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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 : सियासी समीकरण और कैडर कार्यकर्ताओं के दबाव में टिकट को लेकर उलझी भाजपा

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 भारतीय जनता पार्टी इस बार के चुनाव में टिकट वितरण से पहले नैनीताल जिले ही नहीं प्रदेश की कई सीटों पर सियासी समीकरण व कैडर कार्यकर्ताओं के दबाव में फंसती नजर आ रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 12:55 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 12:55 PM (IST)
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 : सियासी समीकरण और कैडर कार्यकर्ताओं के दबाव में टिकट को लेकर उलझी भाजपा
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 : उत्तराखंड में टिकटों को लेकर भाजपा हाई कमान कर रहा है मंथन

नैनीताल, जागरण संवाददाता : उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 : उत्तराखंड में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अभी तक टिकट के पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा प्रदेश के कई सीटों पर प्रत्याशी का लेकर कैडर कार्यकर्ताओं के दबाव और सियासी समीकरण में उलझी हुई नजर आ रही है। वहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपनी पहली सूची जारी कर दी है जिसमें इनमें 63 विधायकों को फिर से मौका मिला है, जबकि 20 विधायकों के टिकट काटे गए हैं। जिसके बाद से उत्तराखंड में भी भाजपा विधायकों में हलचल मची है। वहीं पार्टी भी टिकट की घोषणा करने के लिए किसी तरह की हड़बड़ी में नहीं है।

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भारतीय जनता पार्टी इस बार के चुनाव में टिकट वितरण से पहले नैनीताल जिले ही नहीं प्रदेश की कई सीटों पर सियासी समीकरण व कैडर कार्यकर्ताओं के दबाव में फंसती नजर आ रही है। नैनीताल जिले में ही नैनीताल, भीमताल व लालकुआं सीट पर प्रत्याशी चयन में पार्टी रणनीतिकार बुरी तरह उलझ कर रह गए हैं। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की बर्खास्तगी के बाद भी यह उलझन खत्म होने वाली नजर नहीं आ रही है।

नैनीताल विधानसभा सीट पर कांग्रेस में वापसी कर चुके संजीव आर्य के बाद अब पूर्व जिलाध्यक्ष व आरएसएस के जिले में इकलौते अनुसूचित जाति वर्ग के संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के कार्यकर्ता दिनेश आर्य ने दावेदारी की है। वह लगातार कैडर के आधार पर टिकट की पैरवी कर रहे हैं। संजीव की वापसी के बाद विधानसभा क्षेत्र के कैडर व वैचारिक कार्यकर्ता दिनेश को ही टिकट की पैरवी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी का आंतरिक सर्वे के आधार पर कमजोर आर्थिक स्थिति, राजनीतिक सक्रियता में कमी और सियासी समीकरण दिनेश की राह में बाधा बन रहे हैं।

उधर दूसरे दावेदार मोहन पाल 2012 में भीमताल से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं और दूसरे नंबर पर आए थे लेकिन उनको खांटी भाजपाई स्वीकार करने को तैयार नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का खेमा पाल को टिकट देने के लिए जीजान से पैरवी में जुटा है। इन परिस्थितियों में अब पार्टी के समक्ष दुविधा की स्थिति है।

उधर लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में डॉ मोहन बिष्ट की घर वापसी से टिकट के अन्य दावेदार खुश नहीं तो संघ के लोग खुश हैं। भाजपा से अलग होने के बाद जिस तरह मोहन संघ के कार्यक्रमों में सक्रिय रहे, उससे उनकी टिकट की दावेदारी में मातृ संगठन की ओर से हरी झंडी है लेकिन अन्य दावेदार खुश नहीं हैं। भीमताल में विधायक राम सिंह कैड़ा पार्टी में शामिल होने के बाद ही विरोध झेल रहे हैं। यहां कैडर व वैचारिक कार्यकर्ता उनसे दूरी बनाए हैं।

पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज साह ने कार्यालय खोलकर उनकी सियासी मुश्किल और बढ़ाई है। विधायक कैड़ा कभी हरक सिंह के करीबियों में भी रहे हैं। उनको भाजपा में शामिल करने में हरक के साथ ही केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट की अहम भूमिका रही है। इन परिस्थितियों ओ बाद अब भाजपा के सामने इन तीनों सीटों पर टिकट वितरण बुरी तरह उलझ गया है। देखना होगा पार्टी हाईकमान इस चुनौती से कैसे पार पाता है।


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