Move to Jagran APP

अल्मोड़ा के कटारमल में स्थित है प्राचीन सूर्य मंदिर

उत्‍तराखंड के अल्मोड़ा के कटारमल में स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर। यह उत्तराखंड की धरोहर है। ऐसी धरोहर जिसे सैकड़ों साल पहले कत्यूरी वंश के शासक राजा कटारमल ने बनवाया था।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 04 Aug 2018 04:30 PM (IST)Updated: Sat, 04 Aug 2018 04:30 PM (IST)
अल्मोड़ा के कटारमल में स्थित है प्राचीन सूर्य मंदिर
अल्मोड़ा के कटारमल में स्थित है प्राचीन सूर्य मंदिर

नैनीताल, [जेएनएन]: कोणर्क का सूर्य मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में है। कोणार्क के बाद भगवान सूर्य के धाम के रूप में अगर किसी जगह का नाम सबसे पहले लिया जाता है तो वह है अल्मोड़ा के कटारमल में स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर। यह उत्तराखंड की धरोहर है। ऐसी धरोहर जिसे सैकड़ों साल पहले बनवाया था कत्यूरी वंश के शासक राजा कटारमल ने। राजा कटारमल के नाम पर ही इस जगह का नामकरण हुआ है।

prime article banner

मंदिर का निर्माण एक एक ऊंचे और वर्गाकार चबूतरे पर किया गया है। यह विशालतम सूर्य मंदिर कटारमल व (बड़ाआदित्य) उत्तर भारत की कत्यूर वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखता है। छह हजार फीट ऊंचे टीले पर मंदिर के निर्माण में तब इतनी शानदार प्लानिंग की गई थी, जिस वजह से आज तक यह उत्तराखंड के मस्तक पर चमक रहा है। ऐसा लगता है कि मंदिर में जो पत्थर लगाए गए हैं, उनमें जान है और सैकड़ों साल से वह यहां तपस्या कर रहे हैं।

मुख्य मंदिर के ऊपरी हिस्से को हालांकि कुछ नुकसान पहुंचा है, मगर इसे दुरुस्त कराया जा रहा है। कोशिश यह है कि पुरानी शैली में मंदिर की भव्यता को बरकरार रखा जाए। कुमाऊं में ऐसी शैली में और भी मंदिर बने हैं, लेकिन कटारमल की अलग भव्यता है।

पौराणिक इतिहास

मंदिर एक ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर है। छठी से नौवीं शताब्दी के बीच राजा कटारमल ने इसे बनवाया था। ऊंचे शिखर को देखकर इसकी विशालता और वैभव का अनुमान स्पष्ट होता है। मुख्य मंदिर के आसपास 45 छोटे-बड़े मंदिरों का समूह भी बेजोड़ है। मुख्य मंदिर की संरचना त्रिरथ है और वर्गाकार गर्भगृह के साथ वक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार उस दौर के बेहतरीन शिल्प को दिखाता है। इसके वैभव को देख इतिहासकार भी मानते हैं कि मंदिर को बनवाने में काफी समय लगा है। वर्तमान में यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।

धार्मिक मान्‍यता

मान्यता है कि सतयुग में देवभूमि की कंदराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्मद्वेषी असुर ने अत्याचार किए थे। तब द्रोणगिरी (दूनागिरी), कषाय पर्वत तथा कंजार पर्वत के ऋषि-मुनियों ने कौशिकी (कोसी नदी) के तट पर आकर सूर्य की स्तुति की। इस स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने अपने दिव्य तेज को वटशिला में स्थापित कर दिया। माना जाता है कि इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान के रूप में प्रस्तुत सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया होगा। जो अब कटारमल सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

2116 मीटर की ऊंचाई

2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कटारमल के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए अब सड़क बनाई जा रही है। पहले पदयात्रा होती थी। कोसी रोड पर करीब 14 किमी की दूरी तय करने के बाद कटारमल आता है। हालांकि, अधेली सुनार नामक गांव में यह मंदिर है, लेकिन राजा कटारमल ने निर्माण करवाया था तो इस जगह का नाम ही कटारमल पड़ गया। पास में गांव है। हालांकि इस इलाके का आभामंडल एक पल के लिए निराश करता है, मगर मंदिर में कदम रखते ही जब भव्यता से साक्षात्कार होता है तो अतीत की धरोहर अपनी ओर खींचती है।

दुर्लभ है यह शैल

कत्यूरी शासनकाल में सूर्य मंदिर के अलावा कुमाऊं की धरती पर जितने मंदिर बनाए गए, सभी की शैली एक है। यह दुर्लभ शैली है। जागेश्वर मंदिर समूह हो या बैजनाथ मंदिर। अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत और बागेश्वर जिले में ऐसे मंदिर आज भी यह एहसास कराते हैं कि तब की शैली कितनी शानदार थी। संसाधनों की कमी के बावजूद कत्यूरी राजाओं ने पूरी शिद्दत के साथ मंदिरों को बनवाया। यह ऐसा शिल्प है, जो अब नहीं लौट सकता। धरोहर के रूप में मंदिर आज भी कुमाऊं के साथ हैं और जैसे बनाए थे, वैसे ही हैं।

यह भी पढ़ें: बदरीनाथ धाम की आरती की पांडुलिपी मिली, पेश किया गया ये दावा

यह भी पढ़ें: यहां भगवान शंकर ने पांडवों को भील के रूप में दिए थे दर्शन

यह भी पढ़ें: यहां माता गौरी संग आए थे महादेव, होती है हर मनोकामना पूरी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.