जवान बेटों की मौत से गम का पहाड़ टूटा
भूमियाधार में हुए हादसे में क्षेत्र के दो युवकों की मौत से हल्दूचौड़ दीना डी क्लास में सन्नाटा पसरा है।
संवाद सहयोगी, लालकुआं : भूमियाधार में हुए हादसे में क्षेत्र के दो युवकों की मौत से हल्दूचौड़ के दीना डी क्लास में सन्नाटा पसरा है। मृतक युवक गिरीश के पिता हरीश चंद्र व गणेश के पिता जय चंद्र की बूढ़ी हो चुकी आंखें पथरा सी गयीं। जवान बेटों की हादसे में मौत से से दोनों बुरी तरह टूट चुके हैं। मनहूस सूचना मिलने के बाद मृतक गिरीश व गणेश की माताओं का रो-रोकर बुरा हाल है, दोनों अर्द्धमूच्छित हो जा रही हैं। हादसे के बाद पूरे गांव में सन्नाटा पसरा है।
18 नवंबर को हल्दूचौड़ के दीना डी क्लास निवासी गिरीश जोशी व गणेश पाडे तथा हल्द्वानी निवासी शुभम कांडपाल सेंट्रो कार में सुयालबाड़ी में किसी रिश्तेदार के घर पर आयोजित विवाह समारोह में शामिल होने गए थे। उसी रात्रि नौ बजे परिजनों ने जब उनके नबंर पर फोन लगाया तो तीनों दोस्तों ने रात में ही लौटने बात कही। जब 19 नवंबर की सुबह तक तीनों दोस्त घर नही पहुंचे तो परिजनों को चिंता हुई। उनकी तलाश की गई तो कुछ पता नहीं चला। इधर शुक्रवार सुबह नैनीताल के पास भूमियाधार के पास खाई से तीनों के शव और उनकी कार बरामद हुई। मनहूस खबर मिलते ही परिजनों में कोहराम मच गया।
हल्दूचौड़ डीना में एक ही गांव के दो युवाकों की मौत से पूरा गांव शोक में डूबा है। गिरीश तीन भाईयों में मझला था जबकि गणेश दो भाईयों व तीन बहनों में दूसरे नंबर का था। हल्द्वानी निवासी शुभम कांडपाल परिवार का इकलौता चिराग था। उसकी एक छोटी बहन है। गिरीश व गणेश की मां का रो-रोकर बुरा हाल है, वह बार-बार अपने लाड़लों का नाम पुकारते हुए बेहोश हो जा रही हैं।
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करीबी रिश्तेदार थे तीनों दोस्त
लालकुआं : मृतक गिरीश जोशी नोयडा में प्राइवेट फैक्ट्री में नौकरी करता था। दीवाली की छुट्टी काटने के बाद उसे 20 नवंबर को ड्यूटी पर लौटना था जबकि गणेश पाडे व शुभम कांडपाल रुद्रपुर में सिडकुल की किसी कंपनी में नौकरी करते थे। शुभम कांडपाल की फेसबुक वाल पर पिछले 11 नवंबर को उसके मित्रों ने उसे जन्मदिन की बधाई दी थी। तीनों में गहरी मित्रता थी और वह करीबी रिश्तेदार भी थे।
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सिर पर सेहरा बांधने की तैयारी के बीच कफन ओढ़ चले गएं
लालकुआं : गिरीश व गणेश अविवाहित थे। परिजन इन दिनों उनकी शादी की तैयारी में थे। कई जगह उन्होंने लड़की देखने को कहा था लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जिनके सिर पर सेहरा बंधने की तैयारी चल रही थी वह कफन ओढ़कर विदा हो लिए।
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