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बादल फटने से तबाही : काश, कुंडी खुल जाती तो बच जाती राम सिंह की जान

मलबा आने से दरवाजे की कुंडी दबाव के चलते नहीं खुल सकी और तब तक मकान ध्वस्त हो गया और राम सिंह की मलबे में दब कर मौत हो गई।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 03:07 PM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 03:07 PM (IST)
बादल फटने से तबाही : काश, कुंडी खुल जाती तो बच जाती राम सिंह की जान
बादल फटने से तबाही : काश, कुंडी खुल जाती तो बच जाती राम सिंह की जान

नाचनी/थल (पिथौरागढ़), जेएनएन : बादल फटने से मलबे में दबे राम सिंह के कमरे का दरवाजा अड़ गया था, जिसके चलते कुंडी ही नहीं खुली। घर में राम सिंह एक कमरे में सोया था और अन्य सदस्य दूसरे कमरे में था। जैसे ही सैलाब आया तो उसकी पत्नी और एक अन्य महिला घर से बाहर निकल गई परंतु मलबे की चपेट में आ गई। दरवाजे की कुंडी दबाव के चलते नहीं खुल सकी और तब तक मकान ध्वस्त हो गया और राम सिंह की मलबे में दब कर मौत हो गई।

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एक बजे दिन में घायल को भेजा जा सका जिला अस्पताल

आपदा बचाव और राहत को लेकर प्रशासन आए दिन बैठकों का आयोजन करता है। सूचना मिलते ही राहत दलों को प्रभावित क्षेत्र में पहुंच कर बचाव कार्य की नसीहत दी जाती है। आपदा आने पर प्रशासन किस कदर बौना साबित होता है यह तल्ला जोहार की आपदा में देखने को मिला। रात्रि लगभग तीन बजे से मलबे में दबकर घायल हुई महिला को जिला अस्पताल भेजने के लिए लगभग पांच किमी दूर टिमटिया से दिन में एक बजे नाचनी पहुंचाया जा सका। तब जाकर नाचनी से जिला अस्पताल पिथौरागढ़ पिथौरागढ़ भेजा गया है। नाचनी से पिथौरागढ़ तक की दूरी  67 किमी है । पिथौरागढ़ पहुंचने में ढाई से तीन घंटे लगते हैं। घायल महिला को समुचित प्राथमिक उपचार 12 घंटे बाद मिला ।

फिर खल गई संचार की कमी

आपदा प्रभावित क्षेत्र का एक हिस्सा संचार सेवा से वंचित है। यह क्षेत्र कोटा प्रंदहपाला का है। इस क्षेत्र तक बनी पीएमजीएसवाइ की सड़क विगत एक माह से बंद है। इस क्षेत्र से बादल फटने के बाद नुकसान की कोई सूचना अब तक नहीं मिल पाई है।

बादल फटने से प्रभावित गांव

क्वीटी, तेजम, रसियाबगड़, टिमटिया, बोरागांव, नया बस्ती, नाचनी बाजार और गांव, हुपुली, कोट्यूड़ा, गाोकुल धूरा, फल्याटी, धामीगांव, तल्ला भैस्कोट, मल्ला भैंस्कोट, बांसबगड़, खेतभराड़, राया, बजेता, डुंगरी, कोटा, पंद्रहपाला, गोल गांव, भैंसखाल।

जिले में बादल फटने की प्रमुख घटनाएं

वर्ष 1971 - तवाघाट - 16 की मौत

वर्ष 1998 -  मालपा- कैलास यात्रियों सहित 207 लोगों की मौत

वर्ष 2000 - मुनस्यारी क्षेत्र में तबाही

वर्ष 2002 - राया बजेता तल्ला जोहार - पांच लोगों की मौत

वर्ष 2002 - डीडीहाट तहसील क्षेत्र - 11 की मौत

वर्ष 2005 - गोरी नदी  और मंदाकिनी नदी घाटी में तबाही

वर्ष 2007 - बरम - सात लोगों की मौत

वर्ष 2009 - ला , झेकला तल्ला जोहार - 43 मौत 

वर्ष 2013 - धारचूला , मुनस्यारी में तबाही

वर्ष 2016 - डीडीहाट के बस्तड़ी और मुनस्यारी के तल्ला जोहार कुमालगोनी में 27 मौत

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