बाघों के संरक्षण व प्रबंधन के लिए मिलने वाला बजट केन्द्र ने दबाया, पांच माह से नहीं मिला वेतन
भले ही कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की अच्छी खासी तादाद होने से सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन बाघों के संरक्षण व प्रबंधन के लिए बजट देने के मामले में केंद्र चुप्पी साधे है।
रामनगर, जेएनएन : भले ही कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की अच्छी खासी तादाद होने से सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन बाघों के संरक्षण व प्रबंधन के लिए बजट देने के मामले में केंद्र सरकार चुप्पी साधे हुए है। बजट न मिलने का असर जंगल में गश्त करने वाले बाघों के 450 रखवालों व विभागीय कार्यों पर पड़ रहा है। गश्त करने वाले कर्मियों को पिछले पांच माह से वेतन तक नहीं मिला है। ऐसे में उनके समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा होने लगा है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा से संबंधित कार्यों मसलन गश्त, वाहनों के लिए डीजल, उपकरण, रास्तों की मरम्मत, निर्माण में होने वाले खर्च के अलावा जंगल में गश्त करने वाले 450 दैनिक श्रमिकों व एसटीपीएफ के जवानों को वेतन प्रोजेक्ट टाइगर से मिलने वाले बजट से दिया जाता है। यह बजट केंद्र सरकार के अधीन एनटीसीए देश के टाइगर रिजर्वों को जारी करता है। बजट मिलने के बाद टाइगर रिजर्व अपने खर्चे निपटाता है। वर्ष 2019-20 का बजट बीते अप्रैल में मिल जाना चाहिए था, लेकिन पांच माह बाद बीत जाने के बाद भी एनटीसीए ने बजट जारी नहीं किया है। बजट जारी करने में देरी की वजह चाहें कुछ भी हो, लेकिन समय पर टाइगर रिजर्व को बजट देने की व्यवस्था होनी चाहिए। बजट देरी से मिलने का खामियाजा कॉर्बेट में बाघों की सुरक्षा के लिए रखे गए चार सौ दैनिक श्रमिक व स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के 50 जवानों की भुगतना पड़ रहा है। इसके अलावा बजट नहीं आने से विभाग भी परेशान है। पांच माह से बिना वेतन के कार्य कर रहे दैनिक श्रमिकों ने पार्क अधिकारियों को अपनी परेशानी से अवगत भी करा दिया है।
मार्च से 16 करोड़ रुपये का बजट नहीं मिला
निदेशक सीटीआर राहुल ने बताया कि मार्च से करीब 16 करोड़ रुपये का बजट नहीं मिला है। जिस कारण दैनिक श्रमिक व एसटीपीएफ के जवानों को वेतन नहीं मिला है। बजट जल्द मिलने की उम्मीद है। शासन स्तर पर कार्रवाई चल रही है।