Independence Day: सरला बहन ने अपने ही देश के खिलाफ जाकर भारत में जगाई स्वतंत्रता आंदोलन की अलख
Independence Day 2022 यूं तो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक महान विभूतियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। इसके अनेक मार्मिक किस्से सुनने को मिलते हैं। पर इंग्लैंड की सरला बहन का उदाहरण सबसे परे है। उन्होंने अपने ही देश के खिलाफ जाकर स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी।
अल्मोड़ा, चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा। Independence Day 2022 अपने देश शक्तिशाली इग्लैंड के खिलाफ भारत आकर स्वतंत्रता आंदोलन की जो अलख जलाई उसने सरला बहन को अमर बना दिया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदाेलन के दौरान कौसानी के लक्ष्मी आश्रम से पूरे कुमांऊ में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेलों में बंद होने वाले सपूतों के परिवारों से मिलकर उनका हौसला बढ़ाती।
इस दौरान कई किमी यात्राएं की और आंदोलन की मशाल जलाई। आज भी लक्ष्मी आश्रम सरला बहन के त्याग, बलिदान की गाथा कहता है और लोग उनके इस अदम्य साहस से प्रेरित होते हैं।
ब्रिटिश मूूल की थीं सरला बहन
मूलरूप से इंग्लैंड निवासी कैथरीन मैरी हैलीमन महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थी। सन 1932 में वह उनसे मिलने भारत पहुंचीं। महात्मा गांधी की सलाह पर उन्होंने अपना नाम सरला बहन रख लिया।
वह 1941 में वह अल्मोड़ा आ गईं। कौसानी के निकट चनौदा गांधी आश्रम में रहकर उन्होंने सामाजिक कार्यों के साथ ही भारत की आजादी के लिए हुए आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर भागीदारी की।
कुमाऊं में खड़ा किया आंदोलन
1942 में गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन व करो या मरो के नारे के बाद सरला बहन ने कुमाऊं जिले में आंदोलन को संगठित करने और नेतृत्व करने में मदद की। उन्होंने राजनीतिक कैदियों के परिवारों तक पहुंचने के लिए क्षेत्र में बड़े पैमाने पर यात्रा की। आजादी का लोगों में जनजागरण किया।
उनके इस कार्य से ब्रिटिश हुकूमत की रातों की नींद उड़ गई। उन्हें यकीन नहीं था कि उनके देश का ही कोई उनके खिलाफ इस तरह मुखरता से आजादी की लड़ाई लड़ रहा है।
जिसके बाद गोरों की सरकार ने उनके गिरफ्तार कर लिया। उन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेजा गया। उसके बाद उन्हें लखनऊ के जेल में बंद कर दिया गया। वह करीब दो सालों तक जेलों में बंद रही।
कौसानी को बनाया कर्मभूमि
उनकी यात्रा यहीं खत्म नहीं हुई जेल से छूटने के बाद वह कौसानी आ गई। जब यह तय हो गया कि अब अंग्रेज भारत छोड़ने वाले है तो उन्होंने गांधीवादी विचारधारा और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने का काम किया। उन्होंने आजादी के दौरान की कर्मभूमि में 1946 में कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल (लक्ष्मी आश्रम कौसानी) की स्थापना की।
यहां से पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तीकरण और बालिकाओं को बुनियादी शिक्षा देने के लिए व्यापक अभियान चलाया। वह पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने पहाड़ में जंगल बचाने के लिए अभियान चलाया। बाद में चिपको आंदोलन हुए। आज भी उनके विचार प्रासंगिक है।