डेंगू थमा नहीं, बढ़ा स्वाइन फ्लू का खतरा
मौसम बदलाव के बावजूद डेंगू का प्रकोप थमा नहीं है, लेकिन स्वाइन फ्लू का खतरा बढ़ गया है।
जासं, हल्द्वानी : मौसम बदलाव के बावजूद डेंगू का प्रकोप थमा नहीं है, लेकिन स्वाइन फ्लू का खतरा बढ़ गया है। कुमाऊं में एक मरीज की मौत के बावजूद स्वास्थ्य विभाग बेखबर है। चुनाव में व्यस्त सरकार को गंभीर बीमारी से बचाव की व्यवस्था करने के लिए निर्देश देने तक की फुर्सत नहीं है। जिले में ही आइसोलेशन वार्ड के नाम पर चार अस्पतालों में 30 बेड की व्यवस्था की है, लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण उपकरण वेंटीलेटर तक की व्यवस्था नहीं है। जबकि, इस श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाली इस बीमारी में वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है। दिल्ली से प्रतिदिन लगभग पांच हजार लोगों का आवागमन होते रहता है। ऐसे में एच1एन1 इंफ्लूयंजा वायरस का खतरा बढ़ गया है।
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जांच के लिए लैब नहीं, दिल्ली भेजने पड़ते हैं सैंपल
स्वाइन फ्लू जांच के लिए कुमाऊं में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड में लैब नहीं है। मरीजों के सेंपल दिल्ली नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) भेजे जाते हैं। सामान्य तौर पर रिपोर्ट आने का समय 10 दिन होता है, लेकिन कई बार एक 25 दिन बाद भी रिपोर्ट नहीं आती है।
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इन अस्पतालों में बने हैं आइसोलेशन वार्ड
बेस अस्पताल में पांच बेड, सुशीला तिवारी अस्पताल में 10, रामनगर अस्पताल में 10 और बीडी पांडे नैनीताल में पांच बेड का आइसोलेशन वार्ड बनाया है। इनमें किसी तरह की सुविधा नहीं है। वेंटीलेटर भी नहीं है। महज औपचारिकता भर के लिए वार्ड बनाया गया है।
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पिछले वर्ष 63 मरीजों हुए थे प्रभावित
जिले में ही पिछले वर्ष 63 मरीजों में स्वाइन फ्लू के लक्षण मिले थे। संदिग्ध लक्षणों के आधार पर उपचार हुआ, लेकिन जांच समय पर नहीं हो सकी।
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डेंगू के 13 नए मरीज, अब तक 128 प्रभावित
डेंगू का प्रकोप कम नहीं हुआ है। एसटीएच में भर्ती मरीजों का एलाइजा टेस्ट हुआ। इसमें 13 मरीजों में डेंगू होने की पुष्टि हुई है। इसमें से आठ मरीज नैनीताल जिले के हैं। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि पिछले दो वर्षो में नवंबर पहले सप्ताह में एक भी डेंगू का रोगी नहीं आया था। इस बार नैनीताल जिले में 33 मरीज सामने आ चुके हैं। इस सीजन में 128 मरीजों की जांच में पुष्टि हो चुकी है।
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ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू
सुअरों से इंसानों में एच1एन1 इंफ्लूएंजा वायरस फैलता है। यह बीमारी सीधे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। मरीज के खांसने, छींकने, थूकने से जो कण निकलते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाते हैं। ये द्रव कणों के संपर्क में आने से अन्य लोग भी संक्रमित होने लगते हैं। इसमें टेमीफ्लू की दवा दी जाती है।
स्वास्थ्य विभाग ने स्वाइन फ्लू को तीन वर्गो में रखा है। ए कैटेगरी के मरीज को घर ही रखा जाता है। इसमें सामान्य सर्दी, जुकाम रहता है। बी कैटेगरी के मरीजों में खांसते समय रक्त निकलता है। भर्ती करने की जरूरत होती है, लेकिन जांच जरूरी नहीं है, जबकि सी कैटेगरी में गर्भवती, बच्चे, डायबिटीज व अन्य बीमारियों से संबंधित मरीज, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम है। इनका सैंपल लिया जाता है। वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. नीलांबर भट्ट कहते हैं, इस बीमारी में जब श्वसन तंत्र पर अधिक असर होता है तो वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है।
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ये होते हैं लक्षण
- नाक लगातार बहना, छींक आना
- सिर में तेज दर्द होना
- मांसपेशियों में दर्द होना
- दवा खाने पर भी बुखार बढ़ना
- थकान अधिक महसूस होना बचाव के लिए इन बातों का रखें ध्यान
संक्रामक रोग विश्लेषक नंदन कांडपाल ने बताया कि लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। सर्दियों में कोल्ड ड्रिंक व फ्रिज के पानी का सेवन न करें। भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जानें से बचें। जुकाम वाले मरीज जांच करा लें। सुअरों बाड़े से दूर रहें। कपड़े वाला मास्क पहनें। गर्म भोजन करें। परेशानी महसूस होने पर जांच करा लें।
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अभी हमारे पास किसी तरह के निर्देश नहीं आए हैं। फ्लू के केस भी सामने नहीं आए हैं। जरूरत पड़ने पर वार्ड आइसोलेट कर दिए जाएंगे। बाकी हमारे पास सभी व्यवस्थाएं हैं, लेकिन जांच के लिए लैब नहीं है।
डॉ. भारती राणा, सीएमओ, नैनीताल