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कारगिल युद्ध में ग्रेनेड हमले में घायल हो गए थे बहादुर, अब तैयार कर रहे हैं फौज NAINITAL NEWS

कारगिल युद्ध में जांबाज बहादुर सिंह घडि़याल ग्रेनेड लगने से घायल हो गए थे। जिसके बाद 36 दिन तक अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ी। अब युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित कर रहे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 10:43 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2019 10:43 AM (IST)
कारगिल युद्ध में ग्रेनेड हमले में घायल हो गए थे बहादुर, अब तैयार कर रहे हैं फौज NAINITAL NEWS
कारगिल युद्ध में ग्रेनेड हमले में घायल हो गए थे बहादुर, अब तैयार कर रहे हैं फौज NAINITAL NEWS

अल्मोड़ा, जेएनएन : देश के लिए जान देने वाले जांबाजों की उत्तराखंड में कोई कमी नहीं है। कारगिल युद्ध के गवाह रहे एक जांबाज ने घायल होने के बाद 36 दिन अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ी। जान तो बच गई लेकिन उसके बाद कोई सुविधा न मिलने के बाद जीवन लाचार हो गया। देश के इस सच्चे सैनिक ने अपना जज्बा नहीं टूटने दिया। गांव आकर युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत बने। आज इनके गांव के करीब 16 युवा सेना में अलग-अलग पदों पर देश की सेवा कर रहे हैं। 

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बात हो रही है जिले के हवालबाग ब्लॉक के डांगीखोला निवासी बहादुर सिंह घडिय़ाल की। कारगिल युद्ध में बहादुर ने अपने अदम्‍य साहस का परिचय दिया। इस युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद बहादुर करीब 36 दिनों तक आर्मी अस्पताल में भर्ती रहे। होश आने के बाद उन्होंने फिर अपनी पैराशूट रेजीमेंट में अपनी सेवाएं दी, लेकिन स्वास्थ्य में सुधार न होने के कारण वह सेवानिवृत्ति लेकर अपने गांव वापस आ गए। उपचार के दौरान कुछ औपचारिकताएं न होने के कारण आज भी बहादुर को मेडिकल की कोई सुविधा नहीं मिलती, लेकिन वह फिर भी निराश नहीं हुए। वह खेती कर अपने परिवार का गुजर बसर करने लगे। सेवानिवृत्ति के बाद भी बहादुर का देश भक्ति का जज्बा कम नहीं हुआ। गांव के युवाओं को अपनी दास्तां सुनाते और सेना में जाने के प्रति प्रेरित करते है। जरूरत पडऩे पर युवाओं को शारीरिक शिक्षा के गुर भी सिखाते हैं। 

बहादुर के जीवन का सफर 

हवालबाग ब्लॉक के डांगीखोला गांव के बहादुर सिंह वर्ष 1988 में आगरा से पैराशूट रेंजीमेंट में भर्ती हुए। जिसके बाद उन्होंने नागालैंड, जम्मू, लेह लद्दाख और फिर आगरा में अपनी सेवाएं दी। वर्ष 1999 में लेह लद्दाख में तैनाती के दौरान कारगिल युद्ध शुरू हो गया। जिसके बाद इनकी तैनाती चाइना नाला में हुई। आठ मई को युद्ध शुरू होने के पंद्रह दिनों के बाद 23 मई 1999 को बहादुर के सिर पर दुश्मन का ग्रेनेड लगा और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। 36 दिनों तक अंबाला के उत्तमपुर आर्मी अस्पताल में इनका उपचार हुआ और ठीक होने के बाद उन्होंने आगरा में फिर अपनी रेंजीमेंट में कार्य शुरू कर दिया। 2005 में बहादुर ने पैराशूट रेंजीमेंट से उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली। 

सेना में बढ़ा रहे गांव की शान 

धर्मवीर तिवारी व सुनील तिवारी (फ्लाइंग ऑफिसर), प्रकाश डांगी व विनोद डांगी (लेफ्टिनेंट), राजेंद्र सिंह, दीपक सिंह और जीवन सिंह (स्पेशल फोर्स), योगेश तिवारी, अजय तिवारी, संजय सिंह, कैलाश सिंह, विजय सिंह, पंकज सिंह (सिपाही कुमाऊं रेंजीमेंट), विनोद सिंह, कुलदीप डांगी (सिपाही बंगाल इंजीनियरिंग), सूरज सिंह डांगी (आर्मी मेडिकल कोर)। 


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