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गुटबाजी और प्रतिशोध की आग में जली भाजपा, पार्टी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर खिसके

जिला मुख्यालय में जबर्दस्त गुटबाजी और अंतरद्वंद्व से जूझ रही भाजपा को निकाय चुनाव में जनता ने बड़ा झटका दे दिया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 10:54 AM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 10:54 AM (IST)
गुटबाजी और प्रतिशोध की आग में जली भाजपा, पार्टी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर खिसके
गुटबाजी और प्रतिशोध की आग में जली भाजपा, पार्टी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर खिसके

किशोर जोशी, नैनीताल : जिला मुख्यालय में जबर्दस्त गुटबाजी और अंतरद्वंद्व से जूझ रही भाजपा को निकाय चुनाव में जनता ने बड़ा झटका दे दिया। नगर इकाई के खिलाफ वरिष्ठ नेताओं में आक्रोश, एक-दूसरे को निपटाने के लिए भड़की प्रतिशोध की आग ने पार्टी की साफ-सुथरी छवि के घोषित प्रत्याशी अरविंद पडियार को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।

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नगरपालिका अध्यक्ष पद पर जैसे ही पार्टी ने भाजयुमो के पूर्व जिलाध्यक्ष अरविंद पडियार को प्रत्याशी घोषित किया तो आधा दर्जन वरिष्ठ नेता बगावत पर उतर आए। पूर्व मंत्री बंशीधर भगत व वित्त मंत्री प्रकाश पंत के हस्तक्षेप के बाद बागी मान तो गए, मगर चुनाव प्रचार में उनकी सक्रियता कम नजर आई तो संगठन ने भी उनकी सेवाएं लेना जरूरी नहीं समझा।

छात्रसंघ चुनाव में पड़ी थी नींव

दरअसल डीएसबी छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष के लिए घोषित प्रत्याशी विद्यार्थी परिषद की पूनम बवाड़ी के खिलाफ भाजपा व विद्यार्थी परिषद के एक गुट ने निर्दलीय महेश मेहर को उतार दिया। नतीजा यह रहा कि महेश जीत गए। सांसद कोश्यारी के दौरे में यह गुट सक्रिय हो गया तो गुटबाजी की आग और भड़क गई। जैसे ही निकाय चुनाव में अध्यक्ष पद के प्रत्याशी की घोषणा हुई तो अध्यक्ष महेश पार्टी में शामिल हो गए। नतीजा यह निकला कि विद्यार्थी परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता दूसरे प्रत्याशियों के प्रचार में कूद पड़े।

अब घमासान और तेज होने के आसार

चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में अंदरूनी घमासान और तेज होने के आसार बन गए हैं। इसके अलावा अनुषांगिक संगठन विद्यार्थी परिषद, मजदूर संघ व अन्य सहयोगी संगठनों की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं। इन संगठनों ने भाजपा के बजाय कांग्रेस या निर्दलीय प्रत्याशियों का खुलकर समर्थन किया, मगर अनुशासन का चाबुक कहीं नहीं चला।

बिना प्रबंधन के लड़ा चुनाव

भाजपा ने पहली बार बिना प्रबंधन के निकाय चुनाव लड़ा। पहली बार संगठन की कोर टीम का कहीं होमवर्क दिखाई नहीं दिया। चुनाव जीतने की रणनीति बनाने के बजाय वरिष्ठ नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाने का ताना-बाना बुनते रहे। नगर अध्यक्ष मनोज जोशी के खिलाफ कार्यकर्ताओं में इस कदर नाराजगी थी कि उन्होंने पार्टी को सबक सिखाने की शपथ ले ली। इसके अलावा संसाधनों की कमी से भी प्रत्याशी को प्रचार में पिछडऩा पड़ा।

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