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कोविड के चलते हैड़ाखान मंदिर के अंतर्गत आयुर्वेदिक दवाइयों का उत्पादन भी पड़ा ठप

जुलाई 2018 में नैनीताल जनपद में पहली बार वृहत पैमाने पर बाबा रामदेव की पतंजलि के तर्ज पर आयुर्वेदिक औषधि का उत्पादन प्रारंभ किया गया था। उत्पादन चल ही रहा था कि पूरे विश्व में संक्रमण फैल गया और इसी संक्रमण के चलते मंदिर को भी बंद करना पड़ा।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 27 Feb 2021 01:41 PM (IST)Updated: Sat, 27 Feb 2021 01:41 PM (IST)
कोविड के चलते हैड़ाखान मंदिर के अंतर्गत आयुर्वेदिक दवाइयों का उत्पादन भी पड़ा ठप
संक्रमण के चलते मंदिर को भी बंद करना पड़ा।

जागरण संवाददाता, भीमताल : भीमताल विकास खंड के अन्तर्गत हैड़ाखान मंदिर में पिछले दो वर्ष से चल रहा आर्युवेदिक दवाईयों का उत्पादन ठप्प पड़ा है। यह उत्पादन कोरोना के संक्रमण के चलते मार्च 2020 से आश्रम बंद होने के कारण ठप्प है। हैड़ाखान में वर्ष 2018 से आर्युवेदिक दवाईयों को उगाया जा रहा था। इन दवाईयों के उत्पादन के चलते जहां लोंगों को रोजगार मिल रहा था, वहीं आश्रम की आमदनी भी हो रही थी। जुलाई 2018 में नैनीताल जनपद में पहली बार वृहत पैमाने पर बाबा रामदेव की पतंजलि के तर्ज पर आयुर्वेदिक औषधि का उत्पादन प्रारंभ किया गया था। उत्पादन विकास खंड भीमताल के अन्तर्गत हैड़ाखान ग्राम सभा में हैड़ाखान मंदिर का उपक्रम भोलेबाबा धमार्थ चिकित्सालय में हो रहा था। यह उत्पादन चल ही रहा था कि पूरे विश्व में कोरोना का संक्रमण फैल गया और इसी संक्रमण के चलते मंदिर को भी बंद करना पड़ा।

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मंदिर के व्यवस्थापक राघवेन्द्र संभल बताते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में कई पौधे ऐसे हैं जो कि दरअसल औषधि हैं पर अज्ञानता के कारण लोग इसका उपयोग नहीं कर पाते और लोगों के घरों में आंगन में खेतों में यह बेशकीमती औषधि ऐसी ही पड़ी रहती है और कुछ समय बाद समाप्त हो जाती है। मंदिर में जब यह उत्पादन प्रारंभ हुआ था तब श्रद्धालुओं समेत आस पास के ग्रामीणों को यह औषधि जानने का मौका मिला था।

इसके अन्तर्गत प्रथम चरण में खांफी का सिरप, मधुमेह की दवाई, रक्तचाप, गठिया आदि रोगों की दवाईयों का उत्पादन किया गया। वस्थापक राघवेन्द्र संभल के अनुसार आयुर्वेदिक औषधि के लिये कच्चा माल मंदिर परिसर के अलावा आस पास के गांव में भी लगाया गया था अकेले मंदिर परिसर से पांच कुंतल आंवले का आचार व जूस आदि का निर्माण हुआ था।

आयुर्वेदिक पौध में अश्वगंधा, किरमोड़ा, कूठ, जटामांसी,चिरायता,बनककड़ी,कालाजीरा, तगर समेत लगभग चार दर्जन से अधिक औषधि पौध उगाई गई थी। मंदिर व्यवस्थापक राघवेन्द्र संभल का कहना है कि क्षेत्र में आर्युवेदिक दवाइयों के पौधों का उत्पादन के नतीजे सही थे। अभी वर्तमान में मंदिर परिसर बंद है। मंदिर परिसर खुलने के बाद दुबारा से इस दिशा में कार्य किया जायेगा।

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