Bhalugad waterfall : ग्रामीणों ने मिलकर बदल दी नैनीताल के इस पर्यटन स्थल की तस्वीर
Bhalugad waterfall नैनीताल में बहुत सारे पर्यटन स्थल ऐसे हैं जहां पर्यटक तो पहुंचते हैं लेकिन पर्यटन विभाग उनको लेकर गंभीर नहीं है। ऐसे ही एक उपेक्षित पर्यटन स्थल को सहेजने का काम शुरू किया है ग्रामीणों ने। हर साल बड़ी तादाद में पर्यटक मुक्तेश्वर पहुंचते हैं।
नैनीताल, जागरण संवाददाता : Bhalugad waterfall : नैनीताल में बहुत सारे पर्यटन स्थल ऐसे हैं जहां पर्यटक तो पहुंचते हैं, लेकिन पर्यटन विभाग उनको लेकर गंभीर नहीं है। ऐसे ही एक उपेक्षित पर्यटन स्थल को सहेजने का काम शुरू किया है ग्रामीणों ने। हर साल बड़ी तादाद में पर्यटक मुक्तेश्वर पहुंचते हैं। मुक्तेश्वर के करीब में है भालूगाड़ झरना। इस झरने तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को दो किमी तक ट्रैक करना पड़ता है। ग्रामीणों ने यहां के पर्यटन की पूरी व्यवस्था को खुद ही संभाल लिया है। साफ-सफाई की व्यवस्था से लेकर गाइडों की नियुक्ति भी वे खुद ही करते हैं।
दो किमी चलना पड़ता है पैदल
मुक्तेश्वर में भालूगाड़ झरना कुमाऊं के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। मुक्तेश्वर जाने वाले पर्यटक एक बार यहां जाने की ख्वाहिश जरूर रखते हैं। कसियालेख से धारी जाने वाले रास्ते में करीब छह किमी दूरी पर गजार, बुरांशी ओर चौखुटा वन पंचायतों के अंतर्गत स्थित इस झरने तक पहुंचने के लिए करीब दो किमी पैदल भी चलना पड़ता है। बांज व बुरांश से घिरे घने और साथ में बहती नदी ट्रैक को और खूबसूरत बना देती है। देश-विदेश के सैलानी भालूगाड़ जलप्रपात में आते हैं।
भालूगाड़ जल प्रपात समिति का गठन
वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष तरुण जोशी ने बताया कि अनुसार अनियमित पर्यटन ने यहां गंदगी का विस्तार किया। चार वर्ष पहले हरेंद्र सिंह के नेतृत्व और गंगा जोशी के निर्देशन में इन वन पंचायतों की महिलाओं ने भालूगाड़ की इसी गन्दगी के निकट बैठकर इस पर चर्चा आरम्भ की। इस कार्य में उन्हें गांव के कुछ पुरुषों का भी साथ मिला। बैठक में भालूगाड़ के पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बनाने पर भी चर्चा हुई। भालू गाड़ की तीनों वन पंचायतों ने मिलकर 15 सदस्यीय भालूगाड़ जल प्रपात समिति का गठन किया।
पिछले साल समिति को दस लाख की आय
समिति ने पिछले चार सालों में भालूगाड़ के निकट अनेक गतिविधियों की श्रृंखला आरम्भ की। इसमें भालूगाड़ की सफाई, कूड़ेदानों का निर्माण, पौधरोपण, गाइडों की नियुक्ति, पर्यावरण जागरूकता अभियान आदि शामिल रहे। जोशी के अनुसार इन कामों के लिए संसाधन जुटाने हेतु पर्यटकों व गाइडों से शुल्क लेना आरम्भ किया गया। शुल्क का नियमित रूप से प्रतिवर्ष ऑडिट भी कराया जाता है। इस शुल्क से प्राप्त धनराशि को भालूगाड़ की व्यवस्था के साथ-साथ तीनों पंचायतों की व्यवस्था में भी बांटा जाता है। पिछले वित्तीय वर्ष में समिति की आय लगभग 10 लाख रुपया रही।
क्रियाकलापों का सोशल ऑडिट भी
संपूर्ण क्रियाकलापों का सोशल ऑडिट भी किया जाता है। जिसमें सचिव के द्वारा संपूर्ण आय-व्यय के विवरण के साथ आगामी वर्ष के लिए योजना भी प्रस्तुत की जाती है। इसमें स्थानीय जन प्रतिनिधियों सहित विभागों के अधिकारियों द्वारा भी भागीदारी की जाती हैं। उन्होंने कहा यह उत्तराखंड में वन पंचायतों को आपस में जोड़कर पर्यावरण के साथ साथ, रोजगार से जोड़ने की यह इकलौती पहल है। संसाधनों से भरपूर उत्तराखंड की अन्य वन पंचायतों के लिए यह पहल प्रेरणा का कार्य कर सकती है।
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