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हमारा उत्पाद हमारी पहचान : सदियों पुरानी अनूठी ऐपण कला को युवा सोच दे रही नई दिशा

लोकविधा में प्रकृति संस्कृति व अध्यात्म की छाप साफ झलकती है। प्राचीनकाल से घर की देहरी आंगन मुख्य कमरा व मंदिर तक गेरू (विशिष्टï सिंदूरी मिट्टी) व बिश्वार (भीगे चावलों को पीस बनाया तरल लेप) से कलात्मक डिजाइन से सजाने की परंपरा रही है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 02 Oct 2021 08:56 AM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 08:56 AM (IST)
हमारा उत्पाद हमारी पहचान : सदियों पुरानी अनूठी ऐपण कला को युवा सोच दे रही नई दिशा
हिमालयी राज्य की ऐपण कला उत्तर प्रदेश में चौक पुराण, बंगाल में अल्पना, बिहार में अट्टापान कहा जाता है।

दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा। उत्तराखंड की अनूठी लोक विधा ऐपण (अल्पना)। ऐसी अद्भुत कला जो सदियों से ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति कराती आ रही। ऐपण कला में डूब कलात्मक सोच को विकसित भी करती है। हरेक तीज त्योहार, धार्मिक कार्यक्रम हों या जन्म, नामकरण एवं विवाह की रस्म ऐपण के बाद ही शुरू होती है। हालांकि आधुनिकता की बयार में ऐपण कला की जगह अब कंप्यूटराइज्ड छपे छपाए पोस्टर व स्टिकर ने ले ली है। इसके बावजूद गांवों में बुजुर्ग महिलाएं जहां विरासत में मिली विशिष्टï लोकविधा को जिंदा रखे हैं। वहीं युवा पीढ़ी अब ऐपण कला को नए अंदाज में बढ़ावा देने में जुटे हैं बल्कि भावी पीढ़ी को प्रेरित भी कर रही। 

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उत्तराखंड में मानव सभ्यता के साथ ऐपण कला का विकास भी माना जाता है। इस लोकविधा में प्रकृति, संस्कृति व अध्यात्म की छाप साफ झलकती है। प्राचीनकाल से घर की देहरी, आंगन, मुख्य कमरा व मंदिर तक गेरू (विशिष्टï सिंदूरी मिट्टी) व बिश्वार (भीगे चावलों को पीस बनाया तरल लेप) से कलात्मक डिजाइन से सजाने की परंपरा रही है। महज तीन उंगलियों से उकेरी जाने वाली कलाकृति में धर्मशास्त्र के प्रतीकचिह्नïों का बड़ा महत्व है। विज्ञानी दौर में अनूठी हस्तकला पर मशीनों का अतिक्रमण तो बढ़ा है मगर सदियों से चली आ रही विशिष्टï परंपरा को बचाए रखने के लिए युवा पीढ़ी में एक नई क्रांति आई भी है। 

युवा जुनून में लोककला का संरक्षण व स्वरोजगार 

मूलरूप से रानीखेत निवासी ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती कुमाऊं के साथ गढ़वाल में भी लोकविधा ऐपण के प्रचार प्रसार में जुटी हैं। वह गांवों में कैंप लगा ग्रामीण युवतियों व महिलाओं को ऐपण की बारीकियां भी सिखा रहीं। खुद भी महानगरों की चकाचौंध से दूर पहाड़ में घर आंगनों को ऐपण से रंग रही। एसएसजे विवि अल्मोड़ा की छात्रा मीनाक्षी आगरी ने इस बार कुंभ मेले में ताम्र नगरी से भेजे गए 500 गागर, फौले व कलश को ऐपण से डिजाइन कर हरिद्वार भेज नई परंपरा का सूत्रपात किया।

मीनक्षी के पास सीमांत पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत व हल्द्वानी आदि से विविध डिजाइन के ऐपण बनाने के ऑर्डर भी आने लगे हैं। इन दिनों वह पुलिस परिवार की महिलाओं को दक्ष बना रही। वहीं सांंस्कृतिक नगरी में इंद्रा अधिकारी महिलाओं के समूह बना ऐपण को स्वरोजगार का जरिया बनाने में जुटी हैं। वह अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा महिलाओं व युवतियों को ऐपणकला का प्रशिक्षण दे चुकी। 

जमीन से कुशनकवर व बर्तनों तक आया डिजाइन 
ऐपण गर्ल मीनाक्षी आगरी ने ऐपण कला को जुदा अंदाज में विस्तार दिया है। वह आंगन, देहरी के साथ ही बर्तनों, कुशन कवर, मेजपोश व ड्राइंग रूम की चादरों पर ऐपण के डिजाइन देकर सजावट के रूप में नई पहचान दिला रही। उत्तराखंड पुलिस खासतौर पर डीजीपी अशोक कुमार को मीनाक्षी की ऐपण वाली नेमप्लेट का ऐसा मुरीद बनाया कि विभाग में अधिकारी कर्मचारी आकर्षक नेमप्लेट बनवाने लगे हैं। अब दिवाली करीब है तो ऐपण से सजे गणेश व लक्ष्मी चौकी की डिमांड खूब बढऩे लगी है। 
ऐपण एक नाम अनेक 
माना जाता है कि ऐपण कला का विस्तार भारत वर्ष में उत्तराखंड से ही हुआ। हिमालयी राज्य की ऐपण कला उत्तर प्रदेश में चौक पुराण, बंगाल में अल्पना, बिहार में अट्टापान कहा जाता है।
ये है धार्मिक महत्व 
कोई भी शुभकार्य ऐपण बिना संभव नहीं। धार्मिक अनुष्ठानों व महायज्ञ से पूर्व हवन कुंड व वेदी को ऐपण से ही सजाया जाता है। ऐपण बनाने वाले में ईश्वरीय शक्ति का विकास व परिवार, समाज गांव देश के सौभाग्य से भी यह कला जुड़ी है। यानि आध्यात्मिक कार्यों पर आधारित एक अनूठी कला है ऐपण।
 

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