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Devasthanam board act : बोर्ड को वैधानिक ठहराने के कोर्ट के फैसले से मुख्यमंत्री को बड़ी राहत

उत्तराखंड हाई कोर्ट के चारधाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम को लेकर दिए गए एतिहासिक फैसले से एक्ट का विरोध कर रहे चारधाम के हक-हकूकधारियों को निराशा हाथ लगी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 08:49 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 04:23 PM (IST)
Devasthanam board act : बोर्ड को वैधानिक ठहराने के कोर्ट के फैसले से मुख्यमंत्री को बड़ी राहत
Devasthanam board act : बोर्ड को वैधानिक ठहराने के कोर्ट के फैसले से मुख्यमंत्री को बड़ी राहत

नैनीताल, किशोर जोशी : उत्तराखंड हाई कोर्ट के चारधाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम को लेकर दिए गए एतिहासिक फैसले से एक्ट का विरोध कर रहे चारधाम के हक-हकूकधारियों को निराशा हाथ लगी है। जबकि इस अधिनियम के बहाने विपक्ष के साथ ही अपनों के निशाने पर आए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सियासी टॉनिक मिल गया है। 129 पेज के फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि चारधाम के मंदिरों में चढ़ावे की मालिक पुरोहित या सरकार नहीं बल्कि मंदिर बोर्ड होंगे। मंदिर की संपत्ति का उपयोग चारधाम के प्रबंधन के अलावा अन्य कार्यों में नहीं होगा। मंगलवार सुबह करीब दस बजे मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 129 पेज का एतिहासिक फैसला दिया। इसमें सुप्रीम कोर्ट के 140 जबकि विभिन्न उच्च न्यायालयों के चार फैसलों के महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया गया है। 

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हिंदू धर्म की विस्तार से की गई है व्याख्या

हाई कोर्ट ने फैसले में देहरादून की रूलक संस्था के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता के इस तर्क को माना है कि अधिनियम से हिंदू धर्म की किसी भी भावना को कोई ठेस नहीं पहुंचती। अधिनियम के सेक्शन दो में साफ है कि मुख्यमंत्री भी बोर्ड का प्राधिकारी (अथॉरिटी) तभी बन सकता है, जब वह हिंदू धर्म को मानता हो। अधिवक्ता कार्तिकेय बताते हैं कि यदि मुख्यमंत्री गैर हिंदू धर्म को मानने वाला है तो वह हिंदू धर्म मानने वाले वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी को बोर्ड की जिम्मेदारी सौंपेंगे। कोर्ट ने चढ़ावे पर सरकार के अधिकार वाली एक्ट की धारा 22 को पूरी तरह गलत माना है। साथ ही बोर्ड द्वारा अधिग्रहण की गई संपत्ति पर भी मालिकाना हक मंदिर का ही होगा। इसके अलावा अधिनियम से संविधान के धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित अनुच्छेद-14, 15, 25, 26 व 31ए का उल्लंघन नहीं होता। बोर्ड सिर्फ संपत्ति का प्रबंधन करेगा। 

अबकी रूलक बनी सरकार की तारणहार

पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं व अन्य बकाया माफी के मामले में सरकार को कटघरे में खड़ा करा चुकी रूलक संस्था देवस्थानम एक्ट मामले में सरकार की तारणहार बनी। संस्था ने प्रार्थना पत्र दाखिल कर न केवल खुद को पक्षकार बनाया, बल्कि सरकार की दलीलों को मजबूती भी प्रदान की। 

समय या जगह से नहीं बंधा है हिंदू धर्म

फैसले में हिंदू धर्म की विस्तार से व्याख्या की गई है। इसमें कहा गया है कि हिंदू धर्म को सनातन कहा जाता है, जो न समय से बंधा है और न जगह से। ऋग्वेद में इसे सनातन धर्म माना गया है। यह अनंतकाल से हमारे साथ है। सनातन का मतलब ही शाश्वत होता है। 

पद्मनाभन मंदिर के फैसले का प्रमुखता से उल्लेख

रूलक के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता के अनुसार कोर्ट ने केरल के पद्मनाभन मंदिर से संंबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विशेष उल्लेख किया है। केरल में मार्तंड वर्मा द्वारा 1686 में पद्मनाभन मंदिर का निर्माण किया गया था। 1948 में भारत सरकार से तत्कालीन राजा की संधि हुई कि मंदिर का उत्तराधिकारी या प्रबंधन राजा के पास ही रहेगा। राजा ने खुद की रकम से मंदिर बनाया था। कभी प्रशासनिक या वित्तीय गड़बडिय़ां नहीं की। जबकि चारधाम में 1896 में रावल पुरुषोत्तम ने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखा था। 1899 में हाई कोर्ट ऑफ कुमाऊं ने प्रबंधन बनाया। 1934 में महामना मदन मोहन मालवीय ने आंदोलन चलाया और 1939 में बदरीनाथ-केदारनाथ एक्ट बना था। अब देवस्थानम एक्ट बनने से पूर्व का एक्ट निरस्त भी हो गया है। 

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