जैव विविधता दिवस 2022 : भारत के अंतिम गांव से लेकर मुनस्यारी तक जैव विविधता का अद्भुत संसार
Biodiversity Day 2022 उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिछले एक वर्ष में जैव विविधता के लिए देश के अंतिम गांव माणा से लेकर मुनस्यारी तक अनूठे प्रयास किए हैं। हर्बल गार्डन आर्किड गार्डन लाइकेन गार्डन पाम गार्डन एरोमेटिक गार्डन क्रिप्टोमेटिक गार्डन व फर्न प्रजाति संरक्षण केंद्र भी विकसित किए हैं।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: Biodiversity Day 2022 : उत्तराखंड अपनी भौगोलिक स्थितियों के साथ ही जैव विविधता के लिए भी प्रसिद्ध है। उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिछले एक वर्ष में जैव विविधता के लिए चीन सीमा से सटे देश के अंतिम गांव माणा से लेकर मुनस्यारी तक अनूठे प्रयास किए हैं। हर्बल गार्डन, आर्किड गार्डन, लाइकेन गार्डन, पाम गार्डन, एरोमेटिक गार्डन, क्रिप्टोमेटिक गार्डन व फर्न प्रजाति संरक्षण केंद्र भी विकसित किए हैं। वन अनुसंधान केंद्र के मुताबिक यहां संरक्षित प्रजातियों का दुर्लभता, औषधीय और स्थानीयता के हिसाब से खासा महत्व है।
वन अनुसंधान के मुताबिक वनस्पतियों के संरक्षण को लेकर इस बात पर खास फोकस किया जाता है कि उनका पर्यावरण से लेकर आम इंसान के लिए व्यक्तिगत तौर पर क्या महत्व है। वह संकटग्रस्त श्रेणी में तो नहीं। इसके मुताबिक ही संरक्षण को लेकर योजना तैयार की जाती है।
माणा गांव में 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हर्बल गार्डन में औषधीय गुणों से युक्त 40 प्रजातियों को जनसहभागिता के जरिये तैयार किया गया है। इसके अलावा मुनस्यारी के लाइकेन गार्डन में डेढ़ साल पहले देश का पहला लाइकेन गार्डन तैयार किया। जिसमें लाइकेन की 120 प्रजातियों को संरक्षित किया गया है। लाइकेन जिसे स्थानीय लोग झूला घास के नाम से भी जानते हैं। प्रदूषण का इंडिकेटर मानी जाती है।
एक साल में जैव विविधता के संरक्षण को लेकर किए मुख्य काम
आर्किड गार्डन: चमोली जिले के मंडल मेें उत्तर भारत का पहला आर्किड गार्डन बनाया गया है। जिसमें 70 प्रजातियों का संरक्षण हो चुका है। सवा तैयार सवा किमी लंबी ट्रेल के जरिये लोग इस गार्डन का दीदार कर सकते हैं।
फर्न केंद्र: रानीखेत की कालिका रेंज में 103 फर्न प्रजातियों का संरक्षण किया गया। डायनासोर काल से अस्तित्व रखने वाली इन प्रजातियों में से कई का औषधीय महत्व भी होता है।
घास सरंक्षण केंद्र: रानीखेत में वन अनुसंधान ने घास की 100 प्रजातियों को संरक्षित किया है। घास के मैदान कार्बेन को अवशोषित करने में अहम योगदान देते हैं।
पाम गार्डन: हल्द्वानी में वन अनुसंधान ने पाम गार्डन तैयार कर 100 प्रजातियों को तैयार किया है। जिसमें मैटालिक, सिंकटोक, सुपारी समेत अन्य शामिल है। खजूर, सुपारी से लेकर तेल तक पाम पेड़ों से मिलता है।
ऐरामेटिक गार्डन: लालकुआं में ऐरोमेटिक गार्डन (सुरभि वाटिका) बनाकर 140 प्रजातियों को लगाया गया है। इन्हें सुगंधित प्रजाति कहा जाता है। वायुमंडल में आक्सीन की मात्रा बढ़ाने में यह मददगार होते हैं।
क्रिप्टोमेटिक गार्डन: चकराता में 2700 मीटर की ऊंचाई पर यह गार्डन बना है। इसकी कई प्रजातियों का इस्तेमाल भोजन के तौर पर होता है। इनमें कार्बोहाइडे्रट, वसा, प्रोटीन और विटामिन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यहां 75 प्रजातियां देखने को मिलेंगी।
जैव विविधता को बढ़ाने का किया प्रयास
मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि पिछले एक साल में लगातार प्रयास किया गया है कि दुर्लभ व औषधीय महत्व के साथ स्थानीय पहचान से जुड़ी वनस्पतियों का संरक्षण किया जा सके। ताकि जैव विविधता को बढ़ावा मिले। इसी लिहाज से अलग-अलग जगहों पर गार्डर को तैयार किया गया।