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कोरोना काल के दौरान ग्लेशियरों में न‍ियंत्र‍ित हुए इंसानी दखल से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम हुआ

कोरोना के चलते आम जनजीवन काफी हद तक प्रभावित हुआ है। सीमांत के प्रसिद्ध ग्लेशियरों में इस बार मानवीय दखल नहीं होने से सुखद संकेत भी मिले हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 06:05 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 09:56 PM (IST)
कोरोना काल के दौरान ग्लेशियरों में न‍ियंत्र‍ित हुए इंसानी दखल से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम हुआ
कोरोना काल के दौरान ग्लेशियरों में न‍ियंत्र‍ित हुए इंसानी दखल से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम हुआ

पिथौरागढ़, ओपी अवस्थी : कोरोना के चलते आम जनजीवन काफी हद तक प्रभावित हुआ है। वहीं प्रकृति संरक्षण के लिहाज से अहम माने जाने वाले सीमांत के प्रसिद्ध ग्लेशियरों में इस बार मानवीय दखल नहीं होने से सुखद संकेत भी मिले हैं। तापमान नियंत्रित होने से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा भी कम हुआ है।

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पिथौरागढ़ जिले की धारचूला और मुनस्यारी तहसीलों के उच्च हिमालयी भू-भाग यानी 10 हजार फीट से अधिक ऊंचाई में ग्लेशियरों की भरमार है। जिसमें कुछ ग्लेशियर विश्व प्रसिद्ध हैं। जो ट्रैकरों की पहली पसंद रहते हैं। प्रतिवर्ष इन ग्लेशियरों तक हजारों पर्यटक व ट्रैकर पहुंचते थे।

वहीं साल कोरोना के चलते मार्च से अब तक एक भी पर्यटक यहां नहीं पहुंचा। उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकरों की आवाजाही नहीं होने से ग्लेशियर भी अपने वास्तविक स्वरूप में जस के तस हैं। वहीं ग्लेशियरों के मार्ग साफ-सुथरे हैं। मानवीय दखल नही होने से ग्लेशियरों के आसपास का तापमान नियंत्रित है। जिसे पर्यावरणविद् शुभ संकेत मान रहे हैं।

भूगर्भ अधिकारी प्रदीप कुमार ने बताया कि उच्च हिमालय में मानवीय गतिविधियां न होने का पर्यावरण पर असर साफ देखा जा सकता है। सीजनल ग्लेशियर इस बार नहीं पिघले हैं। इससे क्षेत्र में नमी बनी हुई है और शीतकाल में अच्छी बर्फवारी होगी। उच्च हिमालयी गांवों में खेती भी बेहतर रहेगी।

इस बार नहीं पहुंचा एक भी ट्रैकर

मुनस्यारी के मिलम, रालम और नामिक जैसे ग्लेशियरों तक प्रतिवर्ष चार से पांच हजार टै्रकर पहुंचते थे। वहीं पंचाचूली ग्लेशियर आने वालों की संख्या आठ से दस हजार रहती थी। दरअसल पंचाचूली ग्लेशियर के निकट तक सड़क बनने से भी वहां पहुंचना सुगम हो गया है। कोरोना के चलते इस साल एक भी ट्रेकर यहां नहीं आया। उच्च हिमालय के जानकार और पर्वतारोही पीएस धर्मशक्तू का कहना है कि ग्लेशियरों तक लोगों की आवाजाही न होने से वे अपने मूल स्वरूप में हैं।

मानसून काल तक भी बने हुए हैं सीजनल ग्लेशियर

इस बार शीतकाल में भारी हिमपात और फिर ग्रीष्म और मानसून काल में ग्लेशियरों तक आवाजाही न होने से कुछ बड़े सीजनल ग्लेशियर भी अभी तक बने हुए हैं। अगस्त आखिरी सप्ताह में मुनस्यारी-मिलम मार्ग में टूटे छिरकानी ग्लेशियर की बर्फ अप्रैल-मई में ही पिघल जाती थी। इस वर्ष पहली बार अभी तक ग्लेशियर की बर्फ जमी रही। अब ग्लेशियर पिघल कर मार्ग तक पहुंचा, जिससे मार्ग खुलवाने में लोनिवि को भी तीन दिन लग गए। इधर, अब अक्टूबर से इन क्षेत्रों में फिर से हिमपात होना प्रारंभ हो जाएगा। ऐसे में जो ग्लेशियर गर्मी में ही पिघल जाता था वह फिर नई बर्फ से ढक जाएगा।

सीमांत के प्रमुख ग्लेशियर

पोंथिंग, मिलम, रालम, नामिक, मेवला, सोना, पंचाचूली, बलाती, सीपू, रु ला, कालाबलंद, लवन, बंग्लास, बलदिंगा, तेराहर, तलकोट, संकल्पा, लासर, धौली, बालिंग गोल्फू, सोबला तेजम, काली ग्लेशियर, कुटी ग्लेशियर।


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