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Resignation of Tirath Singh Rawat : संवैधानिक नहीं, सियासी भंवर में उलझी उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी

Resignation of Tirath Singh Rawat हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा शुरू करने को लेकर जल्दबाजी कोविड काल में महाकुंभ की भीड़ रोडवेज कर्मचारियों के मामले में ढिलाई आदि को लेकर गंभीर टिप्पणियां की। संविधान के जानकारों का कहना है कि चुनाव आयोग या सरकार के सामने संवैधानिक संकट है नहीं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 03 Jul 2021 08:53 AM (IST)Updated: Sat, 03 Jul 2021 08:53 AM (IST)
Resignation of Tirath Singh Rawat : संवैधानिक नहीं, सियासी भंवर में उलझी उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी
राजनीतिक विशेषज्ञ इस्तीफा दिलाने की एक वजह सरकार के खिलाफ बन रहे नैरेटिव को मान रहे हैं।

नैनीताल, किशोर जोशी : Resignation of Tirath Singh Rawat : उत्तराखंड एक बार फिर सियासी भंवर में उलझ गया है। मार्च में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसी के साथ राज्य में नए मुख्यमंत्री की राह तैयार हो गई। भले ही ऊपरी तौर पर इसकी वजह तीरथ के उपचुनाव नहीं लड़ने का पेंच बताया जा रहा हो मगर राजनीतिक विशेषज्ञ इस्तीफा दिलाने की एक वजह सरकार के खिलाफ बन रहे नैरेटिव को मान रहे हैं।

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इस नैरेटिव को बनाने में उत्तराखंड हाईकोर्ट की टिप्पणियां भी आधार बनी। हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा शुरू करने को लेकर जल्दबाजी, कोविड काल में महाकुंभ की भीड़, रोडवेज कर्मचारियों के मामले में ढिलाई आदि को लेकर गंभीर टिप्पणियां की, जिससे सरकार असहज हुई। जबकि संविधान के जानकारों का साफ कहना है कि चुनाव आयोग या सरकार के सामने कोई संवैधानिक संकट है ही नहीं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की विदाई हो गई। सौ दिन से अधिक के कार्यकाल में मुख्यमंत्री जिलों में अफसरों के तबादले तक नहीं कर सके। इसके अलावा त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में हटाये गए सौ से अधिक दायित्यधारियों के अलावा महत्वाकांक्षी नेताओं ने संगठन के माध्यम से हाईकमान तक संदेश पहुंचाया कि मौजूदा नेतृत्व के बलबूते 2022 के चुनाव की रेस नहीं जीती जा सकती।

इस्तीफे की नहीं थी संवैधानिक बाध्यता, चुनाव आयोग का था अनिवार्य कर्तव्य

भले ही सियासी तौर पर इस्तीफे की वजह उपचुनाव नहीं होना बताया जा रहा हो मगर कानूनी व संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ यह कतई नहीं मानते कि उपचुनाव में कोई संवैधानिक संकट था। हाईकोर्ट के अधिवक्ता व विधि विशेषज्ञ डॉ कार्तिकेय हरिगुप्ता के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 164(4 )

के अनुसार "एक मंत्री जो लगातार छह महीने की अवधि के लिए राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा। इस छह महीने की सीमा के लिए, संविधान एक मंत्री और एक मुख्यमंत्री के बीच अंतर नहीं करता है। छह महीने में चुनाव की आवश्यकता मुख्यमंत्री पर समान रूप से लागू होती है।

उन्होंने चौधरी बनाम पंजाब राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद की व्याख्या की है। यदि कोई मंत्री छह महीने की अवधि के भीतर विधानमंडल के लिए चुने जाने में विफल रहता है, तो वह मंत्री नहीं रह जाता है और उसे मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त नहीं किया जा सकता है। उसी विधायिका के कार्यकाल के दौरान जब तक कि वह उस विधानमंडल के लिए निर्वाचित नहीं हो जाता। इस राज्य के मुख्यमंत्री को पुनर्नियुक्ति के उद्देश्य से छह महीने की समाप्ति से पहले पद से इस्तीफा देने में मदद नहीं मिलेगी। क्योंकि इस तरह की पुनर्नियुक्ति को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपर्युक्त मामले में अवैध घोषित किया गया है। इस बात की संभावना नहीं हो सकती कि यदि किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया गया है और वह अपना समय नवीनीकृत करने के लिए छह महीने से पहले पद से इस्तीफा दे देता है। छह महीने की सीमा, मुख्यमंत्री को छह महीने के भीतर निर्वाचित सदस्य बनना होगा अन्यथा वह वर्तमान विधान सभा के शेष जीवन के लिए अनुच्छेद - 164 (4) के अनुसार मुख्यमंत्री नहीं रहेगा। गुप्ता कहते हैं , चुनाव आयोग का चुनाव कराने का अनिवार्य कर्तव्य और चुनाव कराने की समय सीमा किसके प्रतिनिधित्व की धारा - 150 और 151 (ए) के अनुसार है।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 150, राज्य विधान सभा में एक आकस्मिक रिक्ति के मामले में, निर्वाचन आयोग पर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र को बुलाने के लिए एक अनिवार्य कर्तव्य रखता है। उपरोक्त अनिवार्य कर्तव्य के लिए, केवल सीमा धारा 151 (ए) के तहत है ,जिसे बाद में 1996 में संशोधन द्वारा जोड़ा गया था। इसमें आकस्मिक रिक्ति के मामले में चुनाव कराने के लिए एक समय सीमा प्रदान की गई है। यह एक सकारात्मक समय सीमा है जिसमें कहा गया है कि किसी भी रिक्ति को भरने के लिए उप-चुनाव रिक्ति होने की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर आयोजित किया जाएगा। यह समय सीमा उन मामलों में भी लागू नहीं होती है , जहां किसी रिक्ति के संबंध में सदस्य की शेष अवधि एक वर्ष से कम है।

उत्तराखंड राज्य की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल मार्च, 2022 में समाप्त होता है। वर्तमान में, उत्तराखंड विधान सभा की दो मौजूदा आकस्मिक रिक्तियों की शेष अवधि दोनों मामलों में एक वर्ष से कम है, इसलिए जैसा कि प्रावधान के अनुसार (ए) धारा 151 (ए) समय सीमा लागू नहीं होगी और धारा 150 के आदेश के अनुसार, चुनाव आयोग पहले से मौजूद दो आकस्मिक रिक्तियों पर या किसी नए के उत्पन्न होने की स्थिति में चुनाव कराने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य है।


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