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Tribute to Mathura dutt Mathpal : जीवन के अंतिम क्षणों तक कुमाऊंनी साहित्य की सेवा करते रहे मठपाल

Tribute to Mathura dutt Mathpal 80 साल की आयु में जब लोग संसार से वैराग्य ले लेते हों ऐसे में मथुरादत्त मठपाल का अंतिम समय तक कुमाऊंनी साहित्य को योगदान देना वास्तव में पहाड़ के लोगों के लिए किसी गौरव से कम नही है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Mon, 10 May 2021 10:46 AM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 05:54 PM (IST)
Tribute to Mathura dutt Mathpal : जीवन के अंतिम क्षणों तक कुमाऊंनी साहित्य की सेवा करते रहे मठपाल
20 सालों तक अनवरत रूप से कुमाऊंनी पत्रिका दुदबोली का संपादन किया ।

विनोद पपनै, रामनगर : Tribute to Mathura dutt Mathpal : कुमाऊंनी साहित्य की सेवा करते करते-करते हमेशा के लिए गहरी निद्रा में लीन हो गए साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल। उनके निधन की खबर कुमाऊंनी साहित्य प्रेमियों के लिए स्तब्ध करने वाली है। उनके चले जाने से ऐसा लगा मानो कुमाऊंनी साहित्य की आत्मा से प्राण ही निकल गए हों।

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 80 साल की आयु में जब लोग संसार से वैराग्य ले लेते हों ऐसे में मथुरादत्त मठपाल का अंतिम समय तक कुमाऊंनी साहित्य को योगदान देना वास्तव में पहाड़ के लोगों के लिए किसी गौरव से कम नही है। इसीलिए उन्हें कुमाऊंनी भाषा का न केवल आधार स्तंभ कहा गया बल्कि लोगों ने उन्हें कुमाऊंनी भाषा की आत्मा की संज्ञा भी दी। उनकी रचनाओं को देखते हुए वर्ष 2014 में उन्हें साहित्य अकादमी भाषा सम्मान से नवाजा गया। मठपाल ने 20 सालों तक अनवरत रूप से कुमाऊंनी पत्रिका दुदबोली का संपादन किया ।  

मठपाल की प्रकाशित पुस्तकें

आंग-आंग चिचेल हैगो, पे मैं क्यापक क्याप कै भेटनूं, फिर प्योली हंसे, मनख सतसई, राम नाम भौत ठुल उनकी कुमाऊंनी में प्रकाशित पुस्तकें हैं। पिछले वर्ष कुमाऊंनी भाषा में पहली बार 100 कुमाऊंनी कहानियों की पुस्तक 'कौ सुवा काथ कौÓ उनके ही संपादन में प्रकाशित हुई। मठपाल द्वारा कुमाऊंनी के वरिष्ठ कवि शेरसिंह बिष्ट, हीरा सिंह राणा, गोपालदत्त भट्ट की कविताओं का पहली बार हिंदी में अनुवाद कर प्रकाशित करवाया। हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्थवाल की 80 कविताओं का भी कुमाऊंनी में अनुवाद किया। स्वास्थ्य खराब होने से पहले वह कुमाऊंनी की 200 सर्वश्रेष्ठ कविताओं के प्रकाशन पर काम कर रहे थे।

कुमाऊंनी भाषा में सम्मेलन करवाए  

मठपाल द्वारा कुमाऊंनी भाषा के उत्थान के लिए 1989, 90 व 91 में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ व नैनीताल में भाषा सम्मेलन आयोजित करवाये। 2018, 19 में कुमाउनी गढ़वाली भाषा सम्मेलन रामनगर में आयोजित करवाए गए।  

कई सम्मान से नवाजे गए

वयोवृद्ध साहित्यकार मठपाल को साहित्य अकादमी के अलावा कई अन्य सम्मानों से नवाजा गया। 1989 में उप्र सरकार द्वारा सुमित्रानंदन पंत पुरुस्कार, 2011 में उत्तराखंड भाषा सम्मान, 2011 में गोविंद चातक सम्मान, शेलवानी साहित्य सम्मान, हिमवंत साहित्य सम्मान, चंद्रकुंवर बर्थवाल साहित्य सेवाश्री सम्मान से नवाजा गया।    

दुदबोली में 50 लेखक जुड़े

वर्ष 2000 में उन्होंने 'दुदबोलिÓ नाम से कुमाऊंनी पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। दुदबोलि के 24 त्रैमासिक (64 पृष्ठ) अंक निकालने के बाद 2006 में इसे वार्षिक (340 पृष्ठ) किया गया। जिनमें लोककथा, लोक साहित्य, कविता, हास्य, कहानी, निबंध, नाटक, अनुवाद, मुहावरे, शब्दावली व यात्रा वृतांत आदि को जगह दी जाती है। डा. रमेश शाह, शेखर जोशी, ताराचंद्र त्रिपाठी, गोपाल भट्ट, पूरन जोशी, डा. प्रयाग जोशी सरीखे 50 कवि व लेखक 'दुदबोलिÓ से जुड़े हैं।  

याद रहेगा कोयम्बटूर में जी रैया, जागि रैया का आशीर्वचन

16 अगस्त 2015 का दिन था। कोयम्बटूर के भारतीय विद्या भवन के सभागार में साहित्य अकादमी द्वारा भाषा सम्मान दिया जाना था. पहली बार कुमाऊंनी के दो वरिष्ठ साहित्यकारों चारु चंद्र पांडे और मथुरादत्त मठपाल को सम्मान के लिये चुना गया। पुरस्कार के बाद मथुरादत्त मठपाल ने 'द्वि आंखर- कुमाऊंनी बाबतÓ शीर्षक से एक वक्तव्य दिया। जब उन्होंने अपने वक्तव्य का अंत में कुमाऊंनी आशीष देते हुए 'जी रैया, जागि रैया, स्यू कस तराण हौ, स्यावै कसि बुद्धि हौ,Ó के साथ किया तो पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा।

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