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एडवोकेट जोशी ने बाल विवाह पर सख्ती के लिए खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा, ऐसे मिली जीत

वैज्ञानिक युग में प्रवेश करने के बाद भी आज हम मानसिक रूप से रुढ़ीवादी परंपराओं के मकड़जाल को नहीं तोड़ पाए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 11:30 AM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 11:39 AM (IST)
एडवोकेट जोशी ने बाल विवाह पर सख्ती के लिए खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा, ऐसे मिली जीत
एडवोकेट जोशी ने बाल विवाह पर सख्ती के लिए खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा, ऐसे मिली जीत

बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विवेदी : वैज्ञानिक युग में प्रवेश करने के बाद भी आज हम मानसिक रूप से रुढ़ीवादी परंपराओं के मकड़जाल को नहीं तोड़ पाए हैं। यही कारण हमारे समाज में बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराईयां समाज जिंदा हैं। जागरूक नागरिक एडवोकेट डीके जोशी ने आगे आकर इन बच्चियों का दर्द महसूस किया। कुप्रथा रोकने में जब सरकार असफल हुई तो उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जिसके बाद नाबालिगों को आस जगी जो अशिक्षा, गरीबी के कारण नरक भरी जिंदगी जीने को मजबूर थी।

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बाल विवाह के अंत की घोषणा ब्रिटिश राज में हुई। जिसके बाद बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 में आया। आजादी के बाद बाल विवाह प्रतिषेद अधिनियम-2006 आया। 90 साल बीत जाने के बाद भी यह सामाजिक बुराई आज तक समाज में व्याप्त हैं। ना खत्म होती सामाजिक बुराई के खिलाफ वर्ष 2016 नैनीताल हाईकोर्ट में एडवोकेट डीके जोशी ने पैरवी की।

एडवोकेट जोशी ने बताया कि कम उम्र में शादी और बच्चे पैदा होने से महिलाओं के स्वास्थ्य में विपरीत असर होता है। जबकि बच्चे भी गंभीर रोगों की चपेट में आते हैं। यह भी जानकारी दी गई कि उत्तराखंड के जिलों में अब तक बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई है। इससे आज भी बाल विवाह की गुंजाइश बनी हुई है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की संयुक्त खंडपीठ ने इस मामले में सर्वे के नतीजों पर आश्चर्य जताया। सभी जिलों में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त करने का आदेश दिया गया। कड़ाई से इस कुप्रथा पर अंकुश लगाने को सरकार से कहा।

बाल विवाह के आंकड़ों ने कोर्ट को चौंकाया

वार्षिक हेल्थ रिपोर्ट पर अगर गौर करें तो हकीकत अपने आप बयां हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार 15 से 19 साल के बीच बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं की तादात पिथौरागढ़ में 43.1 प्रतिशत व चम्पावत में 39.3 प्रतिशत है। यानि साफ है आज भी इतनी बढ़ी संख्या में नाबालिगों की शादियां हो रही हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में 12632 बाल विवाहित है। यह वह आंकड़ा है जो दर्ज है। इससे पांच गुना आंकड़ा वह है जिसका पता ही नही चल पाया।

बढ़ रही है गरीबी गिर रहा शिक्षा का स्तर

हाईकोर्ट में एडवाकेट डीके जोशी ने बताया कि बाल विवाह का बड़ा कारण है अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ापन। कानून सख्त बनाने के साथ समाज के बीच इन मुद्दों के लिए भी कार्य करना होगा। दुर्भाग्य से गरीबी बढ़ती जा रही है। शिक्षा का स्तर भी अच्छा नही है। सामाजिक जागरूकता जरूरी है।


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