हत्या के बाद लाश काे ठिकाने लगाने का सुरक्षित स्थान बना खटीमा का जंगल, छह सालों में 42 शव बरामद
षड़यंत्र कहीं और होता है। हत्या कहीं और की जाती है। लेकिन लाश को ठिकाने लगाने के लिए सीमांत के जंगल में फेंक दिया जाता है। दो राज्यों की सीमा में आने वाले यह जंगल क्षेत्र अपराधियों के लिए मुफीद साबित हो रहा है।
खटीमा, जेएनएन : षड़यंत्र कहीं और होता है। हत्या कहीं और की जाती है। लेकिन लाश को ठिकाने लगाने के लिए सीमांत के जंगल में फेंक दिया जाता है। दो राज्यों की सीमा में आने वाले यह जंगल क्षेत्र अपराधियों के लिए मुफीद साबित हो रहा है। छह सालों में 42 लाशें एक के बाद एक ठिकाने लगाई गई हैं। जिनमें 35 लाशों की शिनाख्त नहीं हो सकी है। आलम यह है यहां के जंगल लावारिश लाशों कब्रगाह बन चुका है।
सुरई रेंज का जंगल बेहद घना और उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है। रात के अंधेरे में लाश को ठिकाने लगाने के बाद आसानी से भागा जा सकता है। पिछले कुछ समय से सीमाओं के जंगलों में लावारिस लाशे पुलिस की उदासीनता को भी उजागर कर रही है। हकीकत है, दरअसल, दूसरे थानों में हत्या की घटनाओं को अंजाम देने के बाद हत्यारे शव को खटीमा जंगल में फेंक देते हैं। इतना ही नहीं पहचान छिपाने के उद्देश्य से शव को भी क्षत विक्षत कर दिया जाता है। जिस कारण इन शवों की निशनाख्त पुलिस के लिए पहेली बनकर रह जाती है और हत्यारे पुलिस की पकड़ से दूर बने रहते हैं।
30 लाशों की नहीं हुई शिनाख्त
पुलिस के पास काम का इतना बोझ अधिक होने के चलते लावारिश लाशों के जांच अधिकारी भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता। लावारिश लाशों वाले केस में अमूमन तहकीकात करने पर पता चलता है कि वारदात को कहीं दूसरी जगह अंजाम दिया जाता है। लाश कहीं दूसरी जगह फेंकी जाती है। इतना ही नहीं अगर लाश की शिनाख्त हो गई, तो उसकी भी जगह बदली होती है। इतना सब कुछ होने के बाद गुमशुदगी की रिपोर्ट कहीं दूसरे थाने में दर्ज होती है। परिणाम यह होता है कि कानूनी बारिकियां और जटिलताओं के कारण केस अपने आप ही कमजोर हो जाता है। बांकी रही सही कसर पुलिस की जांच पूरी कर देती है। जिससे लावारिश लाश को पूरा न्याय नहीं मिल पाता।
लावारिश शिनाख्त
वर्ष स्त्री पुरुष स्त्री पुरुष
2013 01 04 01 02
2014 01 08 - 02
2015 02 06 - 01
2016 - 05 - -
2017 - 06 - -
2018 - 05 - 01
2019 - 03 - -
2020 - 01 - -