तो भवानी दत्त के नाम से बसा भवानी गंज
रामनगर के दक्षिणी छोर में ढलान पर बसा है भवनी गंज मोहल्ला। पहले इस क्षेत्र मे कोई बसासत नहीं थी।
संस, रामनगर : रामनगर के दक्षिणी छोर में ढलान पर बसा है भवनी गंज मोहल्ला। पहले इस क्षेत्र में कोई बसासत नहीं थी। सिंचाई विभाग में ठेकेदारी करने वाले भवानी दत्त जोशी ने सबसे पहले यहा अपना पक्का आशियाना बनाया। तब से आज तक इस क्षेत्र का नाम भवानी गंज रूप में प्रचलित है। जोशी के वंशज आज भी यहा रहते है।
ढलान में होनें के कारण इस जगह पर सड़क नहीं हुआ करती थी। केवल उबड़खाबड़ कच्चे रास्ते हुआ करते थे। जहा से कोसी नदी में जाने के लिए पालतू हाथियों का रास्ता हुआ करता था। हरे भरे एक दो बगीचों के अलावा यहा जंगल था। उसके बाद यहा दो अलीशान भवन और बने जो देवी सदन और हरदासी लाल की बिल्िड़ग के नाम से विख्यात हुए। यह दोनों भवन आज भी अपने पुराने समय की याद दिलाते है। देवी सदन में देवीदत्त पडलिया और रेवाधर पडिलया दो भाई रहता करते थे। भारत पाक विभाजन के समय 1947 में यहा सिक्ख समाज के लोगों ने हरदासी लाल की बिल्डिग में बतौर किराए पर रहना शुरू किया। सिक्ख परिवारो ने यहा आकर अपना व्यापार शुरू किया। इसी के समीप कंजर बस्ती हुआ करती थी। जिसे अब लोग गिहार बस्ती के नाम से जानते है। कंजर बस्ती में रहने वाले लोगों का काम जंगलों में शिकार खेलना, जंगली जानवरों के अंगो को बटोर कर उन्हे बाजार में बेचकर अपनी आजीविका चलाना था। उस दौर में कंजर बस्ती में अक्सर लोग आपस में शराब पीकर लड़ा झगड़ा करते थे। इसलिए यहा लोग आने जाने में हिचका करते थे। समय के साथ साथ रामनगर का विकास हुआ। भवानी गंज में भी आलीशान भवन बने। बाद में कुछ मुस्लिम परिवारों ने भी अपने आशियाने यहा बनाए। आज इस क्षेत्र में सभी धर्म और संप्रदाय के लोग रहते है।
जोर लगाकर हैसिया..
उस दौर में न तो क्रेन हुआ करती थी। और न हीं जेसीबी। पास ही लकड़ी पड़ाव में सैकड़ों श्रमिक भारी भरकम मोटे मोटे लकड़ी के गिल्टो को लठ्ठा बॉडी ट्रक पर चढाने में जुटे रहते थे। एक गिल्टे को पंद्रह से बीस मजदूर जब ट्रक पर चढ़ाते थे। तब रात रात भर बोली बोलो हैसिया, जोर लगाओ हैसिया का उदघोष एक साथ करते हुए एक दूसरे में जोश भरते थे। और इस तरह लठ्ठा बॉडी ट्रक पर माल का लदान होता था।