सात हजार फीट की ऊंचाई पर पॉलीहाउस में सब्जी की खेती कर बने आत्मनिर्भर
पहाड़ में चौतरफा चुनौतियों से घिरी कठिन खेती। उस पर जंगली जानवरों का सितम। कभी अतिवृष्टि तो कभी सूखे की मार रही सही कसर पूरी कर देती है।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : पहाड़ में चौतरफा चुनौतियों से घिरी कठिन खेती। उस पर जंगली जानवरों का सितम। कभी अतिवृष्टि तो कभी सूखे की मार रही सही कसर पूरी कर देती है। ऐसे में तमाम किसान खेती से मुंह मोड़ चुके। मगर कुछ मेहनतकश हैं जो जटिल कृषि को आसान कर खुद के साथ ग्रामीणों की आर्थिकी मजबूत करने में जुटे हैं। जिले के स्याहीदेवी गांव का बागवान ऐसी ही मिसाल पेश कर रहा। सात हजार फीट की ऊंचाई पर 'बंद खेती' यानी पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन के जरिये वह न केवल जंगली जानवरों से फसल बचाने की तरकीब सुझा रहा बल्कि बेरोजगारी के इस दौर में नौजवानों को पारंपरिक से हटकर वैज्ञानिक तकनीक को ढाल बना स्वरोजगार की राह भी दिखा रहा।
पर्यटन नगरी रानीखेत से लगभग 38 व अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 36 किमी दूर है स्याहीदेवी गांव। जैवविविधता से लबरेज मिश्रित वन क्षेत्र से घिरी सुरम्य वादी जो सैलानियों को खासा आकर्षित करती है। ऊपरी मध्य भूभाग में खालिस पहाड़ी को करीने से काट खेतों की शक्ल दे यहां के दिग्विजय सिंह बौरा ने संसाधनों के अभाव के बावजूद कुछ वर्ष पूर्व कृषि बागवानी की जो शुरुआत की वह अब सुखद परिणाम देने लगी है। सेब, पुलम, आडू, खुबानी आदि पर्वतीय पौष्टिक फलों के बगीचों के बीच पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन सुविधा संपन्न तराई भाबर की उपज को टक्कर दे रही।
...और पंतनगर विवि के विज्ञानी भी कायल
नगरीय चकाचौंध व व्यवसाय छोड़ अल्मोड़ा से स्याही देवी गांव में बस चुके दिग्विजय ने पाले व बर्फ से फसल बचाने को अपने हाथों से लकड़ी के डंडों पर पॉलीथिन की चौड़ी चादरों का कवच तैयार किया। उच्च पहाड़ में इस जुनूनी का बागवानी प्रेम व खेती से जुड़ाव देख तीन वर्ष पूर्व सैर सपाटे पर पहुंचे जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर के विज्ञानियों ने पॉलीहाउस लगवाया। अब उसमें कुंतलों के हिसाब से विभिन्न सब्जियों की बंपर पैदावार हो रही। बाहरी मंडियों को आपूर्ति भी की जा रही।
पानी बचाने का भी संदेश
बागवान दिग्विजय सिंह ने कृषि बागवानी के साथ जल संरक्षण की मुहिम भी चला रखी है। वह वर्षा जल का भंडारण कर लेते हैं। पॉलीहाउस में सप्ताह में मात्र तीन बार सिंचाई करते हैं। शेष कार्य पॉलीहाउस के भीतर नमी पूरा कर देती है। इससे पानी की अच्छीखासी बचत हो रही। यही नहीं वह आसपास के ग्रामीणों को महंगी खाद के बजाय पहाड़ के कल्पवृक्ष बहुपयोगी बाज के जंगल में प्राकृतिक रूप से तैयार होने वाली खाद को उपयोग में लाने की सीख दे रहे। कम खर्च पर जैविक विधि से ज्यादा उत्पादन।
अल्मोड़ा व हल्द्वानी मंडी तक पहुंच रही उपज
दिग्विजय की जैविक सब्जियां अल्मोड़ा व हल्द्वानी की मंडियों तक पहुंच रही। स्याहीदेवी क्षेत्र में साहसिक पर्यटन गतिवधियों से जुड़े पर्यावरण प्रेमी एवं सलाहकार ललित सिंह बिष्ट के अनुसार हरेक सीजन में यहां से करीब 10 कंतल फूल व 15 कुंतल पत्तागोभी मंडियों तक भेजी जा रही। 15 कुंतल लौकी बाजार में उतार चुके। अभी उत्पादन जारी है। सिमला व सामान्य मिर्च, मटर, टमाटर, प्याज, लहसुन भी पांच से 10 कुंतल तक होती है।
इन गांवों के किसान होने लगे लाभान्वित
नौला, सड़का, सल्ला, खूंट धामस, धारी, थांथ, हरड़ा, खरकिया, मटीला, सूरी, गड़स्यारी, पतलिया, बेड़ समेत 13 से ज्यादा गांवों के किसान बंद खेती की तकनीक सीखने दिग्विजय के पास आ रहे।
प्रोत्साहन से ही आएगी खुशहाली
जैविक विधि से सब्जी उत्पादन में जुटे दिग्विजय सिंह कहते हैं कि विपणन व उपज को बाजार तक पहुंचाने के लिए विभागीय सुविधा मिल जाए तो ग्रामीणों को बड़ा लाभ होगा। वह खुद वाहनों की व्यवस्था कर अल्मोड़ा व हल्द्वानी उपज भेजते हैं। इससे सब्जियां खराब होने का डर भी रहता है। भविष्य में वह बेमौसमी जैविक सब्जी उत्पादन की तैयारी में हैं।