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प्रभावशाली आरोपितों ने न्यायिक प्रक्रिया में उलझाए रखा रामपुर तिराहा कांड का केस

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले की सीबीआइ जांच का आदेश दिया था, मगर 24 साल की लंबी न्यायिक लड़ाई के बाद भी अब तक इस कांड के आरोपितों को सजा नहीं हो सकी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 08:26 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 03:12 PM (IST)
प्रभावशाली आरोपितों ने न्यायिक प्रक्रिया में उलझाए रखा रामपुर तिराहा कांड का केस
प्रभावशाली आरोपितों ने न्यायिक प्रक्रिया में उलझाए रखा रामपुर तिराहा कांड का केस

नैनीताल (जेएनएन): रामपुर तिराहा कांड में राज्य आंदोलनकारियों के साथ पुलिस बर्बरता, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़खानी मामले की जांच को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर हुई थीं। इन याचिकाओं में मसूरी, खटीमा गोलीकांड की भी जांच की मांग की गई थी।

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कोर्ट ने मामले की सीबीआइ जांच का आदेश दिया था, मगर 24 साल की लंबी न्यायिक लड़ाई के बाद भी अब तक इस कांड के आरोपितों को सजा नहीं हो सकी है। स्वतंत्र भारत में में यह पहला जघन्य कांड था, जिसकी तुलना जलियावाला बाग से की गई थी। यही वजह रही कि नैनीताल हाई कोर्ट की खंडपीठ को सीबीआइ दून द्वारा तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह समेत अन्य के खिलाफ धारा-302 की धारा जोडऩे के सीबीआइ कोर्ट के निरस्त किए गए आदेश को रिकॉल करना पड़ा। मामले के आरोपित प्रभावशाली लोग थे, जिन्होंने न्यायिक प्रक्रिया को उलझा कर रख दिया। इससे दो दशक बीतने के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकल सका। वहीं मामले के गवाह तत्कालीन सीओ जगदीश सिंह के गनर रहे सुभाष गिरी की हत्या कर दी गई थी। वह भी मामले में आरोपित थे और बाद में सरकारी गवाह बन गए थे।

मुकदमे पर मुकदमे, मगर सजा किसी को नहीं

राज्य आंदोलन के दौरान सीबीआइ की अयोध्या एक-दो तथा लखनऊ सेल द्वारा कुल 12 मुकदमे दर्ज किए। इसमें पांच मुकदमे मुजफ्फरनगर सीबीआइ कोर्ट में मजिस्ट्रेट के यहां विचाराधीन हैं, जबकि दो मुकदमे मुजफ्फरनगर सीबीआइ जज की कोर्ट में तथा पांच मुकदमे सीबीआई देहरादून की कोर्ट में। 22 अप्रैल 1996 को सीबीआइ कोर्ट दून ने मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह, एसपी राजपाल सिंह, एएसपी एनके मिश्रा, सीओ जगदीश सिंह, गनर सुभाष गिरी के खिलाफ धारा-304, 307, 324, 326 व धारा-302 के तहत मुकदमा दर्ज कराया। छह मई का पांचों आरोपितों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया। राज्य बनने के बाद 2003 में तत्कालीन डीएम अनंत की याचिका पर हाई कोर्ट के जस्टिस पीसी वर्मा व जस्टिस एमएम घिल्डियाल की कार्ट ने हत्या की धारा जोडऩे संबंधी सीबीआइ कोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया। 22 अगस्त को इसकी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हुई, जिसके बाद आदेश रिकॉल करते हुए मामला दूसरी बेंच को रेफर कर दिया गया। 28 अगस्त 2004 को जस्टिस राजेश टंंडन व जस्टिस इरशाद हुसैन की खंडपीठ ने अनंत कुमार की याचिका खारिज कर दी। 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के केस ट्रांसफर से संबंधित दस मामलों की सीबीआइ की अपील सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी।

24 को होगी हाई कोर्ट में सुनवाई

राज्य आंदोलनकारियों के अधिवक्ता रमन साह की ओर से दायर याचिका पर हाई कोर्ट की एकलपीठ 24 अक्टूबर का सुनवाई करेगी। साह के अनुसार हाई कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेने के बाद पीडि़तों को न्याय मिलने में उम्मीद जगी है। साथ ही आंदोलनकारियों का पक्ष भी मजबूत हुआ है।

दिल्‍ली में मिली रामपुर तिराहा कांड की जानकारी

डॉ. एनएस जंतवाल, प्रमुख राज्य आंदोलनकारी एवं उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष ने बताया कि अलग राज्य आंदोलन के दौरान दो अगस्त 1994 को 'पहाड़ के गांधीÓ इंद्रमणि बड़ोनी के नेतृत्व में पौड़ी में अनशन शुरू किया गया। छह-सात अगस्त को रात में पीएसी व पुलिस ने अनशनस्थल के टेंट को ध्वस्त कर दिया और अनशनकारियों को जबरन  मेरठ भेज दिया। इस कार्रवाई के प्रतिरोध में राज्य में जनाक्रोश फूट पड़ा था। नैनीताल में 15 अगस्त को उक्रांद नेता काशी सिंह ऐरी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हुआ तो कर्मचारी भी इसमें कूद पड़े। दो सितंबर को खटीमा व तीन को मसूरी में गोलीकांड हुआ, जिसके बाद संयुक्त संघर्ष समिति ने दो अक्टूबर को दिल्ली कूच का निर्णय लिया। नैनीताल से तमाम आंदोलनकारी दिल्ली रवाना हुए, मगर मुरादाबाद के रामपुर तिराहे पर इन्हें रोक लिया गया। फिर भी पहचान छिपाकर सैकड़ों आंदोलनकारी दिल्ली पहुंच गए। दो अक्टूबर को दिल्ली में रामपुर तिराहा कांड की जानकारी मिली। मगर दो दशक बीतने के बाद भी इस जघन्य कांड के आरोपित खुलेआम घूम रहे हैं। अब हाई कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया है, जिसका हम स्वागत करते हैं।

असली दोषी कौन है, दिल्ली में जो मौन है

राज्‍य आंदोलनकारी पूरन मेहरा ने बताया कि राज्य आंदोलन का नैनीताल प्रमुख केंद्र था। उस दौर में 'असली दोषी कौन है, दिल्ली में जो मौन हैÓ का नारा भी खूब चला। यह नारा तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव की राज्य आंदोलन को लेकर चुप्पी पर लगाया गया था। मेरे साथ मोहन लाल साह, हरीश अधिकारी, पंकज बिष्टï, विजय अधिकारी, वीरेंद्र राठौर आदि ने मशाल जुलूस निकाला। रैपिड एक्शन फोर्स ने आंदोलनकारियों पर फायरिंग की, नतीजतन तीन अक्टूबर को चिडिय़ाघर रोड पर आंदोलनकारी प्रताप सिंह की मौत हो गई। आंदोलनकारियों पर गोली चलाने वालों को अब तक सजा नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है।

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