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संघर्ष की गाथा : पांचवीं तक पढ़ाई, डेढ़ लाख महीना कमाई

सरस मेले में एलईडी बल्ब लेकर पहुंची उत्तर प्रदेश की अनीता का जीवन भी बड़ा संघर्षपूर्ण रहा है, लेकिन अपने जज्बे और हौसले की वजह से अनीता आज हर महीने डेढ़ लाख रुपये की कमाई कर रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 19 Jan 2019 11:53 AM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2019 11:53 AM (IST)
संघर्ष की गाथा : पांचवीं तक पढ़ाई, डेढ़ लाख महीना कमाई
संघर्ष की गाथा : पांचवीं तक पढ़ाई, डेढ़ लाख महीना कमाई

सतेंद्र डंडरियाल, हल्द्वानी। मुसीबतों से लडऩे वाला इंसान अक्सर अपनी मंजिल को छू लेता है। अगर हौसला है तो कैसी भी मुश्किल आ जाए वह चकनाचूर हो जाती हैं। हल्द्वानी में आयोजित हो रहे सरस मेले में एलईडी बल्ब लेकर पहुंची उत्तर प्रदेश की अनीता का जीवन भी बड़ा संघर्षपूर्ण रहा है, लेकिन अपने जज्बे और हौसले की वजह से अनीता आज हर महीने डेढ़ लाख रुपये की कमाई कर रही है। यहां उनकी मेहनत की दास्तां सुनकर हर कोई उनके जज्बे को सलाम कर रहा है। वह आज महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बन गई हैं।अनीता की जिंदगी के कुछ पहलुओं को जानकर आसानी से समझा जा सकता है। आपसी रंजिश में पति की हत्या हुई। गांव के बुजुर्गों के कहने पर पांच बच्चों की मां ने देवर से विवाह किया, लेकिन दिक्कतें इसके बाद भी कम नहीं हुई। पांच बच्चों के परिवार का पालन-पोषण दोनों को सताने लगा। यहीं से शुरू हुई जिंदगी जीने या मरने की लड़ाई। पहले तो एक साल तक काम के लिए दर-दर भटके। इसके बाद घुंघुट की परंपरा वाले गांव की महिला ने जब नौकरी के लिए घर से बाहर कद रखा तो लोगों के ताने भी सुने। मजदूरी करने के साथ ही प्राइवेट नौकरियां की। वहां पर दोनों ने लगातार 36-36 घंटे तक नौकरी की। फिर भी आर्थिक हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे। तब कुछ ऐसा किया जो आज दूसरे के लिए प्रेरणा बन गया।

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पंद्रह हजार रुपये की मदद से हुई शुरुआत : उत्तर प्रदेश के शामली उस्मानपुर गांव के विकासखंड थाना भवन की रहने वाली अनीता और उनके पति शिव कुमार ने हल्द्वानी में आयोजित किए जा रहे सरस मेले में पहली बार अपना स्टाल लगाया है। महज पांचवी तक पढ़ी-लिखी अनीता ने बहुत मुश्किलें झेली। वर्ष 2016 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए समूह बनाकर अनीता ने काम शुरू किया। तीन महीने के प्रशिक्षण के बाद मिशन से मिली 15000 रुपये की आर्थिक मदद से एलईडी बल्ब बनाने का काम किया। उनके काम को देखते हुए कुछ ही समय बाद ब्लॉक स्तर से उन्हें एक लाख और बैंक से ऋण के रूप में पचास हजार रुपये की मदद मिली। इसके बाद अनीता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने और उनके विपणन के लिए दिल्ली में फिर से प्रशिक्षण लिया। अब उन्होंने अपना स्वयं का एलईडी बल्ब बनाने का छोटा प्लांट लगाने की ठानी। फिर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की सहायता से पांच लाख रुपये की मदद ली। अपनी जमीन बेचकर चार लाख रुपये जुटाए और प्लांट तैयार कर लिया। अनीता और उनके पति शिव कुमार के लिए सफलता का यह सफर इतना आसान बिल्कुल नहीं था, लेकिन उनका हौसला इतना मजबूत था कि चट्टान बनकर उनके सामने खड़ी तमाम मुश्किलें भी आसान होती चली गई। आज अनीता डेढ़ लाख रुपये महीना कमा रही हैं, जिसमें से अपने समूह की महिलाओं को उनका मेहनताना देने के बाद इतना बच जाता है कि अपने परिवार और बच्चों की अच्छी परवरिश कर रही हैं।

तीन बेटियों को बनाना है अफसर : उत्तरप्रदेश के बागपत खामपुर में जन्मी अनीता आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। विवाह के बाद शामली आई अनीता आज महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी है। उनके काम को देखते हुए उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने ग्रामीण क्षेत्रों में समूह गठन करने की जिम्मेदारी दी है। अनीता न केवल बेटी-बचाव बेटी पढ़ाओ के नारे को हकीकत में आत्मसात करती नजर आती है। उन्होंने अपने समूह में पंद्रह महिलाओं को भी रोजगार दिया है। वह कहती हैं कि वह अपनी तीन बेटियों और दो बेटों को खूब पढ़ाना चाहती हैं।

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