पिता अरविंद पांडे नहीं चाहते थे राजनीति में आए अंकुर,फिर भी लोगों में बनने लगी थी पैठ
माध्यमिक शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे की राजनैतिक विरासत तो वैसे उनके बड़े पुत्र अतुल पांडे संभालने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे।
रुद्रपुर, जेएनएन : माध्यमिक शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे की राजनैतिक विरासत तो वैसे उनके बड़े पुत्र अतुल पांडे संभालने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे। पर चुनाव में अंकुर भी बढ़चढ़ कर अपना योगदान देने से पीछे नहीं हटते थे। बड़ों का सम्मान कर सभी का दिल जीत लिया था।
माध्यमिक शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के लिए लाडले पुत्र अंकुर की मौत किसी बड़े झटके से कम नहीं है। उससे उबर पाना शायद ही किसी पिता के लिए संभव हो पाए। अंकुर अपने स्वभाव के कारण सबके मनों में अपनी जगह बनाते जा रहे थे। बड़ों का सम्मान और युवाओं से आत्मीयता के चलते ही भले उनके शौक और हो लेकिन स्थानीय लोग उनको राजनीति में लाने के लिए प्रेरित करते रहते थे। 2002 में पहली बार बाजपुर से विधायक बने अरविंद पांडे ने उत्तराखंड गठन के बाद से हुए चार चुनाव में लगातार जीत हासिल की। 2007 के चुनाव के बाद बाजपुर सीट के आरक्षित हो जाने के बाद गदरपुर विधानसभा से टिकट की दावेदारी करने के साथ ही गूलरभोज के संतोष नगर में अपना आवास बना लिया था। 2017 में हुए चुनाव में युवा अंकुर की भागीदारी भी रही और युवाओं के अंदर अपनी पैठ बनाने में वह सफल रहे। सरकार में मंत्री बनने के बाद जिम्मेदारी बढ़ी तो अरविंद पांडे ने प्रदेश की कमान संभाली तो स्थानीय कमान उनके बड़े भाई अतुल के साथ ही अंकुर ने भी संभाल ली थी।
हालांकि, उनके पिता मंत्री अरविंद पांडे उनको राजनीति में आगे करने के इच्छुक नहीं दिखाई देते थे, लेकिन अंकुर का स्वभाव उनके यहां आने वाले लोगों के दिलों में राज करने की तरफ बढ़ रहा था। जिस पर वह अंकुर को पंचायत चुनाव में आगे लाने की मांग तक करने लगे थे, लेकिन लोकप्रियता का यह आलम अधिक दिन नहीं चल पाया। अंकुर समय से पहले ही लोगों को रुला कर इस दुनिया को अलविदा कर चले गए। अचानक हुई अंकुर की हादसे में मौत ने सबको स्तब्ध कर दिया।
शूटिंग और अभिनय था शौक
घर के राजनीतिक माहौल से इतर अंकुर का मन निशानेबाजी और अभिनय में रमता था। यही वजह रही कि उन्होंने गत वर्ष देहरादून में आयोजित प्रदेश स्तरीय निशानेबाजी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। यही नहीं डेढ़ साल पहले फालूदा फिल्म में गेस्ट रोल भी किया था। समाज के ज्वलंत मुद्दों पर बनी यह फिल्म काफी सराही गई।
नेत्रदान की हसरत रह गई अधूरी
रेडक्रॉस के सचिव संदीप चावला के मुताबिक अंकुर ने नेत्रदान की इच्छा जाहिर करते हुए फार्म सबमिट किया था। लेकिन छह घंटे से ज्यादा शव को हो जाने व देर से सूचना मिलने के बाद मृतक की नेत्रदान नहीं हो सका।
बेटे का शव देख जड़वत हुए मंत्री
शव पहुंचने के करीब तीन घंटे बाद देहरादून से घर पहुंचे मंत्री अरङ्क्षवद पांडेय बेटे का शव देख जड़ हो गए। कई बार लगा कि वे फफक पडेंग़े, लेकिन हर बार खुद को संभालते नजर आए। घर से श्मशान घाट तक वह बेटे के शव को एकटक निहारते रहे।
सीएम ने श्मशान घाट तक किया विदा
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, काबीना मंत्री यशपाल आर्या, पूर्व सीएम भगत ङ्क्षसह कोश्यारी व हरीश रावत ने कोपा कृपाली ठंडी नदी पर बने श्मशान घाट पहुंचे और शव पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। सीएम रावत ने मंत्री पांडेय को ढांढस बंधाते हुए विदा ली।
शोक में बाजार रहा बंद
नगर में शायद यह पहला मौका था कि व्यापारियों ने शोक में अपने प्रतिष्ठानों को पूरे दिन बंद रखा। अंकुर की मृत्यु की जानकारी मिलने पर व्यापारियों ने अपनी दुकान नहीं खोली। नगर का प्रत्येक व्यापारी मंत्री पुत्र की मृत्यु शोक में शामिल हुआ।
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