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अब चार माह तक नहीं बजेगी शहनाई न मांगलिक कार्य होंगे, देवशयनी एकादशी प्रारंभ NAINITAL NEWS

अब चार माह (8 नवंबर काॢतक शुल्क पक्ष देव उठनी) तक शहनाई नहीं बजेगी क्योंकि 12 जुलाई से देवशयनी एकादशी प्रारंभ हो चुका है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 13 Jul 2019 01:44 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jul 2019 01:44 PM (IST)
अब चार माह तक नहीं बजेगी शहनाई न मांगलिक कार्य होंगे, देवशयनी एकादशी प्रारंभ NAINITAL NEWS
अब चार माह तक नहीं बजेगी शहनाई न मांगलिक कार्य होंगे, देवशयनी एकादशी प्रारंभ NAINITAL NEWS

बाजपुर, जेएनएन : अब चार माह (8 नवंबर कार्तिक शुल्क पक्ष देव उठनी) तक शहनाई नहीं बजेगी, क्योंकि 12 जुलाई से देवशयनी एकादशी प्रारंभ हो चुका है। इस चार माह की अवधि में घरों के अंदर मांगलिक कार्य नहीं होंगे। 

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भारतीय संस्कृति में वर्षा ऋतु के चार माह चार्तुमास के रूप में जाने जाते हैं। चार्तुमास देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी अर्थात देव उठनी एकादशी तक रहता है। इस वर्ष चार्तुमास 12 जुलाई से प्रारंभ हो चुका है, जोकि आठ नवंबर तक रहेगा। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्रमा एकादशी एवं देवशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रारंभ होते ही घर में शुभ कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है। प्रसिद्ध च्योतिषाचार्य पं.शिवकुमार शास्त्री ने बताया कि यह समय भगवान विष्णु के शयनकाल का होता है। पुराणों में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी से लेकर अगले चार माह (देवप्रबोधनी) तक के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। हिंदू धर्म में देव सो जाने की वजह से कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस अवधि के दौरान व्रत इत्यादि रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। 

इसलिए नहीं होते मांगलिक कार्य 

पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं, वे शेषनाग की शैय्या पर चार माह के लिए योग निद्रा में शयनस्थ हो जो हैं। इस दिन श्री विष्णु शसनोत्सव भी होता है। भगवान विष्णु इस दिन से से चार मास पर्यंत पालात में राजा बलि के द्वार निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। यह समय भगवान विष्णु का शयनकाल कहलाता है। इस दौरान विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होते। 

इस अवधि में नमक के त्याग से पूर्ण होते हैं मनोवांछित कार्य 

पं.शिवकुमार शास्त्री ने बताया कि चार्तुमास ईश वंदना का विशेष पर्व है, इस अवधि में उपवास का विशेष महत्व है जिनसे अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। चार्तुमास में व्रत के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जिसमें श्रावण मास में शाक, भद्रपद महीने में दही, आश्विन माह में दूध एवं काॢतक माह में दाल ग्रहण नहीं करना चाहिए। चार्तुमास का व्रत करने वाले व्यक्ति को मांस, मधु, शैया शसन का त्याग करना चाहिए। इस दौरान गुड़, तेल, दूध, दही और बैगन का सेवन नहीं करना चाहिए। पुराणों के अनुसार जो भी व्यक्ति चार्तुमास में गुड़ का त्याग करता है उसे मधुर स्वर प्राप्त होता है, तेल के त्याग से शत्रुओं का नाश होता है, धृत के त्याग से सौंदर्य की प्राप्ति होती है, शाक के त्याग से बुद्धि में वृद्धि होती है, दही एवं दूध के त्याग से वंश वृद्धि होती है, नमक के त्याग से मनोवांछित कार्य पूर्ण होता है। 

चार्तुमास में इस तरह करें पूजन 

चार्तुमास में भगवान विष्णु की आराधना विशेष रूप से की जाती है। इस अवधि में पुरुष को सूक्त, विष्णु सहस्त्रनाम अथवा भगवान विष्णु के विशेष मंत्रों के द्वारा उानकी उपासना करनी चाहिए। तदोपरांत अपनी सामथ्र्य के अनुसार चांदी, पीतल आदि की शैय्या के ऊपर बिस्तर बिछाकर उस पर पीले रंग का रेशमी कपड़ा बिछा भगवान विष्णु को शयन करवाना चाहिए। 


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