डेंगू डे आज : पहाड़ में भी अब तेजी से पांव पसारने लगा है डेंगू
तराई-भाबर में होने वाला डेंगू अब तेजी से पर्वतीय क्षेत्रों में पांव पसार चुका है। अस्पतालों में रोगियों में अब पर्वतीय क्षेत्रों के रोगियों की भी ३० फीसद संख्या रहती है।
हल्द्वानी, जेएनएन : तराई-भाबर में होने वाला डेंगू अब तेजी से पर्वतीय क्षेत्रों में पांव पसार चुका है। अस्पतालों में पहुंचने वाले रोगियों में अब पर्वतीय क्षेत्रों के रोगियों की भी ३० फीसद संख्या रहती है। यह संख्या अब लगातार बढ़ रही है। वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. नीलांबर भट्ट कहते हैं, बीमारी फैलाने वाला एडीज एज्पिटाई मच्छर पर्वतीय क्षेत्रों की आबोहवा में घुल गया है। इसलिए मरीजों की संख्या बढऩा स्वाभाविक है।
पहाड़ में नहीं मिल पाती इलाज की सुविधा
पर्वतीय क्षेत्रों में इलाज की कोई सुविधा नहीं है। बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ व चम्पावत से भी मरीज एसटीएच पहुंचते हैं या फिर शहर के निजी चिकित्सालयों में महंगा इलाज कराने को मजबूर होते हैं। ऊधमसिंह नगर के अलावा उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती क्षेत्र से भी मरीज उपचार के लिए यहीं पहुंचते हैं।
मौत के आंकड़े छिपा जाता है विभाग
दुर्भाग्य है कि स्वास्थ्य विभाग मौत के आंकड़े छिपा जाता है। सरकारी व निजी अस्पतालों में प्रतिवर्ष पांच से १० मरीजों की मौत डेंगू से होती है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग एलाइजा टेस्ट नहीं होने की बात कहते हुए जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। इसके अलावा निजी अस्पतालों का आंकड़ा भी शामिल नहीं किया जाता है।
हाई कोर्ट के आदेश की नहीं परवाह
पिछले वर्ष पांच सितंबर को हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को डेंगू के इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में अलग से व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे, लेकिन सरकारी अस्पतालों का रवैया ढुलमुल ही रहा।
वर्ष डेंगू मरीज
२०१४ - १७
२०१५ - ३६
२०१६ - ११२
२०१७ - २९७
२०१८ - १५६
एनके कांडपाल, संक्रामक रोग विश्लेषक ने बताया कि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए पूरे प्रयास किए जाते हैं। लोगों को जागरूक किया जाता है। अस्पतालों में भी पर्याप्त दवाइयां रखी जाती हैं।
दो जिलों के लिए केवल पांच कर्मचारी
तराई-भाबर के दो जिले नैनीताल व ऊधमसिंह नगर में संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा अधिक रहता है। इन दोनों जिलों के हल्द्वानी, रामनगर, बैलपड़ाव, कालाढूंगी, लालकुआं व ऊधमसिंह नगर में रुद्रपुर, काशीपुर, बाजपुर, दिनेशपुर आदि क्षेत्र बेहद संवेदनशील हैं। इसके लिए केवल पांच कर्मचारी कार्यरत हैं। ऐसे में महज औपचारिकता भी निभाई जाती है। यहां तक कि फॉगिंग मशीनें भी दो ही हैं। बजट भी करीब पांच लाख रुपये ही उपलब्ध रहता है।
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