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बच्चे दो और पेड़ हजार का लक्ष्य बनाकर गोपाल ने सामाजिक के साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी निभाई

नैनीताल के किलबरी क्षेत्र के सौड़ में दंपती ने पेड़-पौधों को ही आजीविका का माध्यम बना लिया है। कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद ये पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी जुनूनी हैं।

By Edited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 06:44 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 07:55 AM (IST)
बच्चे दो और पेड़ हजार का लक्ष्य बनाकर गोपाल ने सामाजिक के साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी निभाई
बच्चे दो और पेड़ हजार का लक्ष्य बनाकर गोपाल ने सामाजिक के साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी निभाई

नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल के किलबरी क्षेत्र के सौड़ में दंपती ने पेड़-पौधों को ही आजीविका का माध्यम बना लिया है। कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद ये पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी जुनूनी हैं। जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर सौड़ गांव निवासी गोपाल सिंह (62) व उनकी पत्नी बसंती देवी (55) ने पौधों की बगिया तैयार की है। उनकी बनाई नर्सरी में काफल, तिमिल, शहतूत, कुरियाल, भीमल, पांगर, अखरोट, देवदार, बांज, मणिपुरी बांज, तेजपत्ता व बुरांश के पौधे उगाए जाते हैं।

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गोपाल ने 1985 में 'बच्चे दो और पेड़ हजार' के नारे को लक्ष्य मानकर धीरे-धीरे पेड़-पौधे उगाने की शुरुआत की। उनकी मेहनत है, जो आज उनकी नर्सरियों में हजारों की संख्या में पौधे उपलब्ध हैं। ये निजी व विभागीय रूप से भी पौधों की सप्लाई करते हैं। इसी के बलबूते गोपाल सिंह व बसंती ने चार-पांच अन्य लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं। वह बताते हैं कि जंगली जानवरों से पौधों को बचाना, फिर सरकारी स्तर पर सप्लाई के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, मगर पौधे उगागर पृथ्वी को हरा-भरा बनाना और अधिकाधिक लोगों को इससे जोड़ना उनका संकल्प है। इस संकल्प को पूरा करने के लिए पूरा परिवार जुटा है। गोपाल कहते हैं कि इस काम से उन्हें आत्मिक संतोष मिलता है।

प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित कराना है मिशन

प्रतिष्ठित पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत को पांच दशक से अधिक समय से नैनीताल समेत पूरे उत्तराखंड की जैव विविधता के संरक्षण का जुनून सवार है। वह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्रोजेक्ट या योजना को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जा चुके हैैं। सामाजिक बहादुरी के लिए प्रो. रावत को 2007 व 2013 में प्रतिष्ठित गॉड फ्री फिलिप्स अवार्ड के अलावा बेस्ट आरटीआइ सिटीजन ऑफ इंडिया का पुरस्कार मिल चुका है। वह अब प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित कराना चाहते हैं।

कुविवि के एचओडी रह चुके प्राे रावत

कुमाऊं विवि के इतिहास विभागाध्यक्ष पद से रिटायर्ड प्रो. रावत 1973 से ही पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यरत हैं। 90 के दशक में नैनीताल में अंधाधुंध निर्माण से जैव विविधता को उपजे खतरे के देखते हुए वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां कोर्ट ने नैनीताल में मल्टीस्टोरी व ग्रीन बेल्ट में निर्माण पर पाबंदी लगा दी। उत्तराखंड सरकार ने दस हेक्टेयर से कम के जंगल को वनों की परिभाषा से बाहर किया तो यहां भी प्रो. रावत की याचिका पर हाई कोर्ट ने सरकार को बैकफुट पर धकेल दिया। उन्होंने अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित करने के लिए रिट दायर की है। रानीबाग हल्द्वानी से हनुमानगढ़ी नैनीताल तक रोप-वे के प्रोजेक्ट को पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक करार देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। प्रो. रावत का लक्ष्य है कि उत्तराखंड में प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित हो।

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