। 1979 में कांग्रेस में एक और विभाजन हुआ व उसे नया चुनाव निशान 'हाथ का पंजा' मिला।

भाजपा इस तरह पहुंची थी कमल के फूल तक

भारतीय जनसंघ ने 'दीपक' व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 'झोपड़ी' चुनाव चिह्न के साथ पहली बार राजनीति में कदम रखा था। 1977 में जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी व चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल का विलय होने के बाद जनता पार्टी का उदय हुआ व चुनाव चिह्न मिला 'हलधर किसान'। बाद में जनता पार्टी बिखर गई। पूर्ववर्ती जनसंघ के नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया, जिसे चुनाव चिह्न मिला 'कमल का फूल'। चौधरी चरण सिंह ने लोकदल गठित किया, जिसे 'खेत जोतता किसान' चुनाव चिह्न मिला।

'अनाज ओसते किसान' ने दिलाई सफलता

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1987-88 में पार्टी छोड़ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इलाहाबाद से उपचुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्हें 'अनाज ओसाता हुआ किसान' चिह्न मिला। वीपी को मिला चुनाव चिह्न हर मतदाता को पता चले, इसके लिए एकजुट हुए नेताओं ने प्रमुख चौराहों, बाजार, कस्बों में जगह-जगह सूप लेकर अनाज ओसाया। वीपी सिंह जीत दर्ज करने में सफल रहे।

समाजवादी पार्टी का 'साइकिल' तक का सफर

वीपी सिंह ने 1988 में जनता दल पार्टी बनाई व चुनाव चिह्न मिला 'चक्र'। तत्काल बाद हुए चुनाव में जनता दल ने जीत दर्ज कर सरकार बनाई, लेकिन एक वर्ष बाद ही जनता दल का विभाजन हो गया। फिर चंद्रशेखर के नेतृत्व में समाजवादी जनता पार्टी का गठन हुआ। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई, जिसे 'साइकिल' चुनाव चिह्न मिला। इसी तरह 1985 में 'हाथी' चुनाव निशान के साथ बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ।

वोटरों के मन-मस्तिष्क में उतरना होता था उद्देश्य

आजादी के समय व उससे पहले देश में साक्षरता दर काफी कम थी। राजनीतिक दलों ने ऐसे चुनाव चिह्न पसंद किए, जिसे अनपढ़ मतदाता भी सही से समझ सकें। इससे एक ही नाम के कई उम्मीदवार होने पर भी भ्रम की स्थिति नहीं बनती। कृषि बाहुल्य देश के लिए कृषि, किसानी से जुड़े चिह्न बड़े वर्ग तक पहुंचने का माध्यम माने गए। इसी कारण से दो बैलों की जोड़ी, गाय और बछड़ा, अनाज ओसाता हुआ किसान, हलधर किसान जैसे चिह्न अधिक प्रचलित रहे।

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